शीर्षक पंक्ति:आदरणीय गजेन्द्र भट्ट 'हृदयेश' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
"सही जानना चाहते हो तो सुनो! हम अपनी बिटिया को बेटे से
अधिक प्यार करते हैं और..." -एक क्षण के लिए रुका मैं।
"और...और क्या?" -मित्र के चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी। उन्हें शायद अपना प्रश्न पूछना सार्थक
लगा था।
जहां अनुशासन और संयम
केवल शब्द नहीं हैं शब्दकोश के
यहां समर्पण और भक्ति
कोरी धारणाएं नहीं हैं !
यहां परमात्मा को सिद्ध नहीं करना पड़ता
वह विराजमान है घर-घर में
कुलदेवी, ग्राम देवी और भारत माता के रूप में
वह देश अब आगे बढ़ रहा है!
किसे ख़बर, किस जानिब से उभरे ज़िन्दगी, -
फिर सुबह की तलब में सांसे रुकी सी लगे है,
घृणा जमाती अपना डेरा
ईर्ष्या खेले घर-घर में
निंदा बैठ करे पंचायत
अब पीर पैठती दर-दर में
आस लाज का छिना ठिकाना
जग बैर -क्रोध फल- फूल रहा।
"तब जा सकता था..। अब यहाँ मेरे रहने से
ज्यादा उजास फैलेगा। मेरे वृद्ध माता-पिता को सहारा मिलेगा। और विदेशी मृगतृष्णा
का क्या है...!"
"सुबह का भूला...!"
"कलयुग, द्वापरयुग, सतयुग मानव व्यवहार से ही निर्मित होता है..!"
जवाब देंहटाएंशानदार अंक.... सादर
मेरी लघु रचना को इस सुन्दर पटल पर स्थान देने के लिए भाई रवीन्द्र जी का हार्दिक आभार! अन्य रचनाकारों का भी स्नेहाभिनन्दन
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार, नमन सह ।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
सुप्रभात! सराहनीय प्रस्तुति, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति अनुज रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर , सदा की तरह शुभ और सखद भाव लिए हुए प्रेरक और यथार्थपूर्ण प्रस्तुति । बहुत आनंद आया पढ़ कर । दिन भर की थकान उतर गई । हार्दिक आभार एवं आप सबों को प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं