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बुधवार, 9 नवंबर 2022

3572.. आ गए, कुहरों भरे दिन..

।।प्रातःवंदन।।

 आ गए, कुहरों भरे दिन आ गए।

मेघ कन्धों पर धरे दिन आ गए।अ

धूप का टुकडा़ कहीं भी

दूर तक दिखता नहीं,

रूठकर जैसे प्रवासी

ख़त कभी लिखता नहीं,

याद लेकर सिरफिरे दिन

आ गए..!!

उमाशंकर तिवारी

फुर्सत के पल... कुछ खास अंदाज में बिताए बुधवार के दिन चुनिंदा लिंकों संग..✍️


यह क्षण


इस क्षण में, उस क्षण की बातें क्या करना!
इस क्षण ही जीना, इस क्षण ही मरना।

पीकर जीवन-गरल, ढ़ल गए वो कल,
लूट चले जो सुख चैन, बीत चुके वो पल,
गूंज उसी कल की, क्या सुनना?

इस क्षण में, उस क्षण की बातें क्या करना!

वो बीता क्षण, दे जाए ना भीगा जीवन,
मंद कहीं पर जाए ना, इस क्षण की गुंजन,
उन चिथड़ों को, फिर क्या सीना?..
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एक सपना ऐसा भी

बात उस समय की है जब अध्यापन के क्षेत्र में मैंने अपना पहला कदम रखा था। मैं जानती थी की यह क्षेत्र मेरे लिए जितना रुचिकर हैउतना ही चुनौतियों  से भरा भी है।

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यह कविता की बंजर शाला

कोरे पृष्ठों पर अंकित होती 

प्रेम-सुमन-सी अक्षरमाला,

छंद-छंद कूके कोकिल और 

छम-छम नाचे सुंदर बाला।

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पुराने ख़त

पिता,

तुमने जो ख़त लिखे थे,

मैंने कभी सहेज कर रखे ही नहीं,

सोचा, क्या रखना उन ख़तों को,

जो चले आते हैं हर तीसरे..

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हिंसा तो उपेक्षा भी है

-प्रतिभा कटियार

‘अम्मू’ फिल्म देखकर खत्म की है. लेटी हूँ. ख़ामोशी पसरी हुई है. भीतर भी, बाहर भी. ‘अम्मू’ की कहानी नयी नहीं है लेकिन नयी न होने से क्या कहानी नहीं रहती, क्या उस कहानी की तासीर कम हो

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।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️



6 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया मैम , अत्यंत सुंदर एवं सशक्त प्रस्तुति । आज की प्रस्तुति में एक विशेष सशक्तता और गंभीरता थी । प्रेरक एवं भाव-पूर्ण रचनाओं से सजी हुई प्रस्तुति मन में नई प्रेरणा , विश्वास और दृढ़ता जगा गई । इस सुंदर प्रस्तुति के लिए अत्यंत आभार व आप सबों को प्रणाम ।

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