निवेदन।


फ़ॉलोअर

मंगलवार, 22 नवंबर 2022

3585 ..मौसमों के निशान, साहिल पर पड़े रहते हैं टूटे हुए सीप

 सादर अभिवादन

आज एक ग़ज़ल पढ़वाती हूँ
शायद ये शायर ज़नाब बशीर बद्र साहब शागिर्द हैं
उथल पुथल-... अशोक मिज़ाज बद्र
उलझी है राजनीति भी सरगर्मियों के बीच 
और खलबली मची है बड़ी हस्तियों के बीच

टकरा के टूट जाए न आपस में देखना
कुछ फ़ासला जरूरी है दो शक्तियों के बीच

उसका बिखरना तय था सो आख़िर बिखर गया
इक फूल घिर गया था कई तितलियों के बीच

माहौल ख़ुशगवार जरूरी है दोस्तों 
कैसे जले चराग़ कौई आंधियों के बीच

सोचा न होगा उसने कभी ख़्वाब में भी यूं
रहना पड़ेगा उसको भी रुसवाइयों के बीच

उसको एक आदमी की नज़र लग गई 'मिज़ाज' 
वो एक ही बहन थी कई भाइयों के बीच
....
अब पढ़िए रचनाएँ



सुनो ओ दिसंबर
तुम जब अपनी हल्की हल्की सर्द सुबह लिए आते हो ना
मेरे दिल की हर एक कली खिल जाती है
सुबह-सुबह की वो गुनगुनी धुप जब
अपने चरम पर मुस्काती है ना तब मुझे याद तुम्हारी आती है...




तुम छूटी तो जग छूटा।
जो था अपना हुआ सब पराया।
जग भर घूमी, अपना,
एक, आंगन ना पाया
तुम छूटी तो मेरी धूरी छूटी,
किसी ठौर ठिकाना ना पाया।





वक़्त उड़ जाता है हथेलियों में रह
जाते हैं कुछ एक रंगीन पंख,
कुछ अंधकार में टिमटिमाते
दो जोड़े आँखों की रौशनी,
चादर के सिलवटों पर
मौसमों के निशान,
साहिल पर पड़े
रहते हैं टूटे
हुए सीप




गांवों से हम शहरी
सब कुछ लेकर आए
श्रम का पसीना पोछने गमछा
पेट के भीतर की अतडिया
पर ओसारे पे बैठा भाईचारा
और बिना ताले के दरवाजे का भरोसा
तथा पूर्वजों की सभ्यता की डिबरियां
हम लाना  भूल गए





1857 के स्वतंत्रता संग्राम में दिलकुशा कोठी का अहम् रोल रहा है. 10 मई 1857 की सुबह मेरठ में विद्रोह का बिगुल बज गया और शाम होते होते दिल्ली चलो का नारा बुलंद हो गया. इसकी खबर लखनऊ भी पहुंची और वहां भी चिंगारी सुलगने लगी. अवध के नवाब वाजिद अली शाह को ईस्ट इंडिया कंपनी काफी पहले ही गिरफ्तार कर के कोलकोता भेज चुकी थी और अवध कब्जाने की तैयारी में थी. लोगों में इस बात को ले कर बहुत रंजिश थी. दूसरी बात थी की कम्पनी ने एनफील्ड राइफल फौजियों को बांटी. इसके कारतूस को मुंह से काट कर राइफल में भरना होता था. ऐसी खबर फ़ैल गई थी की कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई थी. फ़ौज में और आम जनता में इसका बहुत सख्त विरोध हो रहा था.





पवन कहे कानों में आकर
जीवन का ये सत्य बड़ा
सुख-दुख के प्रत्यावर्तन में
जीत उसी की रहा अड़ा
लुका-छिपी का खेल निराला
जगा रहा अबूझी प्यास


आज इतना ही
सादर

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीया सादर

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...