शीर्षक पंक्ति: आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर
हूँ।
आइए पढ़ते
हैं आज की
पसंदीदा रचनाएँ-
जितनी बार विश्वास किया
हर बार भरोसा टूट गया
अब मुझे किसी पर विश्वास नहीं
होता
हरबार यही लगता है कहीं यहाँ भी फ़रेब की
दुकान तो नहीं है |
दिगंत पर आ
कर मैं ढूंढता हूँ शब ए
गुज़िश्ता का निशां,
कौन, किस
सिम्त
जा
मुड़ा कहना है बहुत मुश्किल,
देखा हाथों में हमने अक़्सर स्वदेशी की बातें करने वालों के,
विदेशी नस्ली किसी कुत्ते के गले में लिपटे हुए विदेशी पट्टे।
देखा बाज़ारों में हमने अक़्सर "बाल श्रम अधिनियम" वाले,
पोस्टर चिपकाते दस-ग्यारह साल के फटेहाल-से छोटे बच्चे।
बच्चों के हाथों से छीनते रोटी
जात-पात की फेंकते गोटी।
ग़रीबों का उजड़ता देख चूल्हा
हे कवि! तुम्हारा पेट नहीं फूला?
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन अंक.
जवाब देंहटाएंआहों के कपास थामे,
सोचों की तकली से,
काते हैं हमने,
आँसूओं के धागे .. बस यूँ ही ...
व्वाहहहह
सादर नमन
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |
मुझे शामिल करने हेतु ह्रदय तल से आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंजी ! नमन संग आभार आपका .. अपनी आज की नायाब प्रस्तुति में मेरी बतकही को स्थान देने के लिए ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक.
जवाब देंहटाएंआहों के कपास थामे,
सोचों की तकली से,
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जवाब देंहटाएंamazing content keep sharing punjabi status maa
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