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रविवार, 20 नवंबर 2022

3583.. हम एक-दूसरे से सहजता से कहते हैं, अपने आशीष गिनो

सादर अभिवादन
लोभ का अंत ही नहीं
ओशो ने बड़े प्रेम से समझाया इसे
लोभ .....कहां से कहां तक ले जाता है


एक सूफ़ी ने अपने शिष्य से कहा, 
‘कोई भी जीवन को तब नहीं समझ सकता जब तक वह लालच और 
नामुमकिन के अंतर्संबंध को न समझ ले‘
शिष्य बोला , यह ते ऐसी पहेली है जिसे समझना मेरे लिए संभव नहीं है.
सूफ़ी ने कहा, ‘तुम सीधे अनुभव से समझ सकते हो तो पहेलियों में उलझने की क्या जरूरत है ‘
वह अपमे शिष्य को पास के बाजार में गए जहां अंगरखे बिकते थे. एक दुकान पर जाकर उन्होंने कहा ‘अपने सबसे बेहतरीन अंगरखा दिखाओ कीमत की परवाह मत करो 
मैं दिल खोलकर ख़र्च करना चाहता हूं ‘
दुकानदार नें बहुत सुंदर अंगरखा दिखाया और उसकी बड़ी कीमत बताई. 
सूफी बोले मैं ऐसा ही कोई अंगरखा चाहता था लेकिन गले के आस-पास थोड़ा गोटा लगा होता और थोड़ा फर लगा होता तो बहुत अच्छा होता. मैं कह सकता हूं 
तब यह मेरे इच्छित परिधान जैसा होता.
दुकानदार बोला, ‘आप चिन्ता मत कीजिए, आप जैसा अंगरखा कह रहे हैं 
ठीक वैसा ही अंगरखा मेरे कारखाने में पड़ा है. मैं अभी मंगवा देता हूँ.‘ 
कुछ देर के लिए वह कारखाने में गया और अंगरखे में गोटा फर लगा कर ले आया.
सूफ़ी ने जब कीमत पूछी तो दुकानदार नें उसकी कीमत बीस गुना बताई.
सूफ़ी बोले ‘बहुत बढ़िया. मैं दोनो अंगरखे खरीदना चाहता हूँ ‘
अब यह नामुमकिन हो गया क्योंकि अंगरखा तो एक ही है, सूफ़ी अपने शिष्य को दिखा रहे थे
 क्योंकि लोभ का अर्थ है और ...और पाने की इच्छा और उस ‘और‘ की कोई सीमा नहीं है
-ओशो
अब रचनाओं की ओर चलें .....



यह समझने की क्षमता भी मुझ में अब आयी है कि एक समरस और सामान्य दिन एक बहुत ही शुभ दिन है और एक सामान्य दिन की सुंदरता को न देख पाना हमारी संकीर्ण  बुद्धि का ही परिचायक है। हम एक-दूसरे से सहजता से कहते हैं, अपने आशीष गिनो(काउंट योर ब्लेसिंग्स) परन्तु ऐसा करने की आदत खुद को नहीं डाल पाते।




किसी से दिल लगाना पर होशो हवास न खोना
मुहब्बत में इस कदर अंधापन जानलेवा है

चींटी और हाथी दोनों इसी जमी पर हैं
कामयाबी का इतना पागलपन जानलेवा है

तितलियों होशियार रहना फूलों की नीयत पर
खुशबू का ऐसा दीवानापन जानलेवा है



देख लिया राजू ने
माथा भन्नाया
सुर्ख हुआ चेहरा
भागा अंदर
गुलेल उठा लाया
घूर के देखा
नीचे झुक उसने
ढेला उठाया
डर गया बंदर




माटी में मिल वृक्ष उगाते
अँखुआए बीजों - से रिश्ते ।
खुशबू बनकर महक रहे हैं,
चंदन जैसा घिसते रिश्ते।




એક દિવસ
હું વાંચતી હઈશ
કોઈક કવિતા
બરાબર એ જ સમયે
ક્યાંકથી કોઈક શબ્દ
કદાચ કોઈક કવિતા કનેથી ઊછીનો લઈ
મારા અંબોડામાં ખોસી દઈશ તું !

एक रोज़
मैं पढ़ रही होऊँगी
कोई कविता
ठीक उसी वक़्त
कहीं से कोई शब्द
शायद कविता से लेकर उधार
मेरे जूड़े में सजा दोगे तुम ।


आज इतना ही
सादर

5 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा लिंक्स चयन
    डायरी से लेकर कविता तक

    जवाब देंहटाएं
  2. सीमित, सार्थक संकलन। मेरी रचना को लेने हेतु सादर धन्यवाद दीदी।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीया मैम, सादर चरण स्पर्श। आपके इस असीम स्नेह के लिए आभार के सारे शब्द कम हैं । आपका मेरी रचना साझा करना एवं मेरी रचना की पंक्ति को शीर्षक का स्थान देना मेरे लिए आपका अमूल्य आशीष है। जिस दिन से ब्लॉग जगत में प्रवेश किया, उसी दिन से अप्प सभी बड़ों का अशर्त स्नेह पाया है मैं ने और यही कारण है, कि आज मैं अपना दूसरा ब्लॉग आरम्भ कर सकी हूँ । आप सभी अपना प्रोत्साहन और आशीष बनाये रखियेगा। आप सबों को अनेकों प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं

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