रिकॉर्ड बनाते हुये 98℅ - 99℅ तक नं लेकर आये हैं, सभी को जीवन में सफलता के
महत्वपूर्ण सोपान पर चढ़ने की हार्दिक शुभकामनाएँ,
पर जिन बच्चों का परसेंटज मनोनुकूल नहीं आया हैंं , उनके माता-पिता और रिश्तेदारों से विनती है
कि दूसरों के बच्चों से अपने बच्चों का तुलनात्मक विश्लेषण कृपया न करें।उनकी कोमल मनोदशा
को समझते हुये उनका सहारा बने उन्हें सकारात्मक रहने को प्रेरित करें।
की उम्मीद करना व्यर्थ है। पर आप पर निर्भर, हर बात पर आपका मुँह जोहते आपके
बच्चों पर अपने अधूरे सपनों का बोझ न डालें।
कि उनका मानसिक विकास सिकुड़ कर रह जाता है।
अनुरुप क्रियाशीलता को बढ़ावा देकर हम उनका भविष्य गढ़ने में सहयोग कर सकते हैं।
सादर नमस्कार
चलते है आपके द्वारा सृजित रचनात्मकता के संसार में-
आदरणीय विश्वमोहन जी की लिखी अद्भुत रचना
भोर भोरैया....
हूक उठे छतिया, मसक गयी अंगिया
कसक कसक उठे, चिहुँके चिरैया
भोर भोरैया, रोये रे चिरैया
बीत गयी रैना, आये न सैंया
आदरणीया मालती जी की रचना
लेखनी स्तब्ध है
भावों का आवागमन
दिग्भ्रमित करने लगा
शब्दों के मायाजाल में
सहज मन उलझने लगा।
बढ़ गईं खामोशियाँ
जो अंतर को उकसाने लगीं
आदरणीया रेणु जी की हृदयस्पर्शी कहानी
जिद
गाँव भर में तुम्हारे चाल-चलन के बिगड़ने की अफवाहे फैलती रहती थी पर तुम्हारी माँ हमेशा कहती की तुम निर्दोष हो | उसे हमेशा लगता रहा ,कि तुम सरल हो इस लिए अपना भला बुरा समझ नहीं पाते | वह कहती -तुम्हे तुम्हारे शरारती दोस्तों के साथ खड़े होने की सजा मिलती है |
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आदरणीया इन्दिरा जी की रचना
साँझ ढले
साँझ अकेली
बैठी बैठी
सोच रही एक ही बात
कौन दे गया
जाते जाते
जीवन भर का ये अवसाद !
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आदरणीय पुरुषोत्तम जी की रचना
चराग
यूँ धू-धू कर जले, चरागों के ख्वाब,
ज्यूं चिंता में, भस्म हुए हों मरने के बाद,
मन में लिए, कुछ अनकही सी बात,
चिताओं सी दहकती, वो जलती सी रात,
बंद पलकों तले, ढ़ल गई वो भी साथ....
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और चलते-चलते आदरणीया अनीता की लेखनी से
क्या कहूँ
क्यो अमावस्या सी ,लगे ज़िंदगी..!
हर रात स्याह ,अंधेरी है।
तुम्हारे लिहाफ में ,छुपी नींदें
क्यो मेरी आंखें रतजगी वीरानी है
क्यो अमावस्या सी ,लगे ज़िंदगी..!
हर रात स्याह ,अंधेरी है।
तुम्हारे लिहाफ में ,छुपी नींदें
क्यो मेरी आंखें रतजगी वीरानी है
नया विषय
हम-क़दम का
यहाँ देखिए
आपके द्वारा सृजित रचनाओं का संसार कैसा लगा
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में
श्वेता सिन्हा
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंवआआह श्वेता वआआह
इतना व्यस्त होने के बावजूद
आपने समय दिया
आभार
सादर
वाहः
जवाब देंहटाएंअति सुंदर संकलन
सुप्रभात, अभिवादन हलचल। श्वेता जी को साधुवाद।
जवाब देंहटाएंसर्व प्रटम आभार प्रिय श्वेता जी मेरी रचना को चयनित करने के लिये ! 🙏
जवाब देंहटाएंहर रचना और रचना कार की कलम को नमन एक से बढ़ कर एक लेखन ....बार बार पढ़ने को लालयित मन ..
शुभ दिवस
सुन्दर हलचल
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंवाह!!श्वेता बहुत खूबसूरत प्रस्तुति, सटीक भूमिका के साथ । सही है माता -पिता अपने अधूरे सपनों को बच्चों के माध्यम से पूरा करना चाहते है सभी रचनाकारों को बधाई ।
जवाब देंहटाएंवाह! अत्यंत समीचीन, सामयिक और सार्थक भूमिका। कायदे से ऐसे विषयों पर हलचल को विशेष बहस करानी चाहिए। श्वेता जी, आशा की किरण बनकर आइये। सही मायने में आज का समाज बुरी तरह से आपके द्वारा उठाये गए प्रश्न जाल में उलझा है। आभार।
जवाब देंहटाएंनन्हे नन्हे बच्चों के लिए उनकी अपनी कक्षा का सिलेबस उन पर इतना भारी पड़ता है कि वो इसके बोझ तले दब ही जाते हैं.
जवाब देंहटाएंहर एक विषय पर हर एक बच्चे की पकड़ मजबूत हो ऐसा सम्भव नही है..इसीलिए अधिक प्रतिशत अंक प्राप्त करने की होड़ में बच्चे रटन्तु बनते जा रहे हैं.
और ये हमारे भावी समाज के लिए बहुत खतरनाक है.व्यवहारिक ज्ञान तो किसी भी कार्य का आधार है.हमारे समाज को इस खतरनाक परिस्थिति से बचाने के लिए बच्चो पर सिलेबस का बोझ कम करने की जरूरत है..और प्रत्येक साल सिलेबस के प्रासंगिकता का अवलोकन हो. बच्चों को लेकर समाज और स्कूल दोनों बालमनोवैज्ञानिक सोच पर कार्य करे..
बेहतरीन भूमिका.
सारे लिंक्स बेहद कमाल के रहे आज की हलचल में..
अनीता जी के ब्लॉग को पढकर बहुत ख़ुशी हुई.
रेनू जी का कथा लेखन सुपर्ब... :)
बच्चों के परीक्षाफल के विषय में सार्थक भूमिका के साथ सुन्दर,उम्दा लिंक संकलन एवं बेहतरीन प्रस्तुतिकरण....
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता --- आज के लिंकों के सुंदर संयोजन के लिए आप बधाई की पात्र हैं | भूमिका में ऐसा विषय उठाया जो बहुत ही संवेदनशील है | आज के शिक्षा के प्रचार प्रसार में सबसे ज्यादा अहित हुआ है तो बचपन का हुआ है | छोटे गाँव से बड़े गाँव की ओर , बड़े गाँव से कस्बों की ओर , कस्बों से छोटे शहरों की ओर , छोटे शहरों से बड़े शहरों की ओर , बड़े शहरों से विदेशों की ओर पढाई के नाम पर भागते बच्चे सहानुभूति के पात्र हैं | दो तीन दशक पहले सरकारी विद्यालयों की प्राथमिक कक्षाओं में मात्र चार विषय होते थे वे भी अपनी मातृभाषा में | कक्षा छह में अंग्रेजी तो सातवीं में तीसरी भाषा का प्रावधान था | आज प्राथमिक कक्षाओं में विषयों की भरमार है | छोटी बड़ी उपयोगी -- अनुपयोगी पुस्तकों से भरा बैग से झुके मासूम कंधे बचपन की मार्मिक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं | ऊपर से माता - पिता की अनगिन महत्वकांन्क्षाओं का बोझ उठाते ये बच्चे ना जाने कौनसी पढाई पढ़ रहे हैं ? पढाई का सम्बन्ध लगन से है नाकि जोर जबरदस्ती से | पढाई और अंक बटोरने के नाम पर नौनिहालों की दुर्गति शोचनीय है |दो साल पहले मेरे एक परिचित परिवार का लडका कक्षा नौ में अनुतीर्ण रहा | उसके दोस्त ने उसे फोन पर ये खबर सुनाई तो अपने पिता की मार से डरकर वह एक खाली प्लाट में छुप गया जहाँ घबराहट के मारे उसकी सांसे बंद हो गयी | इसी अनेक घटना येन सामने आ रही है जहाँ छात्र पढाई के अनावश्यक दबाव के कारण कहीं जान गवां रहे हैं तो कहीं मानसिक संतुलन खो रहे हैं |कितना अच्छा हो हम बच्चों की रूचि को पहचाने और उन्हें पढने के लिए प्यार से प्रेरित करें नाकि जबरदस्ती से
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अच्छी हैं | किसी तकनीकी खराबी की वजह से मेरी ब्लॉग की सूचना आजकल मेरे मेल तक नही पहुँचती अतः मेरे लिए आपके लिंकों में मेरी रचना का आना सुखद आश्चर्य भरा रहा | आपके सहयोग की आभारी हूँ | सभी सहयोगियों को सस्नेह शुभकामनाये | रोहितास जी के सराहना भरे शब्दों के लिए उनका आभार प्रकट करती हूँ | जिन सहयोगियों के बच्चे छोटी कक्षाओं में उन्हें आजके विषय पर जरुर मंथन करना चाहिए | सस्नेह