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सोमवार, 23 नवंबर 2020

1954..कंकर-कंकर में है शंकर, अणु-अणु में बसते महाविष्णु

सादर अभिवादन
सोमवार शुभ हो
सीधे चलते हैं रचनाओं की ओर..



आज की इस भागमभाग में
दुनिया के समंदर में
वेदनाओं के भंवर में
संवेदनाओं के लिए वक्त कहां
आज संवेदना उठती है मन में
बसती है दिल में
और दिमाग में सिमट जाती है




सड़क पर भीड़ थी,
कोलाहल था, हलचल थी
आँखों के सामने
चलती बस से कूद कर
सड़क पर गिरी घायल लड़की की
तड़पती हुई देह थी !
यह दम तोड़ती लड़की





कंकर-कंकर में है शंकर 
अणु-अणु में बसते महाविष्णु, 
ब्रह्म व्याप्त ब्राह्मी सृष्टि में 
क्यों भयभीत कर रहा विषाणु !




देखा है कई बार प्रेम से चलकर ।
जिया भी प्रेम के संग,
यहाँ वहाँ इधर उधर ।।
आसमानों में । बाग़ानों में ।।
झील के किनारों पे ।चाँद और सितारों पे ।।



10 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति जो मन में नए प्रश्न जगाने के साथ साथ सुकोमल और अनंदकर भावों से भर देती हैं। पढ़ कर आनंद आया। सभी को शुभ प्रभात और प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  3. सस्नेहाशीष असीम शुभकामनाओं के संग छोटी बहना
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी ! आज के इतने सुन्दर संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !

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  5. आदरणीय यशोदा दी.. प्रणाम,
    सुंदर चयन के साथ साथ सुंदर प्रस्तुति..मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हृदयतल से आपका आभार व्यक्त करती हूँ..।सादर धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. पाँच लिंकों की खबर देता सुंदर अंक, मन पाए विश्राम जहाँ को भी इसका हिस्सा बनाने के लिए आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर संकलन और मेरी रचना को पाँच लिंकों की खबर में स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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