निवेदन।


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सोमवार, 16 सितंबर 2024

4248 ....एक तरफ़ है कमला नारी

नमस्कार
देखिए कुछ रचनाएं




जो भी जीते, भारत जीते
देश हित में सारे नतीजे
एक तरफ़ है कमला नारी
दूजी तरफ़ है ट्रम्प बेजोड़




बहते
पानी का
यूं ठहर जाना

ठंडी
बयार की
रफ्तार
कम हो जाना

नीले
आसमान का
भूरा हो जाना


ओफ्फोह दादू
एक प्यारा पोता अपने दादू के लिए अपनी भावनाओं को इस खूबसूरत हाइकु कविता के माध्यम से बयां करता है





एक दंपत्ति नें जब अपनी शादी की 25
वीं वर्षगांठ मनायी तो एक पत्रकार
उनका साक्षात्कार लेने पहुंचा.
वो दंपत्ति अपने शांतिपूर्ण और सुखमय
वैवाहिक जीवन के लिये प्रसिद्ध थे.
उनके बीच कभी नाम मात्र का भी तकरार नहीं हुआ था.
लोग उनके इस सुखमय वैवाहिक जीवन का राज
जानने को उत्सुक थे.....






छोटी सी दुनिया थी मेरी
एक मैं और एक दोस्ती तेरी ,
दोस्ती वह सच्ची थी
पल में कुट्टी ,पल में मुच्ची थी।
मैं जब भी राह भटकी
तुम हाथ मेरा थाम के
सहारा बन जाते
वर्षों बाद भी मेरी दुनिया
उतनी ही छोटी
और तुम्हारी.....?



आज बस
सादर वंदन

रविवार, 15 सितंबर 2024

4247..शिरोरेखा सिसक पड़ी,"हाँ ! बच्चों भाषा का अनुशासन सब भूल चले हैं।"

 नमस्कार


देखिए कुछ रचनाएं



यहाँ महाभारत के पांच लाख श्लोकों को किसी ने बाखूबी 9 लाइनों में व्यक्त किया है 
और अनमोल "9 मोती" नाम दिया है। वाकई में ये नौ वाक्य महाभारत का सार व्यक्त कर रहें हैं, 
एक बार अवश्य पढ़ें।  




चाहता हूँ
कुछ अच्छे काम करना
की जब हो रहा हो हिसाब
खातों का मेरे





हलाल कर मुझे अपने हसीन हाथों से।
मैं ज़िन्दा हूं तू मुझे ज़िन्दा छोड़ता क्यों है।।

दिखा के पीठ यूं मैदां से हो रहा रख़सत।
उसूल जंग के इस तरह तोड़ता क्यों है।।




तभी 'म' अक्षर बोल पड़ा," देखों न माँ ! मुझसे ही तो कई शब्द बनते हैं, अब जैसे आप को ही पुकारते हैं, 
परन्तु हम जहाँ हैं वो इसके आगे के शब्दों को विकृत कर माँ के प्रति गाली बोलते हैं। 
हमारा मन चीत्कार कर उठता है, परन्तु कर कुछ नहीं पाते।"

'भ' भी बोल पड़ा ,"हाँ माँ ! देखो न मुझसे ही  भगवान, भगवती, भार्या, भगिनी जैसे विश्वास 
बाँधते शब्द बनते हैं, परन्तु जहाँ मैं हुँ उसने मुझे सिर्फ गाली बना रखा है।"

शिरोरेखा सिसक पड़ी,"हाँ ! बच्चों भाषा का अनुशासन सब भूल चले हैं।"





हिन्दी संस्कार की भाषा है
अति सरल, मधुर, प्यार की भाषा है
हाँ, नहीं बन सकी यह
विज्ञान और व्यापार की भाषा
या शायद रोज़गार की भाषा
इसलिए आज अपने ही घर में बेगानी है




आर्य द्रविड़ के आँगन खेली
तत्सम तद्भव करें दुलार।

सदियों से वटवृक्ष सरिस जो
छंदों का लेकर अवलंब!
शिल्प विधा की पकड़े उँगली
कूक रही थी डाल कदंब
सौत विदेशी का अब डेरा
हिंदी संस्कृत पर अधिकार।।

आज बस
सादर वंदन

शनिवार, 14 सितंबर 2024

4246 ...मातृभाषा ये हमारी,लगे सदा हमें प्यारी।

 नमस्कार


भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक हिंदी का जश्न मनाने के लिए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस (हिंदी दिवस) मनाया जाता है. 2024 में यह आयोजन देश भर में हिंदी के भाषाई और सांस्कृतिक महत्व को पहचानते हुए आज शनिवार, 14 सितंबर को होगा

देखिए कुछ रचनाएं



कुछ और को भी
चलो आज इसी
बहाने से और
पता हो गया
हिंदी के अखबार में
छोटा सा समाचार
हिंदी दिवस पर
दिखा कहीं कौने
पर एक वो भी
पढ़ते पढ़ते पता
ही नहीं चला
कहां गया और
कहां खो गया





हम हर हाल में खुश रहने वाले लोग हैं।हम हर त्योहार पूरे जोश से मनाते हैं। विशेष रूप से निर्धारित किए दिवसों पर कार्यक्रम आयोजित करते हैं, बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और हमारे कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है।हम हिंदी दिवस को जोर शोर से मना कर हिंदी के प्रति अपनी आस्था अभिव्यक्त कर देते हैं पर करते कुछ नहीं...

मातृभाषा ये हमारी,लगे सदा हमें प्यारी।
प्रचार-प्रसार कर, योगदान दीजिए।।





सुनहरी नहीं हो पाती
अगरचे ख्वाब में मेरे
वो परी नहीं आती





वक्रतुंड महाकाय!
शक्ति दो
कर सकें सवारी
हम भी चूहे पर।

चंचलता के प्रतीक
चूहे पर
सवारी करना क्या सरल है?
सवारी क्या
इसे तो पकड़ना ही
कठिन है।




आज उन्होंने कोरोना से बचाव के लिए को-विशील्ड वैक्सीन लगवा ली। मेडिकल कॉलेज में काफ़ी अच्छा इंतज़ाम था। दिन आराम से बीता, पर इस समय थोड़ी हरारत जैसी महसूस हो रही है।कल भी आराम करना है, उम्मीद है परसों से सब सामान्य हो जायेगा।दीदी से बात हुई, वे लोग वैक्सीन नहीं लगवा रहे हैं।


आज बस
सादर वंदन

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

4245...राह बनायी जो तुमने

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
------------
साहित्य में समाज की विविधता, जीवन- दृष्टि और लोककलाओं का संरक्षण होता है। साहित्य समाज को स्वस्थ कलात्मक ज्ञानवर्धक मनोरंजन दृष्टिकोण प्रदान करता है जिससे सामाजिक संस्कारों का परिष्कार होता है। रचनाएँ समाज की भावना, भक्ति, समाजसेवा के माध्यम से मूल्यों के संदर्भ में मनुष्य हित की सर्वोच्चता का अनुसंधान करती हैं। हिन्दी लिखने पढ़ने वालों के हिन्दी महज एक दिवस नहीं
होती बल्कि आत्मा को उदात्त करने में, मनुष्य के गुणों का परिष्कार करने में, उसे आनंद की अवस्था में पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साहित्य अतीत से जीवन मूल्यों को लेकर आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने में सेतु की तरह है।
मुझे लगता है 
वर्तमान समय में हिंदी अशुद्धियों और संवाद में बढ़ते 'भदेसपन' से जूझ रही है।
साधारण वाक्यों में मात्राओं की त्रुटियाँ ,लिंग और वचन की गलतियों को सहज रूप से स्वीकार किया जाना हिंदी के भविष्य के लिए घातक है। हम सभी की जिम्मेदारी है गलतियों को इंगित करें।
दूसरी बड़ी समस्या है 'भदेसपन' यानि भाषा का
 बिगड़ता स्वरूप । हिंदी फिल्म के संवाद हो, गीत हो या किसी हिंदी राष्ट्रीय समाचार चैनल का खुला बहस मंच सभी जगह धड़ल्ले से अपशब्दों के प्रयोग ने हिंदी भाषा का चेहरा बिगाड़कर रख दिया है।

आज की रचनाएँ-






व्यथा--वेदना विष पीकर भी
सदा सुधा बरसाया
नारी की गरिमा--ममता को
शुचि, ,साकार बनाया ।
राह बनाई जो तुमने
शुभ-संकल्पों से सज्जित है
आज तुम्हारे लिये...।


युद्धों के पीछे पागल है 
दीवाना मानव क्या चाहे, 
शिशुओं की मुस्कानें छीनीं 
 रहीं अनसुनी माँ की आहें !
कहीं सुरक्षित नहीं नारियाँ 
वहशी हुआ समाज आज है, 
अनसूया-गार्गी  की धरती 
भयावहता  का क्यों राज है !

 


तुमने कहा-
मेरा इंतज़ार कब तक?
बर्फ के पिघलने तक
ठंड से ठिठुरते हुए बोली मैं!

तुमने आंच बढ़ाई सूरज की
ग्लेशियर गलने लगे
तमाम पेंगविंस के पैरों में पड़ गए छाले
कुछ छाले मेरी जीभ पर भी हैं
जो बढ़ रहे हैं सूरज की आंच से...


वे वृक्ष नहीं हैं 
उन्हें सदियों से वृक्ष के चित्र दिखाकर 
उनसे 
फल-फूल और लकड़ियाँ प्राप्त की जाती रही हैं 
नाइट्रोजन की अपेक्षा ऑक्सीजन के कीड़े 
उन्हें अधिक तेजी से निगलते रहे हैं 
फिर भी वे नींद से जाग नहीं पाई 
वे नहीं जान पाई कि वे स्त्रियाँ हैं 
उन्होंने स्वयं के लिए अंधेरा चुना 


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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गुरुवार, 12 सितंबर 2024

4244...न्याय बिके बाजारों में जब, पीड़ित घिसता जूते रोज...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

कुछ खरी-खरी...!!

न्याय बिके बाजारों में जब,

पीड़ित घिसता जूते रोज।

अंधा है कानून यहाँ पर,

खोता जाता उसका ओज।।

*****

गजल

हैरानी होगी परिणाम अनुकूल न निकलने पर, 

परेशान होने से भी तो आराम नहीं मिलता। 

राहों में बहुत मिलेंगे जो मन को भाएंगे।

केवल मन भाने से भाव नहीं मिलता। 

*****

जय जय जय गणपति गणनायक। गणपति वंदना। गणेश जी की आरती

सिद्धि-बुद्धि-सेवित, सुषमानिधि, नीति-प्रीति पालक, वरदायक।।

शंकर-सुवन, भुवन-भय-वारण, वारन-वदन, विनायक-नायक।

मोदक प्रिय, निज-जन-मन-मोदक, गिरि-तनया-मन-मोद-प्रदायक।।

अमल, अकल अरु सकल-कलानिधि, ऋद्धि-सिद्धिदायक, सुरनायक।

*****

अकेले तुम और हम

असीम आसमान और निस्सीम समुन्दर की तरह

अनन्त तक चली जाती है आवाज़,

रखी रहती है गुदगुदी बनकर,

मन की आवाज़ वही गुनगुनाहट है

जो तुम कभी-कभी अनचाहे अपने होंठों पर ले आते हो

*****

अमर प्रेम

औरतों के प्रति जब कभी पुरानी धारणा की मुठभेड़ आधुनिकता से होती है, तो भारतीय मन-मनुष्य और समाज को पुरुषार्थ के उजाले में देखने-दिखाने के लिए मुड़ जाता है. पर हमारी परंपरा में पुरुषार्थ की साधना वही कर सकता है, जो स्वतंत्र हो. हिंदी साहित्य के शेक्सपीयर कहे जाने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की ज़िंदगी में मल्लिका अकेली स्त्री नहीं थीं, जिनके साथ उनके संबंध थे, लेकिन मल्लिका का उनके जीवन में विशेष स्थान था.

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


बुधवार, 11 सितंबर 2024

4243..बहा करे संवाद की धार..

 ।।प्रातःवंदन।।

"शब्द जो राजाओं की घाटी में नाचते हैं

 जो माशूक की नाभि का क्षेत्रफल नापते हैं

 जो मेजों पर टेनिस बॉल की तरह लड़ते हैं

 जो मंचों की खारी धरती पर उगते हैं... 

 कविता नहीं होते! "

पाश 

क्रान्तिकारी काव्य परम्परा के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कवि अवतार सिंह संधू "पाश " की जन्म जयंती पर शत-शत नमन (जन्म  9Sep1950)

लतीफे चाहिए

जो अस्मत बचा न सके उनके अब इस्तीफे चाहिए

खुद हालात से लड़े लेंगें नहीं हमें खलीफे चाहिए

उनकी की शान ओ शौकत इसलिए बंद हो..

✨️

बहा करे संवाद की धार 


टूट गई वह डोर, बँधे थे 

जिसमें मन के मनके सारे, 

बिखर गये कई छोर, अति हैं  

प्यारे से ये रिश्ते सारे !

✨️

भाषा ने लिपि से कहा

मैं आँखों की मधुर ध्वनि

तुम अधरों से झरती हो

घट घट में मैं डूबी हूँ

तुम कूप कूप में रहती हो..

✨️

निर्मल मन मे ईष्ट

तू  अपने  ही  दोष  मिटा 

सबका  करो  सुधार 

गुणी  हृदय  है  बहुत  बड़ा 

गुणता  रही  उदार निर्मल मन मे ईष्ट.

✨️

हमारे साझे का मौसम


उस बारिश से इस बारिश तक 

न जाने कितनी बरसातें गुजर गई

यह हमारे साझे का मौसम है ..

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

मंगलवार, 10 सितंबर 2024

4242...मुझे हार स्वीकार

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------
सोचती हूँ 
 विश्व के ढाँचें को अत्याधुनिक
 बनाने के क्रम में
ग्रह,उपग्रह, चाँद,मंगल के शोध,
 संचारक्रांति के नित नवीन अन्वेषण
सदियों की यात्राओं में बदलते
जीवनोपयोगी विलासिता के वस्तुओं का
आविष्कार,
जीवनशैली में सहूलियत के लिए
कायाकल्प तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है
किंतु,
कुछ विचारधाराओं की कट्टरता का
समय की धारा के संपर्क में रहने के बाद भी
प्रतिक्रियाविहीन,सालों अपरिवर्तित रहना
विज्ञान,गणित,भौतिकी ,रसायन,
समाजिक या आध्यात्मिक 
किस विषय के सिद्धांत का
प्रतिनिधित्व करता है?
-----
आज की रचनाएँ

जज़्बा बहुत है लड़ने का किंतु,
शैतान को देनी मात नही आती। 

क्या बतलाएं तुमको हम जात अपनी,
सिवा इंसानियत कोई जात नहीं आती। 




बाँधव ही हैं सामने, मैं कैसे दूँ मार।
गांडीव गिरे हाथ से, मुझे हार  स्वीकार ।।16 ।।

पुत्र, पितामह, तात पर, कैसे छोडूं बाण। 
भाई-बाँधव मारकर, होगा क्या कल्याण ।। 






कर्म और भाग्य भी विरोधी बने
नींद भी बैठी रहीं सिरहाने पर
देव दृष्टि से भी रहे वंचित सदा
वक़्त भी आमदा रहा सितम ढाने पर





पर चाहतों का गुब्बारा उड़ता रहा
चाहते न चाहते
अटकते रहे, स्क्रॉल करते हुए
बातों मे आदरसूचक शब्दों के साथ भी
ढूंढते रहे, गुलाबी चमक
उम्र के ढलान पर
जीते रहे जिंदगी की आभासी शरारतों को




औरतों के प्रति जब कभी पुरानी धारणा की मुठभेड़ आधुनिकता से होती है, तो भारतीय मन-मनुष्य और समाज को पुरुषार्थ के उजाले में देखने-दिखाने के लिए मुड़ जाता है. पर हमारी परंपरा में पुरुषार्थ की साधना वही कर सकता है, जो स्वतंत्र हो. हिंदी साहित्य के शेक्सपीयर कहे जाने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की ज़िंदगी में मल्लिका अकेली स्त्री नहीं थीं, जिनके साथ उनके संबंध थे, लेकिन मल्लिका का उनके जीवन में विशेष स्थान था. 

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आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

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