अपने दुःख को छुपाते हुए
हल्का सा मुस्कुराते हुए
बोला था चाँद -
अभी तक दूर से
मैं कितना चमकता था ,
बच्चे मेरे नाम की लोरियाँ सुन
माँ के आँचल में सो जाते थे
मेरी सुंदरता के गीत गाते हुए
न जाने कितने ही कवि द्वारा
आकाश पाताल एक किये जाते थे
युवतियाँ चंद्रमा सा सुंदर दिखने के लिए
न जाने क्या क्या युक्ति किया करती थीं
स्त्रियाँ न जाने किस किस रूप में
मेरी पूजा किया करतीं थीं ।
सब कुछ आ कर इस चंद्र यान ने
कर दिया है छिन्न भिन्न
इसी लिए बस हो रहा है
मेरा मन खिन्न ।
महत्वपूर्ण ये नहीं है, कि वास्तविकता क्या है… बल्कि, महत्वपूर्ण ये है कि, आप अपनी बात को सही साबित करने के लिए कितने संभावित तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं….!!
बारह मंजिला खिड़की से गिरा दी गई या नशे में गिर गई, सीढ़ी से पैर फिसला या गला दबाने के बाद फेंक दी गई, कुल्हाड़ी से या हथौड़े से मारी गयी•••!
मिशन चंद्रयान के कामयाबी की खुशी में रक्षा सूत्र लिए भाई की राह ताकती बहन की व्यथा सुनना मत भुलिएगा...
मार्मिक अभिव्यक्ति
गाँव छोड़ शहर तू बसा है
बिन तेरे घर सूना पड़ा है
बूढ़ी दादी और माँ का है सपना
नाती-पोतों को जी भरके देखना
लाना संग हसरत पूरी करना
राह ताकती लाड़ली बहना
अबकी राखी में गांव मेरे आना भैया
गांव मेरे आना
नर्म,मुलायम, कोमल भाव जो चाँद और भारतीयों के बीच अनूठा बंधन स्थापित करता है जिसका वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं किया जा सकता।
देश की उम्मीदों का चाँद वो चाँद जो सपनों का बादशाह बना बैठा था, जो हमारी प्रतीक्षाओं के मजे लिया करता था, वो जिसकी मखमली चाँदनी में बैठ हमने ख्वाबों के अनगिनत महल बनाए और उनमें उसी की दूधिया रोशनी भर कुछ मुस्कानें अपने नाम कर लीं, वो चाँद हमारे विक्रम बाबू और छुटके प्रज्ञान को देख चौंका तो जरूर होगा! उसे कहाँ पता कि जिनकी उम्मीदों की झोली वो सदियों से भरता रहा, आज उसी देश से कोई अपने इस बचपन के साथी के गले लग उसकी तमाम तस्वीरें खींचना चाहता है। वो जानना चाहता है कि "तुम्हारे पास पानी-वानी तो है न! कहो तो हम आ जाएं, तुम्हारा घर संभालने
भावनाओं की लताओं का विस्तार भूमि पर होगा या किसी हरे तने या ठूँठ पर यह पूर्णतया निर्भर है उन परिस्थितियों पर जिनपर बेहिचक उस समय लताओं की नर्म टहनियाँ पसर सके...
भावपूर्ण गहन अभिव्यक्ति जो मन को स्पर्श करती है-
चंद स्पंदन की
अनसुनी आहटें,
पनपा जाती हैं
क्षणांश में
हौले से
एक कोमल
अर्थपूर्ण अंकुरण
अंजाना अपनापन का
मन में,
सच तो किसी से छुपा नहीं रह सकता है पत्थर पर
चाहे कोई भी अपना नाम लिखना चाहे जरूरी नहीं कि उससे आसमान में सुराख़ हो ही जाए...
कल जब करोड़ों पत्थर आसमान की तरफ जा रहे थे
हर किसी के ख़्वाब में होते हुए छेद महसूस किये जा रहे थे
कोई छेद की ओट में बैठा धुआं बना रहा था
किसी एक पत्थर पर छपा ले जाए खुद का नाम योजना बना रहा था
आसमान मुस्कुरा रहा था
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शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
अब न कोई कविता या गज़ल बनेगी
जवाब देंहटाएंन किसी मिसरा में होगा चाँद
रूखी सतह के ठंडे, गर्म विश्लेषण में
आंकड़ों की किताब के हाशिये में
बस संख्याओं में पसरा होगा चाँद...।
बेहतरीन अंक
आभार मनभावन रचना पढ़वाने के लिए
साधुवाद....
आभार श्वेता जी |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअब न कोई कविता बनेगी
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक भूमिका के लिए साधुवाद
शानदार सूत्र का संयोजन किया है
सभी रचनाकारों को बधाई
शुभकामनाएं
भले ही चाँद के बारे में जानकारियाँ हासिल हो रही हैं लेकिन हमारी पीढ़ी तो अभी भी चाँद को उसी नज़र से देखेगी , जिस नज़र से देखती आयी है । चाँद पर तो बहुत पहले मनुष्य के कदम।पड़ गए थे , फिर भी चाँद शायरी में उतरता रहा , उपमाएँ दी जाती रहीं । विश्लेषणात्मक भूमिका के साथ खूबसूरत प्रस्तुति । आभार ।
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