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शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

1659 चलिए चलें वासंती रचनाओं की ओर

सादर अभिवादन
जनवरी का अंत तुरंत
कल से माह फरवरी
लेकर आ रहा है
काफी सारे उत्सव
और ढ़ेर सा कर
बजट माह जो है

आज सखि श्वेता नहीं है
सो हमे झेलिए...
हंसी-मजाक
धूम-धमाके 
का मौसम सुरु हो गया है
ये गलती नही है
सुरूर से सुरु हो गया शुरु
चलिए वासंती रचनाओं की ओर...
शुरुआत एक गीत से ...
मात जननी वागीश्वरी वीणावादिनी
धवल सरल सुमुखि चंद्र मालिनी
कर में धारण वेद पुराणन ज्ञानिनी
झरे मृदु गान अधर स्मित मुस्कान
स्निग्ध निर्मल कोमल पतित पावन
निःशब्द जगत की मुखरित वाणी
वीणा से बरसे स्वर अमृत रागिनी
रंग की बरखा हिय आहृलादित
ऋतु मधुमास धरा केसरी शृंगारित
द्वेष,क्लेश,मुक्त कला,ज्ञान युक्त
शतदल सरोज हंस वाहन साजिनी
कर जोड़ शीश नवा करूँ विनती 
विद्या बुद्धि दे दो माँ ज्ञानदीप प्रकाशिनी
-श्वेता सिन्हा

बहती बयार का सुरम्य झोंका हूँ,
नील गगन में उड़ता पाखी मैं,
चाँद निहारे चातक-सी आकुल हूँ
पावस ऋतु में सतरंगी आभा मैं,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं... हवा हूँ...

वो बहती, सी धारा,
डगमगाए, चंचल सी पतवार सा,
आए कभी, वो सामने,
बाँहें, मेरी थामने,
कभी, मुझको झुलाए,
उसी, मझधार में,
बहा ले जाए, कहीं, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!

उतरी हरियाली उपवन में,
आ गईं बहारें मधुवन में,
गुलशन में कलियाँ चहक उठीं,
पुष्पित बगिया भी महक उठी, 
अनुरक्त हुआ मन का आँगन।
आया बसन्त, आया बसन्त

आज प्रफुल्लित धरा व्योम है 
पुलकित तन का रोम रोम है 
पिक का प्रियतम पास आ गया 
बसंती मधुमास आ गया 
डाल डाल पर फुदक फुदक कर 
कोकिल गूंजा रही है 

मौसम ने अब ली अँगड़ाई,शीत प्रकोप घटे,
नव विहान की आशा लेकर,अब ये रात कटे।

लगे झूलने बौर आम पर,पतझड़ बीत रहा ,
गुंजन कर भौंरा अब चलता ,है मकरंद बहा।
...
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......
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सादर










8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की भाषा मनुष्य न जाने कब समझ पाएगा। कल अपने प्यारे बापू की पुण्यतिथि थी, परंतु देश का हृदय हिंसा से जल रहा था । अब तो हर घटनाक्रम को वोट बैंक की राजनीति जोड़कर देखा जाता है।
    डिबेट के दौरान जिस तरह से हमारे समाज के पढ़े-लिखे जिम्मेदार लोग कल आग उगल रहे थें। उसे देख क्या हमारे राष्ट्रपिता की आत्मा रुदन नहीं कर रही होगी।
    खैर, साहित्यकारों को सृजन के माध्यम से इस ईश्वरीय गुण ( प्रेम) का निरंतर पोषण करते रहना चाहिए , क्योंकि वह समाज का पथप्रदर्शक है।
    जब अंतर्जगत का सत्य बहिर्जगत के सत्य के संपर्क में आकर संवेदना उत्पन्न करता है, तभी इस तरह के साहित्य की सृष्टि होती है।
    यही प्रेम है , इस कोमलता को नष्ट न होने दिया जाए।
    ऋतुराज बसंत का भी तो यही संदेश है न..
    सुंदर और समसामयिक प्रस्तुति यशोदा दी, सभी रचनाकारों को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
    सुंदर प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन संकलन
    बसंत ऋतु का सुंदर स्वागत

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया दीदी. मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार आपका
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति है दी
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी है।
    मेरी लिखी पंक्तियों को मान देने के लिए बहुत आभार दी।

    जवाब देंहटाएं

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