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बुधवार, 13 जून 2018

1062.....खोखला बौद्धिक अहंकार हमें कहाँ ले आया है?

सादर अभिवादन....
सच में हम चाहते ही थे कि आज की प्रस्तुति हम दें
सखी पम्मी कहीं किसी काम में उलझ गई हैं
वे सफल हो गई होंगी निश्चित रूप से
चलिए चलते हैं आज के आनन्द की ओर.....
-0-

अश्कों का आँख से ढलना हमें अच्छा नहीं लगता
तड़पना,तेरा दर्द में जलना हमें अच्छा नहीं लगता

भीगाती है लहर आ कर, फिर भी सूखा ये मौसम है
प्यास को रेत का छलना  हमें अच्छा नहीं लगता 


बहुत भारी हो चली है
गुनाह में लज़्ज़त की तलाश
उग आयी नाग-फनी
कभी लुभाते थे
जहाँ गहरे सुर्ख़ पलाश

एक दिन यूँ ही 
अलसायी सी 
दोपहर में 
तुम्हारी कविताओं की 
किताब हाथ में आ गयी 
जिसमे तुमने लिखी थी 
मेरी ये सबसे पसंदीदा 
कविता 

कुर्सी के सामने दो कलमें खड़ी थीं,
सिर झुकाए... आँखों में पानी भरे,
दीनता मंडित चेहरे...
जन्मों से, अघी हों जैसे।
पर, ऐसा कैसे हो सकता है...?
कलमें?...
हाँ कलमें...,
कलमें तो समाज को रास्ता दिखाती हैं।

मुझे नकार मुझे ही अपनाती है
सीप में मोती बन स्वाति नक्षत्र को दमका जाती है
मेरा ही पात्र बन मुझे ही अँगुलि भर पानी पिला जाती है
इसी गरिमा को अपना मुझे ही छू जाती है।
मैं यही अनुभूति लिए
नकारते हुए अपनाते हुए
भीगते हुए बहते हुए
सीप में ही मोती बन जाती हूँ।

उसकी शख्शियत....सुप्रिया पाण्डेय


दर्द लफ़्ज़ों में बयाँ हो जाये तो,
कसक ही क्या रह जायेगी,

कांटो को अलग कर दें जो फूलों से,
शनाख्त गुलशन की क्या रह जायेगी,

अच्छी पत्नी चाहिए तो...ज्योति देहलीवाल
post-feature-image
मॉल में घुमते हुए शिल्पा को उसकी प्रिय सहेली उषा मिल गई। दो-तीन साल बाद अचानक मुलाकात होने पर उसकी खुशी का पारावार नहीं था। 'कैसी हो उषा?'  'अरे, पुछ मत यार...बहुत टेंशन हैं।'  'टेंशन? किस बात का टेंशन हैं?' 
'वो मेरा बेटा दीपक...' 'क्यों, क्या हुआ दीपक को ? ...

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अब बारी है...
हम-क़दम के तेईसवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........

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आज्ञा दें यशोदा को










7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभातम् दी:)
    पम्मी जी की विशेष प्रस्तुति की कमी तो है ही। बहुत ही अच्छी रचनाएँ लेकर आई है दी।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए अति आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. सस्नेहाशीष छोटी बहना...

    जिम्मेदारी बाँटते समय मैं भी कहती हूँ
    दो चीज सभी ध्यान रखेंगे

    -समय पर पहुँचना
    कोई बहाना नहीं चलेगा

    -सभी जिम्मेदारी सभी की है
    मुझे तो यही मिला था... मुझे दूसरों को मिली जिम्मेदारी में हाथ नहीं बटाना... ऐसी सोच परिवार/संस्था के लिए खतरे की घँटी है...

    आपके मेहनत देख बेहद खुशी होती है

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया रचनाए है सब यशोदा दी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीया पम्मी जी की अनुपस्थिति में आपके द्वारा बेहतरीन संकलन के साथ आयी है प्रस्तुति. सुन्दर रचनाओं से सजी प्रस्तुति के लिये बधाई.
    इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. अति विलंबित प्रतिक्रिया के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ, अभी सारी रचनाएँ पढ़ न पायी परंतु शीर्षक और कुछ पंक्तियाँ आकर्षित कर रही अवश्य ही बेहतरीन होंगी,पम्मी जी की अनुपस्थिति में इस सुंदर संकलन के लिए आभार यशोदाजी,
    और मेरी रचना को हलचल का एक कोना देने के लिए हृदयतल से आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय यशोदा दीदी -- बहुत ही सुंदर हलचल और सार्थक भी | विभा दीदी के शब्द बहुत ही प्रेरक लगे मुझे | अकर्मण्यता का महिमा मंडन और कर्मण्यता से पलायन यही हो रहा है | सचमुच एकता में शक्ति है | जिम्मेवारी सबकी सांझी है |जिन्होंने इसी गुण से परहेज किया उनका अस्तित्व खतरे में पड़ा है | सादर आभार इतने सुंदर चिंतन के लिए |मुझे भी कुछ कहने का मौक़ा मिल गया | सभी रचनाएँ अति उत्तम और प्रेरक है | सभी रचनाकारों को बधाई | सादर --

    जवाब देंहटाएं

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