मैं मौन था, भाषा से अनभिज्ञ नहीं
वे शब्दों के व्यापारी थे, मैं नहीं
मुझे नहीं दिखता!
वह सब जो इन्हें दिखायी देता
नहीं दिखने के पैदा हुए भाव से
मैं पीड़ा में था, परीक्षित मौन
विष तो आख़िर विष होता है
नागनाथ या साँपनाथ का
मानव ही आमिष होता है
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपनी प्रस्तुति में स्थान देकर एक सकारात्मक सोच वाली घटना को आगे प्रेषित करने के लिए .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंआज की भूमिका यह जताने के लिए काफ़ी है कि हम स्वयं को मौखिक रूप से भले ही कर्मकांड करते हुए तथाकथित सनातनी कह लें, पर वास्तविक रूप से उन आध्यात्मिक ज्ञानों से हम कोसो दूर हैं .. शायद ...
आज प्रत्येक रचना के पूर्व आपकी चंद अर्थपूर्ण पँक्तियों वाली रचना की सार से रूबरू कराती भूमिका की अनुपस्थिति खल रही है .. शायद ...
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंबदलाव आवश्यक
फेसबुक व अन्य जगह पर
मित्रों को टैग करने की सलाह है
अच्छी प्रस्तुतियां प्रचार-प्रसार मांगती है
सादर
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति,सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय भूमिका।
जवाब देंहटाएंसृजन को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सभी को बधाई।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक रचनाओं का संकलन है। मुझे शामिल करने के लिए धन्यवाद।
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