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सोमवार, 9 दिसंबर 2024

4332..माटी तेरा मोह न छूटा

 

सप्ताह की शुरुआत सोमवार और प्रस्तुतिकरण को आगे बढाते हुए...

दुःख का अंधकार ठहरा ही रहेगा!

टिमटिमाती रौशनी
गुजरता हुआ सुख है


फैला अंधकार
ठहरा हुआ दुःख है

✨️

 मुझसे पाँच वर्ष छोटे भाई का जन्म तब तक नहीं हुआ था. पिताजी का ट्रांस्फ़र होता रहता था - उन दिनों हमलोग तब के मध्य-भारत के एक कस्बे अमझेरा में रहतेथे. हमारे घरके सामनेवाले घर में एक..
✨️



ऊँचे पहाङ हैं..

समझना मुश्किल है

उस पार की समझ ..
✨️

तेरे कारण ही जग रूठा 


जब सोलह श्रृंगार किया 

तो बैरी हुआ सलोना प्रीतम 

भूल गई अपनी परछाईं 

बैठ बजाती रही मृदंगम 

जितने फेरे लिए अग्नि के 
✨️

दर्दोगम को  दिल  में छुपाये रखती है

कई ख्वाब आँखों में सजाये रखती है

जिन्दगी को तपिश की लपटों से बचाती हुई..

✨️

हाइकु मुक्तक

कौल पिता का, भटके जंगलों में, सन्यासी राम


निभाते रहे, दशरथ का वादा, करुणाधाम


हर ली सीता, क्रोधित रावण ने, हुआ अनर्थ

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

4 टिप्‍पणियां:

  1. हमारी रचना को स्थान देने के लिए आभार🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. पम्मी जी, लिंक जोड़ने के लिए धन्यवाद। सभी रचनाएं पढ़ीं। बचपन का प्रसंग मन को बहुत भाया ।

    जवाब देंहटाएं

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