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सोमवार, 25 जून 2018

1074...हम-क़दम का चौबीसवाँ क़दम


बीज के आवरण को भेद कर जो नन्हा ,
नरम कोंपल निकलता है 
उसे अंकुर कहते हैं।
बेहद कोमल भाव जागते है अंकुर शब्द के उच्चारण से। अंकुर जीवन 
का प्रतीक है,  एक आशा को पल्लवित करती है। ठूँठ, बंजर और 
निराशा की कठोर धरती को फोड़ कर निकले अँखुए हृदय में सकारात्मकता का संचरण करते हैं।

नारी के कोख के अंकुर से मानव का जन्म होता है।
धरा पर अंकुर फूटे तो प्रकृति का श्रृंगार होता है।
विचारों का अंकुर फूटे तो आविष्कार होता है।

अंकुर सृष्टि के निर्बाध संचालन का द्योतक है। जब तक अंकुर 
फूटते रहेंगे धरा पर जीवन का कोलाहल हमसब सुनते रहेंगे।

अब चलिए आप सबों के विचारों के अंकुर से प्रस्फुटित आज के विषय 
पर लिखी गयी रचनाओं की ओर।
कुछ नयी और कुछ पुरानी रचनाओं के मिश्रण से बना आज का यह विशेषांक आप पाठकगण को समर्पित करते हैं......

 सादर नमस्कार

🔷💠🔷💠🔷

आदरणीया कुसुम कोठारी जी की दो रचनाएँ
बीजाकुंर

सच ही है धरा को चीर अंकुर
जब पाता उत्थान है
तभी मिलता मानव को
जीवन का वरदान
सींचता वारिध उस को
कितने प्यार से
पोषती वसुंधरा , करती
उसका श्रृंगार है

भर लूं उन को बस मुठ्ठी मे
उन्हें छींट दूं आगंन मे
आंख के आंसू जब
बारिश बन कर बरसेंगे
नव खुशियों के अंकुर फूटेगें
प्यार की कलियाँ चटकेगी
रंग बिरंगे फूल खिलेंगे

🔷💠🔷

आदरणीया शुभा मेहता जी
अंकुर

इक बीज के हृदयतल में
बसता है इक छोटा अंकुर
अलसाया सा....
सोता हुआ.....
उठो ,उठो ..
रवि नें आकर चुपके से कहा
उठो ,उठो ....
वर्षा की बूँदों नें
आवाज़ लगाई ....

🔷💠🔷
आदरणीया सुप्रिया रानू जी

संग हंसने संग रोने के वादे,
एक दूसरे का सुख दुख बांटने का जज़्बा,
एक दूसरे के कदम से कदम मिला कर चलने के कसमे,
एक दूसरे के लिए खुद को भुला देना 
एक दूसरे में ही खुद को पा जाना,
होंगे न जाने कितने अंतर्मन के सागर की लहरों के झकोरे,
न जाने कितने उठते दबते ज्वर 
तब जाकर हृदय में पनपा होगा 
अंकुर प्रेम का....


🔷💠🔷

आदरणीय पंकज प्रियम जी
अंकुर

यूँ हीं नहींप्रस्फुटित होता है बीज अंकुर बनकर,
रहना पड़ता है धुप्प अंधेरों में जमीन के अंदर।
नवसृजन करता,जीवन का वही आधार बनता
होता है अंकुरित वो स्वयं का अस्तित्व खो कर।

🔷💠🔷

आदरणीया आशा सक्सेना जी
प्रेम के फल

गहरे बोए बीज प्रेम के
सींचा प्यार के जल से
मुस्कान की खाद डाली
 इंतज़ार किया शिद्दत से
बहुत इंतज़ार के बाद
दिखे अंकुरित होते चार पांच
 हुई  अपार प्रसन्नता देख  उन्हें 
 देखरेख और बढाई

🔷💠🔷

आदरणीय अमित जैन "मौलिक"
उफ़ान

तो समझा 
अब तक क्या जिया।
खुरदुरेपन में फूटे 
नवीन अंकुर
निकल आईं शाखायें
अब मैं हरा भरा हूँ
हाँ एक ही जगह खड़ा हूँ,

🔷💠🔷

पर पत्थर बनना आसान न था!
बची रह ही गयी थी नमी कंही
और शायद मिट्टी भी........
उड़ आए बीज कंही से;
कि लाख कोशिशों के बावजूद
उग ही आये कुछ अंकुर
बातें करने लगे हवा से
नाता जोड़ लिया इस धरा से,
गगन से और इंसानों से.......

🔷💠🔷

आदरणीया मालती मिश्रा जी
स्वार्थ का अंकुर

जुड़े हुए होते हैं जिनसे
गहरे रिश्ते जीवन के
टूटी एक कड़ी कोई तो
रिश्तों से प्यार फिसल जाते हैं
स्वार्थ का बीज अंकुर होते ही
काली परछाई घिर आती

💠🔷🔷

आदरणीया प्रभा मुजुमदार जी
शब्द

मिट्टी से सोच
आकाश की कल्पना
वक़्त से लेकर
हवा, धूप और बरसात
उग आया है
शब्दों का अंकुर

🔷💠🔷

आदरणीया डॉ. इन्दिरा गुप्ता जी
अंकुरण

कोमल पँखुरिया खुल  के 
खिल  कर स्पंदन करें नित्य 
हर मन अंकुर शाश्वत सा हो 
हर ओर दिखे आता बसंत !

🔷💠🔷

आदरणीया मीना शर्मा जी
मेघ-राग

चंचल दामिनी दमके,
घन की स्वामिनी चमके,
धरती पर कोप करे,
रुष्ट हो डराए....

गरजत पुनि मेह-मेह
बरसत ज्यों नेह-नेह
अवनी की गोद भरी
अंकुर उग आए....

🔷💠🔷
आदरणीया पूजा पूजा जी एक रचना
रुको ज़रा ठहरो

मत डालो खलल मेरी नींदों में
अभी ही तो मैंने सपनों के बीज बोए हैं
अभी ही तो ख्वाबों के अंकुर फूटे हैं
उम्मीदों की नर्म गीली मिट्टी पर
अभी ही तो हसरतों की कलियां गुनगुनाई हैं
तितलियाँ खुशियों को अभी उड़ने तो दो
रंगत उपवन की निखर जाने दो

💠🔷💠
और चलते-चलते आदरणीय सुशील सर
के बारे में नहीं 
सोचना होता है 

अंकुर फूटने का 
भी किसी को 
इंतजार नहीं 
होता है ना ही 
जरूरत होती है 

सोच लेने में 
कोई हर्ज नहीं है 
☘☘☘☘
आप के द्वारा सृजित हमक़दम का यह अंक 
आपको कैसा लगा कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के 
द्वारा अवश्य अवगत करवाइयेगा।

हमक़दम का अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक देखना न भूले।

अगले सोमवार फिर मिलेंगे नये विषय पर  
आपके द्वारा सृजित रचनाओं के साथ।

आज के लिए बस इतना ही


-श्वेता सिन्हा



17 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    इस हम-क़दम की उम्र अब छः माह हो रही है
    शुभकामनाएँ रचनाकारों को
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार श्वेता जी हमकदम के तेईसवें कदम 'अंकुर' के लिये 'उलूक' के चार साल पुराने पन्ने को खोज कर लाने के लिये। बहुत सुन्दर सोमवारीय हलचल "हमकदम"

    जवाब देंहटाएं
  3. आज तो आनंद ही आ गया. कुसुम कोठारी, शुभा मेहता, सुप्रिया रानू, अमित जैन मौलिक, मालती मिश्रा, अपर्णा वाजपेयी, पूजा-पूजा और सुशील जोशी ने बहुत सुन्दर रचनाएँ प्रस्तुत कीं. श्वेता सिन्हा जी इस प्रकार के चयन के लिए बधाई की पात्र हैं.

    जवाब देंहटाएं
  4. सर्व प्रथम सादर आभार प्रिय श्वेता जी ...अंकुरित होते 24 वे कदम की स्नेह सहित बधाई .कदम कदम चलते चलते 6 माह बीत गये भाई ...संकलन नायाब हर कवि उत्कष्त भाव प्रति भाव अति उत्तम ...हर कवि सृजन कर्ता बेहतरीन अंकुरण अंकुरण कदम ....शुभ सवेरा

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात ....बहुत ही खूबसूरत संयोजन ...साथ चलते -चलते 24कदम बीत गए पता ही नही लगा ,क्यों कि आप सबका साथ बहुत ही अच्छा लग रहा है । मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता ।

    जवाब देंहटाएं
  6. साथ चलते कब बीते छः मास पता ही नही चला।
    श्वेता शानदार भुमिका और आधारभूत जानकारी के साथ
    उत्कृष्ट प्रस्तुति।

    भावों के बीज फूटे
    शब्द बने अंकुर
    लिखा सभी ने अद्भुत
    प्रस्फुटित हुवा अंकुर
    स्नेह हरितिमा तभी खिलेगी
    जब खिलेगा नेह अंकुर।
    सह रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह लाजवाब सुंदर संकलन सभी रचनाएँ बेहद उम्दा
    हम कदम को छः माह पूरे होने पर बधाई
    सभी को सादर नमन सुप्रभात 🙇

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!!छः माह.. सभी रचनाएँ एक से बढ कर एक भूमिका तो अलग ही पहचान बनाई है।
    सभी रचनकारों को बधाई
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  9. शुभ संध्या.. बहुत दिनों बाद हलचल में इतने लंबी भीड़ है कविताओं के कतार की और सब एक से बढ़कर एक सभी रचनाकारों को शुभकमनाएँ मेरी रचना को हलचल के एक कोने का स्थान देने हेतु मेरी ओर से सादर आभार,6 मास पूरे होने की शुभकामनाएँ,

    जवाब देंहटाएं
  10. आज आप सभी की रचनाओं को पढकर मेरे मन आंगन में भी अंकुर फूट पडे है, धन्य - धन्य होगई मैं तो जो आप सब के साथ स्नेहबंधन जुड़ा अति उत्तम संकलन। सादर🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रिय श्वेता -- जब आनंद की स्थिति हो तो उसमे रास्ते की हर कठिनाई बिसर जाती है | छह माह बीत गये हमकदम के साथ कदम मिलाते और पता ही नहीं चला | बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें उस पल के लिए जब इस संकल्पना का उदय हुआ | इसके बहाने अनेक बेहतरीन रचनाएँ अस्तित्व में आई हैं | आज के अंक की कहूं तो अपने आपमें प्रतीकात्मक अंक है | अंकुर सृजन का पर्याय है | सृष्टि में हर चेतन के मूल में अंकुर है | सभी रचनाकारों ने अद्भुत रचनाएँ लिखी | सभी की कल्पना शक्ति को नमन | और इन्हें मेहनत से संजोने में आप सराहना की पात्र हैं | शानदार भूमिका बहुत ही सार्थकता से लिखी गयी | आपको हार्दिक बधाई | सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं
  12. सुंदर संकलन बेहतरीन रचनाएं

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  13. अंकर भाव को केंद्र रख कर सृजन के 5 शिल्प उत्तम

    जवाब देंहटाएं

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