शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिनंदन।
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वृक्ष की फुनगी से
टुकुर-टुकुर पृथ्वी निहारती
चिड़िया चिंतित है
कटे वृक्षों के लिए...।
धूप से बदरंग
बाग में बेचैन,उदास तितली
चितिंत है
फूलों के लिए...।
पहाड़ के गर्व से अकड़े
कठोर मस्तक
चिंतित हैं
विकास के बूटों की
कर्कश पदचापों से...।
मनुष्यों के स्वार्थपरता से
चिंतित ,त्रस्त, प्रकृति के
प्रति निष्ठुर व्यवहार से आहत
विलाप करती पृथ्वी
का दुःख सृष्टि में
प्रलय का संकेत है।
-श्वेता
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
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वक्ष पटल पर पड़ी लकीरें
चोट तुम्हीं ने पहुँचाई
नाखूनों से नोचा तुमने
पीड़ा से मैं अकुलाई
कमी अन्न की खलिहानों में
चित्र सोचती अब कल की ।।
तप्त हृदय अब कबसे प्यासा
धीरज की गगरी छलकी।।
चिड़िया पहुँची इक जंगल में,
सोचा रहूँ यहाँ मंगल में,
टूटी यह आशा भी पल में,
देखे आते मानव दल में !!!
उनके हाथ कुल्हाड़ी, आरी,
उनकी नीयत थी शैतानी !
भटकी इधर-उधर बेचारी
सुन लो उसकी करूण कहानी !
सदियों से पोषक हूँ सबका
कृतघ्न बन ना दो धोखा ,
निष्प्राण नही निःशब्द हूँ मैं
कहूँ कैसे अपने मन की व्यथा ?
जड़ नही चेतन हूँ मैं
दुखता है मन मेरा भी !!
विज्ञापन की बाढ़ बह रही
चलो बचाएँ जल की बूँद
देख लिया और समझ लिया
आह ! भरी, ली आँखें मूँद
क्या कारण है ? पता सभी को
ठिठक बहे जलधारा क्यूँ है ?
नल का पानी खारा क्यूँ है ?
दुनिया को कई दफा समझने का पूरा प्रयास करता हूं लेकिन पाता हूं कि वह वैसी नहीं है जैसे मैं उसे समझता हूं, वह वैसी है जैसी हमने उसे बना दिया है। हम साहूकार से हो गए हैं और साहूकार सा ही आचरण करने लगे हैं। हमें ज्ञान और बातों में अब कोई नहीं पराजित नहीं कर सकता लेकिन हकीकत ये है कि हम कभी जीत नहीं पा रहे हैं ये हम जानते हैं, हालांकि दुनिया जो देखती है वो हमारा आवरण है, हमारे अंतस को दुनिया महसूस नहीं कर सकती।
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आज के लिए बस इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।
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वृक्ष की फुनगी से
जवाब देंहटाएंटुकुर-टुकुर पृथ्वी निहारती
चिड़िया चिंतित है
कटे वृक्षों के लिए...
सुंदर रचना के साथ सुंदर अंक
पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएं
सादर..
बढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंमनुष्यों के स्वार्थपरता से
जवाब देंहटाएंचिंतित ,त्रस्त, प्रकृति के
प्रति निष्ठुर व्यवहार से आहत
विलाप करती पृथ्वी
का दुःख सृष्टि में
प्रलय का संकेत है।///
प्रिय श्वेता,धरती को उसकी संततिमाँ भी कह पुकारती है और दिन-रात अपने स्वार्थ के हथियार से उसका सीना भी छलनी किये दे रही है।बहुत सटीक विश्लेषण कर शब्दों में ढाला है तुमने धरती माँ की पीड़ा को।धरती का मूल स्वरुप,पहाडों का सौन्दर्य और वनस्पति का स्नेहिल प्रश्रय,सब मिटने को तैयार हैं।ये संभवतः प्रलय की ही आहट है। आखिर अनावश्यक दोहन और खुद से खिलवाड़ कैसे और कब तक सहे ये संतप्त धरा!
तुम्हारी भूमिका ने सब कह दिया।तितली की व्यथा,चिडिया की मायूसी और पेड़ों की चिन्ता।पर कहीं नज़र नहीं आती स्वार्थी मानुष की दूरदर्शिता भरी दृष्टि,जिसके माध्यम से वह भविष्य की विनाशलीला को देख सके।
बेहतरीन भूमिका और भावपूर्ण रचनाओं केसाथ एक उत्तम प्रस्तुति के लिए आभार और शुभकामनायें।आज के अंक शामिल
सभी रचनाकारों को सप्रेम बधाई ।पृथ्वी के अस्तित्व को बचाने के लिए कुछ प्रयास करें तभी पृथ्वी दिवस की बधाई लेँ या दें।सस्नेह 🌺🌺❤❤
विश्व पृथ्वी दिवस पर बढ़िया प्रस्तुति । चिड़िया , पहाड़ , पेड़ पौधे सब चिंतित हैं लेकिन मनुष्य सब नज़रअंदाज़ किये बैठा है । बढ़िया संकलन।
जवाब देंहटाएंमेरी पुरानी रचना को इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंआज की लाजवाब प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सखी ।
जवाब देंहटाएंपृथ्वी दिवस पर लिखी सुंदर भूमिका ने अंक को चार चांद लगा दिए । मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभार आपका ☺️
इस अंक को समर्पित एक पिरामिड 👏
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हो
वृक्ष
रोपण
कण कण
भू संरक्षण
प्रतिज्ञा समाज
पृथ्वी दिवस आज ।।
जिज्ञासा सिंह
बेहतरीन प्रस्तुति।
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