आज एक लम्बी कहानी पूरी हो गई
अपनी बेटी की शादी की खुशी
समापन किश्त ......
अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं आ रहा था. उस की आंखों में आंसू तैर आए.
उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं.
‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं?’
‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है,
जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना.’
वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी.
कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी. कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया.
दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी. मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं.
भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई.
दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं. 2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था. मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा कर अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया. कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा है. छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला.
मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था. मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था. अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी.
एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है.
शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक?
मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया.
शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में. एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी. एक सभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था,
सभी गाड़ी से बाहर निकले.
मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है.
उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए.
‘‘सर, मैं अमर…’’ वह बड़ी श्रद्धा से बोला.
मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया. उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी. अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था. मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया.
मिनी भाई पा कर बड़ी खुश थी.
अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा. उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया. उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए.
इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आंखें नम थीं. हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथ-साथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था.
मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि
इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास ही है.
रचनाएँ ......
इसी बीच इंग्लैंड वाले यह सोच हलकान हुए जा रहे कि उन्हें इतनी जबरदस्त बधाइयाँ क्यों मिल रहीं? पहले तो भारत उनसे हारकर दुखी था लेकिन अब उनकी जीत से प्रसन्न है! पाकिस्तान वाले भी हारने के बाद इतने कम दुखी क्यों लग रहे!
तभी कुछ लोग फोन पर बताएंगे कि यही तो हमारी सच्ची 'खेल भावना' है।
इस नवीन जानकारी को पाते ही भारत-पाकिस्तान अपनी महानता पर थोड़ा गर्व से इतराएंगे। लेकिन मंद मंद मुस्काये बिना भी न रह सकेंगे। लज्जा का यहाँ कोई स्कोप नहीं है।
आज प्रमुखता से कुछ अखबारों में छपा है कि कैसे सुनक जी भारत के लिए शुभ हैं। उधर वे (ऋषि सुनक जी) इंग्लैंड की टीम को बधाई देते हुए मन में एक बार तो सोच ही लेंगे कि "बेटा! जीत का असली हीरो तो मैं हूँ! बधाई की सौगात.. इधर भी है, उधर भी!"
उजली छिटकी गुनगुनी धूप,
प्रकृति रचती नित नवल रूप ।
हरियाये सुन्दर सब्ज बाग,
पालक बथुआ सरसों के साग ।
कार्तिक,अगहन व पूस मास,
पंछी असंख्य उतरे प्रवास ।
हुलसित सुरभित यह ऋतु हेमंत
आगत शिशिर, स्वागत वसंत ।।
मन मचला!
प्रणय में प्रिया की
मैं ले लूँ बला।
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मिलीं जो आँखें
मुझे आकाश मिला
फैलाऊँ पाँखें।
हम दोनों ऐसे मिले,
जैसे आइसक्रीम के दो स्कूप,
अच्छा रहा मिलन,
पर और अच्छा होता
अगर मैं थोड़ा कम पिघलता,
तुम थोड़ा ज़्यादा.
इससे पहले कि
तन्हाई की दीवार
इतनी लंबी हो जाए
कि उसमें मेरे और
तुम्हारे अरमानों का
क़त्ल हो जाये
आज इतना ही
सादर
बहुत अच्छे लिंक। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंजबरदस्त रचना
हटाएंरोचकता लिए, सराहनीय और पठनीय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी तबियत कैसी है
हटाएंहम बच्चे आपके स्वास्थ्य के प्रति चिंतित हैं
सादर नमन
जवाब देंहटाएंउम्दा एवं पठनीय लिंकों के साथ लाजवाब हलचल प्रस्तुति... मेरी रचना को स्थान देने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी !
बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण दिल को छूती कहानी
मुझे जवाब देना नहीं आता सच में
हटाएंसादर आभार
बहुत सुंदर अंक। कहानी भी बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी। तीनों किश्तें पढ़ ली हैं।
जवाब देंहटाएंमेहनत सफल हुई
हटाएंसादर
अति सुन्दर प्रस्तुति। यूँ ही विश्वास स्वयं प्रमाणित हो इस सुन्दर कहानी के माध्यम से जीवन में। अच्छा लगा पढ़कर।
जवाब देंहटाएंआभार दीदी
हटाएंसादर नमन
बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों का संग्रह
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