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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

3378....जात न पूछो औरत की

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का स्नेहिल अभिनंदन।
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भूख-प्यास,
ध्वनियां-प्रतिध्वनियाँ
तर्क-वितर्क,  विश्लेषण 
शब्दकोश, कल्पनाएँ
यहाँ तक कि
जीवन और मृत्यु की
 परिभाषा के स्थान पर
अब नये शिलापट्ट अंकित किये गये हैं
जिस पर लिखा गया है राजनीति...।

विषय-वस्तुओं,भावनाओं,
के  राजनीतिकरण के इस  दौर में
कवि-लेखक,चिंतकों की
लेखनी का 
प्रेम और सौहार्द्र के गीत भुलाकर
पक्ष-विपक्ष के
ख़ेमे में विभाजित होकर
खंजरी बजाते हुए अलग-अलग धुन में
एक ही गीत गाना
राजनीति-राजनीति-राजनीति
राजनीतिकरण के इस 
असंवेदनहीन दौर में
आपका स्वागत है...।

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आइये आज की रचनाओं के संसार में-


जरूरतमंदों को हमारे आपके स्नेह और सही दिशानिर्देशन की आवश्यकता है न कि
दिखावा,कृत्रिमता,भावनाओं का छद्म प्रदर्शन 
की। सबसे अलग तरह के बिंबों से सजी मन को झकझोरती एक धारदार अभिव्यक्ति-

तमाम 'सोशल मीडिया' पर जब-जब 
तमाम बहुरंगी 'सेल्फियाँ' हैं अपनी बिखेरते,
कई सारे 'टैग्स' और 'कैप्शन्स' भरे,
करते हुए भव्य स्वघोषणा स्वयं के 
एक सभ्य समाजसेवी होने के,
चंद बच्चों को किसी 'स्लम एरिया' के 


स्त्रियों के सम्मान में कही गयी सारगर्भित अभिव्यक्ति
एक नवीन दृष्टिकोण 
महिला ने उल्टा ही पूछ लिया...
       एक मां की या एक महिला की
उसने कहा....चलो दोनों की बता दो.....
     और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान बिखेरी।
महिला ने भी पूरे धैर्य से बताया




लेकिन अब
चूहानुमा
मानवीय नस्ल
राजनीति से
आ गई है
प्रेम में भी,
छोड़ जाती है साथ
संकट की घड़ी में
प्रेम रह जाता है
हो कर आहत
एक
डूबे जहाज की तरह


भाषा कभी भी भावनाओं की अभिव्यक्ति में बाधक नहीं हो सकी है। शब्दों को महसूस किया जा सके वही  कविताएँ भाषा,देश की सीमाओं को
तोड़कर पाठकों को छू जाती है-

पारदर्शी हो उठता है 
मोटा आवरण! 
साफ़ हो जाता है प्यार का मतलब! 
साबुन के बुलबुले की तरह 
विस्फोट होता है प्यार का! 
लेकिन, उसी बुलबुले से 
गिर जाती है समूची दुनिया! 


और चलते-चलते एक प्रेरक कहानी
अपमान का उत्तर देने के लिए इससे सभ्य और अच्छा तरीका  कुछ नहीं शायद....
दूसरे दिन वे भारत लौट आए  फोर्ड कंपनी के मालिक के बेहद ही नकारात्मक कमेंट को भी इन्होंने सकारात्मक रूप में लिया। बिल की बातों को उन्होंने दिल पर नहीं लिया, बल्कि उसे दिमाग पर लिया और कंपनी बेचने की सोच को ना सिर्फ टाला बल्कि उन्होंने ठान लिया था कि वे कंपनी को ऊंचाइयों पर पहुंचाएंगे। रतन टाटा ने उस कंपनी को फिर से ऐसी खड़ी की उसने नया इतिहास रच डाला।  भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना पूरा फोकस मोटर लाइन में लगा दिया उनके इरादे बुलंद थे। लक्ष्य बस एक था, फोर्ड को सबक सिखाना है। लेकिन चैलेंज बहुत बड़ा था। 

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आज के लिए बस इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।
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6 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. इस मंच पर अपनी आज की .. हर बार की तरह संदेशात्मक भूमिका की शुरुआत के साथ वाली और पैनी विश्लेषणों से सजी इंद्रधनुषी प्रस्तुति में मेरी बतकही को स्थान प्रदान करने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुतै सुंदर अंक..
    साधुवाद..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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