सादर अभिवादन
झूठ की छलकती गागर साजिशों का बाजार है
सौदा करूं किसका विधाता क्या यही संसार है।।
कांटो पर चलना आसान है दोस्तों यहां
फूलों से दर्द की खुशबू आती यही संसार हैं।।
समझाउ दिल को यहा कैसे हौसलों की उड़ान
हर कदम पर दिखते यहां सैयाद ही बेशुमार हैं।।
जज्बातों से खेलना,है फ़ितरत इंसान की
लम्हा लम्हा दुरूह क्या यही जीवन सार है।।
अंधेरे ही अंधेरे उजालो को खोजने जायें कहां
श्रद्धा विश्वास का यहां मिलता नही आधार है।
ये पंक्तिया श्रीमति उर्मिला सिंह जी की है
रीडिंग लिस्ट में है पर ब्लॉग में नहीं है
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रचनाएँ पढ़िए ....
ठंड खिल रही धीरे-धीरे।
धूप ढल रही धीरे-धीरे।
दिन तेजी से दौड़ लगाता
रात चल रही धीरे-धीरे।
जब हम साबूदाना वडा बनाते है तो यदि साबूदाना बराबर नहीं भिगा तो वडा तेल में फुटने का डर रहता है। कुछ लोग तो वडे तेल में फुट न जाए इस डर से साबूदाना वडा ही नहीं बनाते! खासकर ऐसे लोगों के लिए पेश है बिना साबूदाना भिगोए साबूदाना कटलेट बनाने की आसान रेसिपी। इस रेसिपी से कटलेट तेल में फुटने का डर नहीं रहेगा और कटलेट बनेंगे एकदम क्रिस्पी!!
कौन करता शुद्ध चिंतन
भाव का बस छोंक डाला
सौ तरह पकवान में भी
बिन नमक भाजी मसाला
व्याकरण का देख क्रंदन
आज फिर कविता सिसकती।।
कभी-कभी
साँसों को
मैं अटका कर रखता हूँ,
कुछ बातें
छिपाकर रखता हूँ।
दिन जो
धीरे-धीरे ढ़ल जाता है,
सोचती हूं
खोल दूं बचपन की कॉपियां और निकाल दूं
सब कुछ जो छुपाती रही
समय और समय की नजाकत के डर से
निकालूँ वह इंद्रधनुष और निहारूं उसे
जो निकलता था
मेरे बचपन की बारिशों में
आज बस
सादर
सभी रचनाएं बहुत सुन्दर हैं ,हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक है प्रिय दीदी! भूमिका में उर्मिला जी की रचना के साथ आज की प्रस्तुति में सब बढ़िया हैं।आज के अंक की बदौलत ही प्रिय प्रकाश के ब्लॉग पर काफी दिनों के बाद जाना मुमकिन हुआ।सभी पोस्ट अच्छी है।सभी सम्मिलित रचनाकारों को सादर बधाई।आपको विशेष आभार और प्रणाम 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजज्बातों से खेलना,है फ़ितरत इंसान की
जवाब देंहटाएंलम्हा लम्हा दुरूह क्या यही जीवन सार है।।👌👌👌👌🙏
बड़ी टिप्पणीं फिर गायब हो गई 🤫🤔
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स संजोए हैं आपने, सभी रचनाएं पठनीय आकर्षक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
उर्मिला दी की ग़ज़ल बेहतरीन लगी।उनका ब्लॉग तो है कई बार पाँच लिंक्स पर भी रहता है।❓
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
मेरी टिप्पणियाँ प्रकाशित होने के बाद भी गायब कैसे हो गई हैं??☹
जवाब देंहटाएंअभी तो है, बदस्तूर चमक रही है.... सादर
हटाएंअभी दिखी है, दो दिन से गायब थी।हैरानी की बात है कि प्रकाशित होने के बाद गायब हो जाती हैं।खैर कोई बात नहीं, अव लौट आई सन्तोष हुआ !हार्दिक आभार और प्रणाम प्रिय दीदी 🙂🙏🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को पांच लिंको का आनन्द में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
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