पेड़ों का मौन रुदन सुनो
अनसुना करो न तुम साथी
हरियाली खो जायेगी
#श्वेता
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देश की राजधानी दिल्ली स्थित सरोजनी नगर मेंआवासीय
परिसर निर्माण के लिए 17,000 पेड़ काटने की योजना है। स्थानीय
लोगों के विरोध के बाद 4 जुलाई तक अदालत ने पेड़ काटने की
प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।
चिंता का विषय यह है कि राजधानी पहले ही प्रदूषण के आपात
स्थिति से ग्रसित है, ज़हरीली हो चुकी हवा का मानक स्तर बेहद
गंभीर है ऐसे में हज़ारों पेड़ोंं का कटना कितना घातक हो सकता है
आप ख़ुद ही निर्णय कीजिए।
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सादर नमस्कार
आइये आज की रचनाओं के संसार में-
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आदरणीय विश्वमोहन जी की कलम से-
पारण
नीरसता की झुर्रियों और
विरसता के घोसलों से
भरे चेहरों से अब कामनाओं
के सेहरे उजड़ने लगे हैं.
थकावट की सिलवटों से सिले
मुख सूख रहे हैं और
तुमको मुझसे उबास आने लगी ?
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आदरणीया शैल सिंह की कलम से
समंदर पर कविता
तेरी गहराईयों में इतनी मूक ख़ामोशी क्यों
तेरे उत्ताल तरंगों से जी है बहलता सभी का
तूं तो खुद के प्यास की तलब बुझा पाता नहीं
पर शेर,ग़ज़ल,कविता तुझीसे संवरता सभी का।
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आदरणीया मीना भारद्वाज जी की लेखनी से
मुक्तक
जीने का शऊर आ गया तेरे बिन
तूने भी सीख लिया जीना मेरे बिन
जरूरी है आनी दुनियादारी भी
मुश्किल है जिन्दगी काटनी इस के बिन
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आदरणीया कुसुम जी की लेखनी से
मधुर मधुर वीणा बजती
ज्यों आत्मा तक रस भरती
सारंगी की पंचम लहरी
आके हिया के पास ठहरी
सितार के सातों तार बजे
ज्यों स्वर लहरी अविराम चले।
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आदरणीय अमित निश्छल जी की कलम से
अमर जवान
अराति सैन्य श्रेणी को नित, काट रहूँ मैं सबसे आगे;
सहस सिरों को काट अघी के, बढ़ूँ अनवरत निर्भय मागे।
है वीर भुजा में लहू नहीं, हमने अंगारे पाले हैं;
निश्चिंत रहो तुम चमन-वतन, ये शोले शूरों वाले हैं।
नाम छोटा, काम भी छोटा, सेवक बन दिन रात भुलाऊँ;
दुश्मन भी गर माफी माँगे, उठकर उसको गले लगाऊँ।
शिलालेख अपना भी हो तो, उसपर नाम शहीद लिखाऊँ
आदरणीया रेणु जी की लेखनी से
मोको कहाँ ढूंढे से बंदे मैं तो तेरे पास में -
ना तीर्थ में ना मूर्त में ना एकांत निवास में -
ना मंदिर में ना मस्जिद में ना काबे कैलाश में | |
ना मैं जप में ना मैं तप में ना व्रत उपवास में |
ना मैं क्रिया -क्रम में रहता - ना ही योग सन्यास में | |
न ही प्राण में -ना पिंड में - ना ब्रह्मांड आकाश में |
ना मैं त्रिकुटी भवर में , सब स्वांसों के साँस में | |
खोजी होए तुरत मिल जाऊं - एक पल की तलाश में -
कहे कबीर सुनो भाई साधो - मैं तो हूँ विश्वास में !!!!!
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हूं मैं एक अबूझ पहेली....अभिलाषा चौहान
भीड़ से घिरी लेकिन
बिल्कुल अकेली हूं मैं
हां, एक अबूझ पहेली हूं मैं
कहने को सब अपने मेरे
रहे सदा मुझको हैं घेरे
पर समझे कोई न मन मेरा
खामोशियो ने मुझको घेरा
ढूंढूं मैं अपना स्थान...
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और चलते-चलते
आदरणीया पम्मी जी की लेखनी से
प्रेमचंद जी ने समाज और राजनीति के आपसी संबंधों के
बारे में कहा “जिस भाषा के साहित्य का साहित्य अच्छा होगा,
उसका समाज भी अच्छा होगा। समाज के अच्छे होने पर स्वभावतः राजनीति भी अच्छी होगी। यह तीनों साथ - साथ चलने वाली
चीजें हैं । इन तीनों का उद्देश्य ही जो एक है। यथार्थ में समाज, साहित्य और राजनीति का मिलन बिन्दु है।“
छपते-छपते
कबीर दौड़ रहा है,
सूर को सावधान रहने के लिये कहने के लिये ढूँढ रहा है,
तुलसी अदालत में फंसा हुआ है.
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इस सप्ताह के हमक़दम के विषय
की जानकारी के लिए
आज के लिए बस इतना ही
कल आ रही हैं आदरणीया विभा दी।
अगले शुक्रवार फिर मिलेंगे नयी रचनाओं के साथ
पेड़ों का कटाव प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का खामियाजा हम पहले से ही झेल रहे हैं । वायु प्रदूषण चिंता का विषय है। ऐसी स्थिति की अनदेखी करना चिंता का विषय है । समसामयिक गंभीर विषय पर प्रस्तावना के साथ सुन्दर प्रस्तुति । मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार । सभी रचनाएं अत्यंत सुंदर हैं ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी विधा का समावेश
प्रकृति की चिन्ता
लाज़िमी है
सादर
शुभ प्रभात
निष्ठुर होती मानवीय संवेदना प्रकृति के महत्व को क्या
जवाब देंहटाएंसमझेगी, वृक्षों का मौन रूदन समझने के लिए प्रकृति से लगाव आवश्यक है । बहुत ही सुंदर संकलन आदरणीया श्वेता जी। मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार🙏🙏🙏🙏
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ, बहुत बहुत बधाई
बेहतरीन रचनाएं
जवाब देंहटाएंसार्थक हलचल प्रस्तुति, विचारणीय भुमिका,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सामिल करने के लिये तहेदिल से शुक्रिया।
सभी रचनाकारों को बधाई ।
पेड़ अब रोते नही विद्रूप हंसी है उनके होटों पर
मानव अपने विनाश के साधन स्वयं तेजी से पौष रहा है।
समसामयिक गंभीर विषय पर भूमिका के साथ सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंश्वेता जी,विभिन्न रंगों से सजी आज की प्रस्तुति
मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए तहेदिल से धन्यवाद
सभी चयनित रचनकारों को बधाई।
सुन्दर प्रस्तुति। आभार श्वेता जी 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंवाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ,विचारणीय भूमिका कू साथ । निहित स्वार्थ के लिए कौन सुनता है वृक्षों का रुदन ।
जवाब देंहटाएंदिल्ली की हालत ऐसी नहीं की इतनी बड़ी मात्रा में पेड़ों का काटा जाना सह सके। आवासीय परिसर के लिएइतने पेड़ों की हत्या निश्चित रूप से मनुष्यों से अपनी जान का बदला ले सकती है। अदालत को इस पर अनिवार्य रूप से रोक लगा देनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंआज की रचनाएं अच्छी लगीं। सभी रचनाकारों को बधाई।
सादर
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवृक्ष रुदन यदि सुन लिया
जवाब देंहटाएंबदल जाये हालात
वरना हम सब रोयेंगे
वृक्ष ना होंगे पास !
आज का हलचल विशेष मार्मिकता लिये ....बेहतरीन लेखन और संकलन !
ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा के लिये प्रस्तुत सार्थक संदेश के साथ लिखी गयी विचारणीय भूमिका और बेहतरीन रचनाओं के माध्यम से सकारात्मकता को संप्रेषित करने के लिये बधाई श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
धन्यवाद उन पर्यावरण प्रेमियों का जो इस मामले को गंभीरता से न्यायालय के समक्ष पेश करने में सक्षम हैं।
संवेदना को जड़ता के चक्रव्यूह से आज़ाद रखने के लिये वृक्षों का जीवन में सानिध्य ज़रूरी है।
उम्मीद है न्यायालय जनहित में उपयुक्त फ़ैसला लेगा।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता --- आज के संकलन में भूमिका देख मुझे भी कुछ कहने का मन हो आया है |वर्षों पहले मैंने भी सरोजिनी नगर के हरीतिमा से घिरे प्रांगण में कुछ दिन रहने का आनन्द लिया था | बेहद सुव्यस्थित आवास योजना के साथ यहाँ ज्यादातर सरकारी सेवाएं दे रहे परिवार ही रहते है |[यदि मैं गलत नहीं हूँ तो ]मुझे लगभग बीस दिन रहने के दौरान यहाँ की वनस्पति संपदा ने बहुत प्रभावित किया था | इस क्षेत्र में जाकर जगता ही नहीं था किआप प्रदूषण के लिए बदनाम दिल्ली में बैठे हैं | मुझे तो यहाँ आकर सिटी ब्यूटीफुल चण्डीगढ़ में होने का आभास हुआ | आजकल समाचार आ रहें हैं कि यहाँ से हरे भरे पेड़ हटाये जा रहे है वो भी ऐसे जिनसे स्थानीय लोग बहुत ही संवेदनशीलता के साथ जुड़े हैं | जहरीली हवाओं का गरल पी रहे ये पेड़ मानवता के लिए वरदान हैं | इनकी कटाई के विरोध में खड़े लोगों के पास जरुर सार्थक विकल्प होंगे | माननीय न्यायालय को जरुर इन लोगों की बाते सुननी चाहियें कि पेड़ ना कटें | रास्तों के लिए इनका कटना शायद कहीं ना कहीं मज़बूरी है | मेरे शहर करनाल में भी अनेक छायादार पेड़ , नई सडक निर्माण के दौरान - पिछले दिनों अदृश्य हो गये ,हालाँकि यहाँ भी समाजसेवियों और प्रकृति प्रेमियों ने बहुत शोर मचाया पर सरकार ने नए पेड़ लगाने का आश्वासन दे अपनी मज़बूरी जाहिर करते हुए अपना निर्णय लागू कर दिया |पेड़ का निशब्द रुदन कौन सुनेगा ? कुछ लाचारी में कुछ अपने फायदे के लिए इनका अस्तित्व मिटाते ही रहे हैं | मेरी रचना को स्थान दिया हार्दिक आभार | आजके सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभ कामनाएं | पेड़ की वेदना के संदर्भमें मेरी कुछ पंक्तियाँ --
जवाब देंहटाएंना शत्रु बन प्रहार करो
सुनो मित्र ! निवेदन मेरा भी -
मैं मिटा तुम भी ना रहोगे -
जुडा तुमसे यूँ जीवन मेरा भी !
करू श्रृंगार जब सृष्टि का मैं -
फूल फूल कर इठलाती
सुयोग्य सुत मैं धरा का
मुझ बिन माँ की फटती छाती
तुम जैसे ही ममता वश मैं -
नहीकम कोई समर्पण मेरा भी !!
सदियों से पोषक हूँ तुम्हारा -
कृतघ्न हो ना दो धोखा
निष्प्राण नही बस निशब्द हूँमैं
कहूं कैसे मन की व्यथा ?
जड़ नही चेतन हूँमैं
दुखता है मन मेरा भी
ना खाए कभी अपने फल मैंने -
न फूलों से श्रंगार किया
जग हित हुआ जन्म मेरा ये -
पल पल इसपे उपकार किया
खुद तपा- बाँट छाया सबको -
यूँ जुडासबसे अंतर्मन मेरा भी !!
कसता नदियों के तटबंध मैं -
थामता मैं ही हिमालय को -
जुगत मेरी कायम रहे ये सृष्टि -
महकाता मैं ही देवालय को -
तुम संग बचपन में लौटूं -
गोरी संग खिलता यौवन मेरा भी !!!!
सरोजिनी नगर, नेताजी नगर और नौरोजी नगर में प्राप्त आंकड़ो के आधार पर भवन के द्वारा छेंके गए औसत 21 प्रतिशत जमीन के लिए 37.5 प्रतिशत हरित क्षेत्र और 29.5 प्रतिशत सड़क एवं पार्किंग क्षेत्र की मंजूरी दी गयी है। इस प्रक्रिया में 18547 खड़े वृक्षो में 15498 (83.6%) पेड़ों के काटने का संकट पैदा हो गया है। यही नहीं इस हरित क्षेत्र में मात्र 12 प्रजातियों की चिड़ियों पर संकट का त्रुटि पूर्ण आकलन दिखाया गया है। अन्य भूगर्भीय कारकों यथा ढलान, जल ग्रहण क्षमता,जल स्तर आदि के बारे में कोई प्रभावी आकलन नही दिखाया गया है। इ आई ए ( एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट ) की रिपोर्ट में कटे जाने वाले पेड़ो की ऊंचाई, घेरे और किस्म की भी बात नही बताई गई है। ये जरूर बताया गया है कि पेड़ो की उम्र 50 साल से अधिक है। हालांकि नियम कानून बहुत सख्त हैं इस मामले में और निश्चय ही उसमे बहुत हद तक छूट की गुंजाइश नही है। हमने भी एक मेडिकल संस्थान के निर्माण में दिलशाद गार्डन दिल्ली में 137 के आस पास पेड़ कटवाए थे, लेकिन उसकी भरपाई करीब 1500 सजीव विकसित पेड़ों को लगाकर की थी। परिणामतः, वह क्षेत्र पहले से ज्यादा हरा है। इसलिए विकास और पर्यावरण के संतुलन को हर हाल में स्थापित करना है। निश्चित तौर पर, इस मामले में भी एक बार फिर से सभी पहलुओं का तकनीकी विश्लेषण अपेक्षित है। ऐसी संवेदनशील भूमिका के लिए श्वेता जी को साधुवाद और मेरी रचना पर उनके अतिरिक्त अनुग्रह और अनुराग का आभार!!!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का संकलन है। यह भरपूर सामग्री है।
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