शीर्षक: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन
सोमवारीय अंक के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की ताज़ा-तरीन रचनाएँ-
राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, झूल रहे इठलाई ।
कोई चले घुटने, कोई बकइयाँ, कोई भागि लुकाई ॥
राजा दशरथ चुमकारि बोलावें, तबहूँ न आवें भाई ।
हारि गए राजन जब पकरत, मातु लियो बुलवाई ॥
वेद भी करते रहे जिसका सदा गुणगान
सत्य,शाश्वत, और सनातन रूप वह अभिराम
राम विनयी और विजयी ,रहे अपराजेय
मन्थराओं का सियासत में नहीं अब काम
ग़ज़ल | हमको जीने की आदत है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नवभारत
बोरी भर के प्रश्न उठाए, कुली सरीखे आज
संसद के दरवाज़े लाखों चेहरे खड़े उदास।
जलता चूल्हा
अधहन मांगे, उदर पुकारे कौर
तंग ज़िन्दगी कहती अकसर-‘तेरा काम खलास!’
दौड़ आंचल तेरे जब मैं छुप जाता था
फूल खिल जाते थे कूजते थे बिहग
माथ मेरे फिराती थी तू तेरा कर
लौट आता था सपनों से ए मां मेरी
मिलती जन्नत खुशी तेरी आंखों भरी
दौड़ आंचल तेरे जब मै छुप जाता था
क्या कहूं कितना सारा मै सुख पाता था
नए ट्विस्ट के साथ एक प्राचीन नीति-कथा
24 वर्ष पूर्व: 'रामनवमी' पर ही हुआ था 'लीजेण्ड न्यूज़' का प्रवेशांक प्रकाशित
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर..
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
वैविध्यतापूर्ण रचनाओं से सज्जित बहुत सुंदर, रोचक अंक ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार और अभिनंदन आदरणीय।
अभी को हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत ही बेहतरीन लिंक्स।सभी को सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी, मेरे व मेरी टीम के संकल्प को अपने इस मंच पर साझा किया, आपका बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएं