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सोमवार, 25 अप्रैल 2022

3374...कभी लड़े-झगड़े, कभी साथ मुस्कराये हम...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय विकास नैनवाल जी की रचना से। 

सादर अभिवादन

सोमवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

किस्से सुनाने

दहशतजदा दीवारों में

जंग लगी

खिड़कियों को बंद कर

देखना पड़ता है

छत की तरफ़

नींद में चौंककर

रोना पड़ता है

बच्चों की तरह

मन-मस्तिष्क की दीवारों पे...

ईंट की दीवारों की जगह

मन-मस्तिष्क की दीवारों पे,

काश ! .. कुछ इस तरह

हो पाते अंकित ये नारे

"स्वच्छ भारत अभियान" के।

जागृत देवता हैं पुस्तकें

अपरिमित ध्रुवों को समेटे

विस्तार धारे अपने अंक में

क्या कुछ नहीं गर्भ में भरा

जगत आधारी है ॥

रामधारी सिंह दिनकर

धारी दिनकर सिंह का, लेखन कार्य महान।

अलख क्रांति की नित जगा, रखा देश का मान।।

रखा देश का मान, खरी खोटी थे कहते।

रहे सदा निर्भीक, झूठ को कभी न सहते ।।

पात्र या दर्शक?

नाटकों के पात्र हैं हम सब,

नही किसी पात्र के दर्शक,

हमारा कर्म है अभिनय,

हमारा धर्म है अभिनय,

हमारे कर्म का,सत्कर्म का,

मंजिल

कभी लड़े-झगड़े, कभी साथ मुस्कराये हम

न जाने कब एक दूसरे की मंजिल हो गए

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचनाओं का गुलदस्ता..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात !
    विविध रचनाओं का सुंदर अंक ।
    मेरी कविता को शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार, सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
    आपको मेरा नमन और वंदन आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर रचनाओं का संकलन। मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर लिंक संयोजन के लिए
    साधुवाद
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. जी ! नमन संग आभार आपका ... मेरी बतकही को यहाँ जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं

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