शीर्षक पंक्ति: आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
अमीरों की बजाई धुन पर गरीबों को नाचना
पड़ता है
यदि धनवान को काँटा चुभे तो सारे शहर को खबर होती है।
निर्धन को साँप भी काटे तो
भी कोई खबर नहीं पहुँचती है ।।
अक्सर गरीब की जवानी और पौष
की चांदनी बेकार जाती है ।
गर आसमान से बला उतरी तो वह
गरीब के ही घर घुसती है ।।
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आज
भी वही प्रथा
है जीवित
वही
क़त्ल ओर ग़ारत, आगज़नी, नारियों
पर अमानवीय
अत्याचार, सामूहिक
रक्त पिपासा, वही पैशाचिक
वीभत्स अवतार, फिर भी
सीने पर
शान्तिदूत का
तमगा लगाए
फिरते
हैं,
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अपने कपड़ों से झाड़ दी हो मिट्टी
और मिटा दिया हो निशान गिरने का
कोई भी अपना नहीं दुनिया माया जाल
ख़्वाब कमल के देखता दिनभर सूखा ताल
जिससे मन की बात हो वह ही सबसे दूर
आओ मन फिर से पढ़ें तुलसी, मीरा, सूर
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
व्वाहहहहहह
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
आभार
सादर वंदन
हार्दिक आभार. सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंसादर आभार।।।।
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