सप्ताह की शुरुआत सोमवार और प्रस्तुतिकरण को आगे बढाते हुए...
दुःख का अंधकार ठहरा ही रहेगा!
टिमटिमाती रौशनीगुजरता हुआ सुख है
फैला अंधकारठहरा हुआ दुःख है
दर्दोगम को दिल में छुपाये रखती है
कई ख्वाब आँखों में सजाये रखती है
जिन्दगी को तपिश की लपटों से बचाती हुई..
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कौल पिता का, भटके जंगलों में, सन्यासी राम
निभाते रहे, दशरथ का वादा, करुणाधाम
हर ली सीता, क्रोधित रावण ने, हुआ अनर्थ
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को स्थान देने के लिए आभार🙏
जवाब देंहटाएंपम्मी जी, लिंक जोड़ने के लिए धन्यवाद। सभी रचनाएं पढ़ीं। बचपन का प्रसंग मन को बहुत भाया ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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