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सोमवार, 7 नवंबर 2022

3570 ...पंकज कभी भी बाप नहीं बन सकता!!

 सादर अभिवादन

आज दीदी बाहर गई
सो दो सोमवार मैं ही आऊँगी

आज की शुरुआत फिर लघुकथा से....



खाने का समय आया , वो बच्चे भोजन की तरफ टकटकी लगाए थे।
बार-बार भगाने पर भी आ रहे थे।
मुग्धा ने प्रतीक को भोजन निकाल कर दिया।
मुग्धा------कहाँ जा रहे हो बेटा,?
प्रतीक----- मम्मी वो अंदर नही आ सकते ,मैं तो बाहर जा सकता हूँ 
और खाना खिला सकता हूँ।
आसपास के लोग प्रतीक के जवाब से निःशब्द और भावुक हो गए।
बड़ों को ये ख्याल भी नही आया और व्यवहारिक बने रहे
जबकि प्लेटों मे इतना खाना बेकार जा रहा था।




वृष्टि, मेघ, फूल, ख़ुश्बू, नए सपनों का अंकुरण,
परचित छुअन उतरता है रूह में आँखों के मार्फ़त,

सहसा जी उठते हैं, विलुप्त हृत्पिंड के जीवाश्म,
जीवन लगता है पहले से कहीं अधिक ख़ूबसूरत,




टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर
अब वफ़ाओं के मुस्कुराने में देर न लगेगी

वो आलम वो लम्हा जो गवाह थे फ़साने के
उन लम्हो को बीतने में ज़रा भी देर न लगेगी



पार्टी में पंकज ने शिल्पा से कहा,''देखा, तुमसे तलाक लेने का मेरा निर्णय सही था ना! मैं बाप बन गया हूं!!"
''पापा बनने की बहुत-बहुत बधाई, पंकज।'' शिल्पा ने सामान्य रहते हुए जवाब देकर उसे एक लिफाफा देते हुए कहा,''पापा बनने की खुशी में मेरी ओर से एक 'अनोखा गिफ्ट'।"
''अनोखा गिफ्ट!" शब्द सुनकर पंकज को झटका लगा। क्योंकि सालगिरह पर "अनोखा गिफ्ट" कहकर पंकज ने शिल्पा को तलाक के कागजात दिए थे। आज शिल्पा उसे क्या अनोखा गिफ्ट दे सकती है? ये सोचते हुए उसने लिफाफा खोला। जैसे ही लिफाफे में रखा कागज उसने पढ़ा तो उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई। उसका खुद पर का कंट्रोल छुटने लगा। दिसंबर की कड़ाके की ठंड में भी वो पसीने से भीग गया। वो पंकज की मेडिकल रिपोर्ट थी जिसमें लिखा था कि पंकज कभी भी बाप नहीं बन सकता!!




चलेगी तू जिधर भी
राह बनती जाएगी ।
एक दिन चाँद पर
चढ़कर मुझे दिखलाएगी ॥
सुना होगा कि मछली
के नयन बेधे गए थे,
है सधता साधना से वाण
शक्ति गर लगन में है ॥




कुछ दुखता है कहीं अन्दर
धडकनें मद्धम सी लगती हैं

चुभता रहता है कुछ,
कोरें कांच की सी लगती हैं

दिल पर हाथ धर कर
संभलना पड़ता है फिर भी..


आज बस
सादर

9 टिप्‍पणियां:

  1. अति उत्तम संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. शुक्रिया यशोदा । सभी सूत्र गहन भाव लिए हुए ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार दीदी
    मुझे ज्योति बहन की रचना अच्छी लगी
    हम नारियां बेहद सहनशील होती हैं
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए, रचना को आज का शीर्षक बनाने के लिए और मेरी रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा करिएगा दीदी । सुंदर पठनीय अंक में...
    आशा की किरण.. अनिता सुधीर जी की..विचारणीय विषय पर सराहनीय लघुकथा ।
    जरूरत.. शांतनु सान्याल जी की .. जीवन संदर्भों पर सटीक विवेचना करती रचना ।
    देर न लगेगी.. अनामिका घटक जी की..अहसास और अनुभूति में पगी सुंदर रचना।
    अनोखा गिफ्ट.. ज्योति देहलीवाल जी की... स्त्री विमर्श पर संदेशप्रद और प्रशंसनीय कहानी ।
    सब ठीक है, फिर भी.. पारुल चंद्रा जी की.. नारी मन की संवेदना व्यक्त करती अभिव्यक्ति ।
    इस सुंदर संकलन में बेटी विमर्श पर लिखी मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभार आदरणीय दीदी।
    सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सभी रचनाएँ अपने आप में असाधारण हैं मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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