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शनिवार, 12 अगस्त 2023

3847... चरित्र


 हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...   

दोहा में चार चरण : चार भाव होने चाहिए

तभी रंजक हो रचना : वाहवाही पाइए

चरित्र

कर चरित्र निर्माण भी ,और काम के साथ।

मात-पिता का हो सदा , सबके सिर पर हाथ।।

सतयुग के तो बाद में ,आया कलयुग काल।

सद्चरित्र से ही मनुज ,रखना इसे संभाल।।

चरित्र

कभी न फिर हम देखते, खुद का उसमें चित्र।।

दिल की कोटर में बसा, मन है बड़ा विचित्र।

मन को दर्पण लो बना, कर लो चित्त पवित्र।।

आधी घरवाली नहीं, होती साली मित्र।

चरित्र

तुम गज़लों की रूबाई बनो।

तुलसी जी रचित चौपाई बनो।।

भक्ति में तुम मीराबाई बनो।

प्रेम में तुम राँझे की हीर बनो।।

चरित्र

आंधी आयी ज्ञान की, ढ़ाहि भरम की भीति

माया टाटी उर गयी, लागी राम सो प्रीति।

माया जुगाबै कौन गुन, अंत ना आबै काज

सो राम नाम जोगबहु, भये परमारथ साज।

चरित्र

जो भद्दी गालियां

हमारे पूर्वजों ने

गन्ने के रस की तरह पिया है

और घुट-घुटकर ओसारे में

पूरी रात चांद को देखकर ही सोया है


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पुनः भेंट होगी...
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4 टिप्‍पणियां:

  1. तुम गज़लों की रूबाई बनो।
    तुलसी जी रचित चौपाई बनो।।
    शानदार अंक.
    आभार
    सादर वंदे

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढिया प्रस्तुति प्रिय दीदी।चरित्र ही इन्सान की पहचान है।उसके बिना किसी का कोई अस्तित्व नहीं। बहुत ही भावपूर्ण और मार्मिक रचनाएँ पढ़ी।सम्पूर्णानन्द मिश्र जी की रचना बहुत ही हृदयविदारक लगी।शेष भी अपनी जगह आप है।आपको इस सुन्दर अंक को सजाने के लिए बहुत बहुत आभार और प्रणाम 🙏🙏🌺🌺

    जवाब देंहटाएं
  3. जी दी,
    विषयाधारित सभी रचनाएँ बहुत अच्छी है।
    बहुत अच्छा अंक।
    किसी व्यक्ति के विचार इच्छाएं, आकांक्षाएं और आचरण जैसा होगा, उन्हीं के अनुरूप चरित्र का निर्माण होता है। उत्तम चरित्र जीवन को सही दिशा में प्रेरित करता है। चरित्र निर्माण में साहित्य का बहुत महत्व है। विचारों को दृढ़ता व शक्ति प्रदान करने वाला साहित्य आत्म निर्माण में बहुत योगदान करता है।
    -----
    प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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