समय गुरु जी उनको इतिहास की एक कथा सुनाने लगे –
अब भी छुप-छुप कर जर्मन सेना पर हमले कर रहे थे..
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शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंउत्तम संचयन
समसामयिक भूमिका
आभार
सादर
अति सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसमसामयिक विचारणीय भूमिका पम्मी जी,
जवाब देंहटाएंऐसा लगता है मानो कर्तव्य निभाने के नाम पर पाठकोंं के मनोभाव से अपना मनोरंजन करते है ये मीडिया वाले भी।
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।
सुंदर संकलन के लिए बधाई आपको।
सुप्रभात ...
जवाब देंहटाएंपता नहि अख़बार कर्तव्य निभा रही हैं या वफ़ादारी ... ख़ैर ये जनता तय करेगी.
आज की हलचल सुहावनी है ...
आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए आज ...
वाह!!लाजवाब संकलन...।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंभूमिका वाकई ध्यातव्य है!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल एक निष्पक्ष समीक्षा होनी चाहिए कि अखबार कर्तव्य निभा रहा या वफादारी ! पर कौन करेंगा . हर किसी की दाढी में जब तिनका है। लेकिन भाई साहब की यह फटाफट खबर बेजोड़ रही
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकिसानों की गाँव बंद हड़ताल को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं. किसान का माल खरीदने वाले और उसे अपना माल बेचने वाले ख़ूब मज़े में हैं. किसान का शोषण हर क़दम पर होता है.किसान की मज़बूरी है कि वह अपनी जीविका के लिये खेती पर ही निर्भर है तो किसी प्रकार वह उस काम-धंधे में उलझा हुआ.
जवाब देंहटाएंएक ओर सरकार चन्द पूंजीपतियों के लाखों करोड़ रुपये के बैंक कर्ज़ माफ़ कर चुकी है. किसान की हड़ताल उसकी फ़सल का उचित मूल्य दिये जाने की मांग को लेकर है क्योंकि उद्योगपति अपने उत्पाद की क़ीमत तय करने के लिये स्वतंत्र हैं जबकि किसान के उत्पाद की क़ीमत सरकार के समर्थन मूल्य पर निर्भर है.
किसानों द्वारा अपने उत्पाद की की जा रही बर्बादी निस्संदेह निन्दनीय है. अपने पसीने की कमाई को सड़क पर डालने के बजाय गरीबों में बांट देते. झारखण्ड से ख़बर है कि एक महिला भूख से तड़प-तड़पकर मर गई.
आज की सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई आदरणीया पम्मी जी. इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
शानदार हलचल
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संयोजन
सादर