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शनिवार, 5 नवंबर 2022

3568... किताबों की दुनिया

          हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

उदयराज सिंह (जन्म :  सूर्यपुरा (रोहतास) राजवंश में 5 नवम्बर, 1921को हुआ) इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे। हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इनकी स्मृति में प्रतिवर्ष उदयराज सिंह स्मृति पुरस्कार से साहित्यकार को सम्मानित किया जाता है। अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने 'विकास' और 'सौरभ' नामक हस्तलिखित पत्रिका का संपादन किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अशोक प्रेस की स्थापना कर 'नई धारा' पत्रिका का संचालन प्रकाशन करने लगे, जिसके आद्य संपादक थे रामवृक्ष बेनीपुरी।

सम्मान पाने के लिए किसी को मजबूर नही किया जा सकता है, ना ही सम्मान की भीख मांगी जा सकती है। यह कमाया जाता है और अपने आप ही प्राप्त होता है। जानना है तो जाने...

किताबों की दुनिया

जालिब की शायरी सीधी दिल से निकली हुई शायरी है वो अपनी रचनाओं में बेहद आसान लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करते थे उन्होंने इस बात का इज़हार अपने एक शेर में यूँ किया है :

जालिब मेरे शेर समझ में आ जाते हैं 

इसलिए कम-रुतबा शायर कहलाता हूँ

किताबों की दुनिया

मैं तो सबसे हाथ जोडक़र निवेदन करूँगा कि छात्र जो हमारे बच्चे हैं, जिसमें मेरा बच्चा भी हो सकता है; आपका बच्चा भी हो सकता है; किसी का भी बच्चा हो सकता है; उनके साथ अपराधी की तरह नहीं, एक अच्छे नागरिक की तरह से व्यवहार करना चाहिए। छात्र देश के कर्णधार हैं; हम सबको इस पर सोचना चाहिए। हर बच्चा किताब खरीद नहीं सकता। जब किसी छात्र को बेहतर माहौल मिलेगा; शान्ति से पढ़ाई करने का मौका मिलेगा; सुरक्षा मिलेगी; उसके बाद ही वह किताब खरीद सकेगा, पढ़ सकेगा।

किताबों की दुनिया

हो सकता है कि अपनी बात कहते हुए मैं इसकी सही तारतम्यता भूल जाऊं, लेकिन मकसद सही शब्द नहीं, बल्कि शब्दों के सही अर्थ इस संक्षिप्त कहानी के माध्यम से आप तक पहुंचाना है। इस एक लंबी कहानी का सार ये है कि दो व्यक्तियों में जो एक बड़ी धनराशि को लेकर शर्त लगती है, इसके चलते उनमें से एक व्यक्ति को एक कमरे में बेसिक ज़रूरत की चीज़ों के साथ एक तयशुदा समयसीमा अकेले काटनी होती है। तब वह व्यक्ति किताबों का साथ मांगता है।

किताबों की दुनिया

ईद, दशहरा, दीवाली का रंग है फीका फीका सा

त्योंहारों में इक दूजे को गले लगाना भूल गए

बचपन में हम जिन गलियों की धूल को चंदन कहते थे

बड़े हुए तो उन गलियों में आना जाना भूल गए

शहर में आ कर हमको इतनी खुशियों के सामान मिले

घर-आँगन, पीपल-पगडण्डी,गाँव सुहाना भूल गए

किताबों की दुनिया

मुश्किल है थोड़ा इसको पढ़ना।

लेकिन यह है शिक्षा का भण्डार।।

पढ़ना लिखना जिसने चाहा।

उच्च शिखर को पाना चाहा।।

गर सपने को हो पूरा करना।

किताबों की अनूठी दुनिया में घुस जाना।।


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पुनः भेंट होगी...
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3 टिप्‍पणियां:

  1. किताबों की दुनिया वाकई एक तिलिस्म से कम नहीं होती

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीया मैम, सादर प्रणाम । साहित्य-जगत से जुड़ी हुई अत्यंत सुंदर और प्रेरक प्रस्तुति है । अब मैं ब्लॉग पर कम आ पाती हूँ, m.a की पढ़ाई के कारण । आज पुनः बहुत दिनों बाद आना हुआ और आपकी इस प्रस्तुति ने मन को आनंदित कर दिया, सदा की तरह । साहित्य से जुड़ी, वर्तमान काल में हो रही गतिविधियों की जानकारी देती और पुस्तकों का महत्व उजागर करती अत्यंत आनंदकर और ज्ञानवर्धक प्रस्तुति मेरी प्रिय हलचल में से एक है। मैं इसे सहेज रही हूँ और अपने कुछ पुस्तक- प्रेमी मित्रों को साझा भी करूँगी । आधुनिक-काल के हिन्दी लेखक व लेखिकाओं के बारे में जानकारी पा कर अच्छा लगा । इन लेखकों की कुछ किताबें मंगवाने का भी सोच रही हूँ क्यूंकी ट्रेन और बस की भीड़ में पुस्तक पढ़ते हुए सफर करना मुझे भी अच्छा लगता है । यह जान कर भी अच्छा लगा कि हिन्दी दहिती में युवाओं की रुचि बढ़ गई है , यद्यपि यहाँ मुंबई में मैं यह अनुभव नहीं करती । मेरे कॉलेज में कुछ सहेलियाँ हैं जो हिन्दी पढ़ती- लिखती हैं पर मेरे अधिकतर सहपाठी अंग्रेज़ी में पढ़ पान अधिक सरल और फैशनबल मानते हैं और हिन्दी दादी-नानी की भाषा। मुझे हिन्दी और अंग्रेज़ी , दोनों ही पढ़ना अच्छा लगता है पर हिन्दी से विशेष लगाव यही क्यूंकी मेरी मातृभाषा है और मैं इससे निकट महसूस करती हूँ । इस आनंदकर प्रस्तुति के लिए हृदय से आभार व आप सबों को पुनः प्रणाम । प्रयास करूँगी कि नियमित आ सकूँ ।

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