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बुधवार, 6 अप्रैल 2022

3355...सन्नाटे में डूबी गर्मियों की वो दुपहरी..

 ।।प्रातः वंदन ।।


"आमों की खुशबू में लिपटी गर्मियों की वो दुपहरी

शहद, गुड़, मिसरी से मीठी, गर्मियों की वो दुपहरी।


याद हैं वो धूप में तपती हुई सुनसान गलियां

और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की वो दुपहरी।"

राजीव भरोल 'राज'


सहस्त्रचित्त आलौकिक क्षण स्वर और व्यंजनों से

सहस्त्र शब्द सृजन इन्हीं सीमित स्वर और व्यंजनों से 

..#तृप्ति

लिजिए आज की पेशकश में मिलीजुली भावों को लेकर आए हैं..जो कह रही है ,मेघों ने छेड़ा जीवन राग...  ✍️



अम्बर में घिर आए घन

पछुआ चलती सनन सनन और 

मेघों ने छेड़ा जीवन राग

पुष्पों में खिल आए पराग

हर्षित धरती का हर कण

 पछुआ चलती सनन सनन

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गमक उठे हैं साल वन

ढाक-साल सब खिल गए, मन मोहे कचनार।

वन प्रांतर सुरभित हुए, वसुधा ज्यों गुलनार।।


गमक उठे हैं साल वन, झरते सरई फूल।

रंग-गंध आदिम लिए, मौसम है अनुकूल..

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तसव्वुर

संग पानी के रेत दरियाँ की लिपटी क़दमों से ऐसे l
मृगतृष्णा सी हिना सज गयी रेगिस्तान में जैसे ll

आसमाँ भी उतर आया सुन इसके झांझर की झंकार l
मुद्दतों बाद कोई सौगात ले आयी रंगों नूर की बारात ll

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न राह है - न चाह है - ना कहीं निगाह है...

alt="NA RAAH NA CHAAH"
न राह है - न चाह है
ना कहीं निगाह है,
ना कहीं पर महफ़िलें
ना ही वाह-वाह है...

ना ही अब ख़ुशी

➖➖

जो भी दिन थे पुराने सुहाने लगे ।

उनकी ज़ुल्फ़ों तले शाम होगी कभी,
ऐसा मौसम बना पर ज़माने..

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।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


5 टिप्‍पणियां:

  1. ढाक-साल सब खिल गए,
    मन मोहे कचनार।
    सुन्दर रचनाओं से सुसज्जित अंक
    आभार
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सूत्रों से सजा बहुत सुन्दर संकलन । “मेघ” को संकलन में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार पम्मी जी ।

    जवाब देंहटाएं

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