सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
दो जून की मगजमारी
उपजा मगरूर तामस
बंजर भावों पर मलने
खेतों में मजूरी से भरे पूरे परिवार का
पूरा नहीं पड़े है ज़माना महँगी मार का
इसलिए छोड़ के बसेरा चले जाते हैं
भूमिहीन उठा डाँडी-डेरा चले जाते हैं
चुग्गे हेतु जैसे खग नीड़ छोड़ जाते हैं
होड़ मच गयी
हर कोई अपने सुख के लिए
अपना काँटा निकालने के लिए खङा था
उनकी पर्ची पर किसी न किसी का नाम था
क्या दोस्त,क्या भाई
ससुर हो या जमाई
सुबह में उठना, ब्रश ना करना, बस शुरू कर देना वीडियो गेम
साथ में गिलास हो गरम दूध का, और ब्रेड हो जिस पर लगा हो जैम
बस फिर कोई ना रोके, कोई ना टोके, हम आभासी वीरों को
दुनिया को हमें बचाना है, झुलसा के दुश्मन के जज़ीरों को…
पर ऐन-वक़्त पे बिजली के जाने से गुस्सा आता है
और दुसरे ही पल में हमको एक जोश नया मिल जाता है
ये आंच ये ताप कब होगा समाप्त
झुलसती ये गरमी बरस रही है आग
धूप के कहर ने तो ले ली कई जानें
निकलना हुआ मुश्किल सोचें है कई बहाने
कूलर ए.सी. के फेर मेँ खाता बचा ना कोय ।।
बाट ना देखिए ए.सी. की चला लीजिए फैन
चार दिनोँ की बात है फिर आगे सब चैन ।।
पँखा झेलत रात गयी आयी ना लेकिन लाईट
मच्छर गाते रहे कान मेँ तक तना तंदूरी नाईट
फिर मिलेंगे...
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम इक्कीसवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
दो पंक्तियाँ है
यानी एक दोहा है
अँधा बेचे आईना, विधवा करे श्रृंगार
कथा कहे बहुरूपिया, ढोंगी पढ़े लिलार.
और इसका कोई उदाहरण मौजूद नही है
रेखांकित शब्द ही विषय है
उपरोक्त विषयों पर आप सबको अपने ढंग से
पूरी कविता लिखने की आज़ादी है
आप अपनी रचना आज शनिवार 02 जून 2018
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं।
चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक
04 जून 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
रचनाएँ पाँच लिंकों का आनन्द ब्लॉग के
सम्पर्क प्रारूप द्वारा प्रेषित करें
आदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
गर्मी का अंत अब हो रहा है
नौतपा कल खत्म हुआ
सटीक रचनाए चुनी आपने आज
सादर
आदरणीय दीदी....
जवाब देंहटाएंसादर चरणस्पर्श..
सादर नमन दीदी, गर्मी अपने अन्तिम सौपान पर है मानसून की आहट सुनाई देने लगी बस ईश्वर कृपा रहे और सन्तुलित पानी बरसे तो सभी के जीवन मे खुशियों के आगाज हो विशेष कर किसानों पर। बहुत सुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंसभी रचनाऐं कुछ हट के, सभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।सभी रचनाएँ शानदार हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय विभा दी --- सादर प्रणाम | गर्मी पर लाजवाब प्रस्तुतिकरण !!!!!!! सभी रचनाएँ पढ़कर बहुत अच्छा लगा | गर्मी की छुट्टियाँ भी आ गई , गर्मी के दोहे भी आये , बादल को पुकारती सुंदर रचना भी आई पर बंजारा नामक लाकर भावुक कर गया | इस पोस्ट तक ले जाने के लिए आपका जितना आभार कहूं कम है | इस पुस्तक की कवितायेँ मन में गाँव के बड़े मार्मिक चित्र सजीव कर गई |गर्मी की लम्बी अवधि बहुत परेशान करती है पर जब बीच में पहली बौछार माटी की गंध को आसमान तक ले जाती है उसका आनंद शब्दों से परे है | सभी रचनाओं पर भरपूर शोध के लिए आपका सादर आभार | सादर --
जवाब देंहटाएंहाय गर्मी हाय गर्मी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
हमेशा.की तरह आपकी विशेष प्रस्तुति बहुत अच्छछी लगी दी।
जवाब देंहटाएंएक सुंदर अंक पढ़वाने आभार आपका :)