सादर अभिवादन
आज 10 जून को मनाया जाता है विश्व भूगर्भ जल दिवस,
साथ ही साथ जानिए आज के इतिहास की कुछ ऐसी बातें जो
हमें पता ही नहीं की आज के दिन क्या हुआ,बहुत सी ऐसी
घटित-घटनाएं,जन्म लिए व्यक्ति, विदा लिए महान व्यक्ति,
पर्व, उत्सव से जुडी बातें जो हमें कुछ सीख दे जाती है और
कहती है कि हमें भी अपने जीवन जीनें का ढंग सीखना
चाहिए और जीवन की इस डोर को आगे कैसे ले जाना है,
कैसे संघर्ष, और उत्साह के साथ आगे बढ़ना है,
चलिए चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओँ की ओर..
मांझी कठोर संघर्ष में जीने वाला जीव है, इसलिए उसे पूरी उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जो गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा की बड़ी-बड़ी बातें और घोषणा की हैं, वह केवल कोरी मुंहजुबानी और कागजों तक सीमित नहीं रहेगी। उसे पूरी उम्मीद है कि एक दिन कोई न कोई उसकी पुकार सुनने वाला जरूर मिलेगा।
भरा शहर वीराना है.....श्वेता सिन्हा
मरी हया और सूखा पानी
लूट नोच करते मनमानी,
गूँगी लाशें जली ज़मीर का
हिसाब यहीं दे जाना है।
वक़्त सिकंदर सबका बैठा
जो चाहे जितना भी ऐंठा,
पिघल पिघल कर जिस्मों को
माटी ही हो जाना है।
बिछड़ते वक़्त तेरे अश्क़ का हर इक क़तरा
लिपट के रास्ते से मेरे तर-ब-तर निकला
खुशी से दर्द की आँखों में आ गए आंसू
मिला जो शख़्स वो ख़्वाबों का हमसफ़र निकला
'थ्री इडियट' ने इस झील को और प्रसिद्ध कर दिया है। ऑल इज वेल का बड़ा -सा पोस्टर लगा था और वैसी ही कुर्सियाँ लगी थीं,जो फिल्म में दिखाई गई हैं। जिस पर पर्यटक बैठकर फोटो निकलवा सकते थे और इसे लिए पैसे देने पड़ते। वैसा ही पीला स्कूटर खड़ा था, और करीना कपूर ने जो शादी वाला लहॅँगा पहना था, उसे पहनकर लड़कियाॅँ बड़े चाव से तस्वीरें खिंचवा रही थी। उधर परंपरागत लद्दाखी ड्रेस याक पर लादे कुछ लोग थे ,जो किराए पर कपड़े देकर कुछ देर के लिए आपको स्थानीय निवासी होने की अनुभूति दे सकते थे। जाहिर है, हमने भी कुछ तस्वीरें खिंचवाई ।
कभी दिल को यूँ मचलने तो दो
हदों से आगे जरा गुजरने तो दो।
जिस्म की कोई चाह नहीं अपनी
जरा रूह तक मुझे उतरने तो दो।
बदन में खुशबू से महक जाऊंगा
अपने तन मन में बिखरने तो दो।
दूर तक वही बियाबां, वही अंतहीन शून्यता,
प्रतिध्वनियों का इंतज़ार अब बेमानी है,
जो कभी था चिड़ियों की कलरव
से आबाद, वो गूलर का पेड़
अब किताबों की कहानी
है। कंक्रीट के जंगल
में उड़ान पुल के
सिवा कुछ
भी नहीं,
पलकों तले, तिलिस्म सी ढ़लती ये रात,
धुंधली सी काली, गहराती ये रात,
झुनझुन करती इतराती कुछ गाती ये रात,
पलकों को, थपकाकर सुलाती ये रात!
और आज की शुरुआती प्रस्तुति
संचित जलाशय सा जीवन
कहो किस काम का
कुछ तो गति हो जीवन में
स्थिर जल में जन्म लेती हैं
शैवालिका जो
पानी का अमरत्व हर लेती
सहज झरना बन बहो
हां गिरना तो होगा
शुभ प्रभात हलचल की इस सुखद शीतल हवा के झोंके के लिए आभार,और शुभकामनाएँ सभी उम्दा रचनाकारों को...बेहतरीन संकलन यशोदा जी..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय अंक
जवाब देंहटाएंवाह!!लाजवाब अंक । सभी रचनाकारों को हार्दिक अभिनंदन ।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति ज्ञानवर्धक जानकारी सुंदर यात्रा वृतांत और हौसले वालों की उडान एक अंक मे विविधता समेटे अप्रतिम संकलन।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतू सादर आभार सभी सह रचनाकारों को बधाई।
सुंदर भूमिका के साथ लाज़वाब रचनाओं का सकंलन है दी आज के अंक में।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने का अति आभार दी🙏
पम्मी जी और मैं दो मोरचे पर जंग संभालने की कोशिश में दिन भर साँसें रोके खड़े रहे
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन पर आने में थोड़ी देर हुई
शुभ संध्या छोटी बहना