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सोमवार, 4 जून 2018

1053...हम-क़दम का इक्कीसवाँ अंक....

अँधा बेचे आईना, विधवा करे श्रृंगार
कथा कहे बहुरूपिया, ढोंगी पढ़े लिलार.

उपरोक्त दोहा था विषय आज का, हमने लिखा था...
रेखांकित शब्द ही मुख्य विषय है...
हमने कोशिश की पर...नहीं लिख पाए..
चलिए चलें आज के शब्दों के समूह की ओर
जिसका कुछ न कुछ अर्थ निकलता ही है
अर्थहीन तो कतई नहीं है.....

आज के विषय की जानकारी सिर्फ और सिर्फ हमें ही थी
आज के इस अंक में एक चर्चाकार की रचना भी शामिल है.
-0-

कोई दुनिया भर के श्रृंगार तले 
आइने को धोका देता है 
सब रंगो में रंग कर भी 
जाने किस रंग को रोता है 
कोई विधवा सा सब कुछ खो कर 
बिन रंगों के जीता है 

तुम्हारे अधरों से झरते
शब्दों को चुनती बटोरकर रखती जाती
खिड़की के पास लगे
तकिये के सिरहाने
एकांत के पलों के लिए
जब स्मृतियों के आईने से निकाल कर
तुम्हारी तस्वीर देखकर
नख से शिख तक निहारुँ खुद को
तुम्हारी बातों का करके श्रृंगार इतराऊँ

बहुरुपियों की फौज,
यहाँ करती है मौज !
जैसा मौका,जैसा वक्त,
वैसा रूप धर लेते हैं। 
कहे 'मीना' तू सँभल,
ऐसे आग पर ना चल,
यहाँ हंस मरे भूखा,
कागा मोती चुन लेते हैं !!!

माँग भरी सेंदूर से,
टिकुली धरी लिलार।
अंजन आँजा लाज का,
पूरा हुआ श्रृंगार ।।

आईना अँखियाँ हुईं,
प्रिय-प्रतिबिंब समाय ।
हृदय हुआ बहुरुपिया,
स्वांग हजार रचाय ।।


अंधा बेचे आईना विधवा करें शृंगार 
कथा कहे बहुरूपिया ढोंगी पढ़े  लिलार !

ढोंगी पढ़े लिलार सब करतब है भैय्या 
कलयुग में जो ना हो जाये कम है भैय्या !

गुरुजन शिक्षा बेचते ज्ञान ध्यान के बने बिकैय्या 
भगत ध्यान की आड़ मैं व्यभिचार की खेवे नैय्या !

वो कलमा पढते रहे अत्फ़ ओ भल मानसी का
उन के दिल की कालिख का हिसाब लेने आया हूं।

करते रहे उपचार  किस्मत ए दयार का 
उन अलीमगरों का लिलार बांचने आया हूं।

बावला है यह आइना
कुछ भी दिखाओ
उसी पर यकीन कर लेता है !
सब कहते हैं
आइना कभी झूठ नहीं बोलता,
आईने को कोई भी
बरगला नहीं सकता,  
उससे कुछ भी छिपाना असम्भव है ! 


क्या और कुछ बाकी रह गया है
मेरे श्रृंगार में जो तुम 
मेरे लिये ले आये हो !
मेरा सबसे अनमोल गहना तो तुम हो
तुम्हीं मेरी श्रृंगार हो
और तुम्हीं मेरेे अभीष्ट भी
तुम्हें पाकर मैं सम्पूर्ण हो चुकी हूँ
अब मुझे अन्य किसी श्रृंगार की
आवश्यकता नहीं !

आदरणीय आशा मौसी ने तीन शब्दों का प्रयोगकर
तीन रचनाएँ पढ़वा दी हमें...

दिन के उजाले में 
एक एक लकीर दीखती 
सत्य की गवाही देती 
अन्धकार में सब छुप जाता 
कुछ भी न दिखाई देता |


तो कभी काली माता बन जाता
क्या उसका कोई नाम नहीं
 कोई उसे क्या  काम नहीं ?
माँ ने समझाया है उसका यही काम
तरह तरह के स्वांग बनाना
और सब को हंसाना 
यही है उसकी कमाई का जरिया
कहते है उसे बहुरूपिया |


थी नादान बहुत अनजान 
जानती न थी क्या था उसमे 
सादगी ऐसी कि नज़र न हटे 
लगे श्रृंगार भी
फीका उसके सामने | 

ग्यारह कविताओं का यह अंक
सारी रचनाए हमारी सुविधानुसार हैं
हमारा बाईसवाँ विषय आपको मिलेगा
मंगलवार के अंक में
सादर
यशोदा












15 टिप्‍पणियां:

  1. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
    सखी बहन मौसी की रचनाएं
    महिला अंक अति सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात आज मेरी तीन रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  3. हलचल के आइने में सखी बहू रूप श्रृंगार।
    चकाचौंध चमत्कृत चक्षु पकड़े पुरुष लिलार।।
    सुन्दर रचनाओं का गुलदस्ता। बधाई और आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!बहुत खूबसूरत संकलन ...सभी रचनाकारों कै हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    अद्भुत विषय था और नाना प्रकार के भावों को समेटे अच्छी अच्छी रचनाऐं मेरी रचना को जगह देने के लिये सादर आभार ।
    सभी सह रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. अलग विषय पर सुंंदर रचनाओं का गुलदस्ता..
    बहुत बढिया।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. क्या लिखूं विस्मय में हूँ आज का लिंक मानो महिला लेखिका विशेषांक सा हो गया ! सही पकड़े है विश्व मोहन जी ....सखियों का बहु रूप शृंगार ...👍👍👍👍👍
    हर काव्य एक नई अनुभूति के साथ अभिव्यक्त ...बहुत सुन्दर हर कलम बेहतरीन ...नमन सभी को
    मेरे लेखन को स्थान देने का आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह ! विविध रंगों एवं आकारों को समेटे नाना प्रकार के सुरभ्युक्त सुमनों का बेहतरीन गुलदस्ता ! सभी रचनाकारों को ह्रदय से बधाई ! मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  9. शुभसंध्या दी:)
    अभी तक सारी रचनाएँ पढ़ नहीं पायें हैं...पर जितनी पढ़ी सब बहुत अच्छी लगी।
    सच मेंं रचनात्मकता का यह रुप बहुत अनमोल है। यह सोचकर गर्व होता है कि मुझे ऐसे प्रतिभाशाली रचनाकारों का सानिध्य प्राप्त है।
    सभी रचनाकारों को मेरा नमन और हार्दिक शुभकामनाएँ।
    दी , हम तो आदतन लिख दिये थे..विषय पर आपने रचना शामिल कर ली। हृदय तल से अति आभार दी।🙏

    जवाब देंहटाएं
  10. सभी की रचनाएँ बहुत उम्दा...तहेदिल से शुक्रिया मेरी दोनों रचनाओं को शामिल करने हेतु !!!

    जवाब देंहटाएं
  11. आदरणीय यशोदा दी --- आज के हमकदम के लिए अपेक्षाकृत कठिन लक्ष्य था पर प्यारी बहनों ने खूब बढ़िया लेखनी चलाई प्रिय बहन इंदिरा जी की रचना बड़ी रोचक लगी | बाकि सभी ने भी विषय के साथ पूरा न्याय किया | और सच में ये महिला अंक ही बन गया | समाज में दोहरे चरित्र जी रहे प्रपंचियो ने समाज अपने छद्म आचरण से भ्रमित कर रखा है |अल्प ज्ञानी भाग्यविधाता बनकर जन्मो का भाग्य बांच रहे हैं यो कथित विद्वानों ने यहाँ - वहां , जहाँ तहां अपना वर्चस्व कायम करने में कोई कसर नही रख छोडी है || सभी कुछ बहनों की नजरों ने भांप बहुत सुंदर रुचिकर सृजन किया है | सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनाये मिलें | आपको हार्दिक बधाई सुंदर , रोचक अंक सजाने के लिए | सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीया सखी यशोदा दीदी बेहद खूबसूरत प्रस्तुति
    लाजवाब संकलन
    सभी रचनाएँ उत्क्रष्टता को प्राप्त हैं
    रचनाकारों को खूब बधाई
    हमारी रचना को भी स्थान देने के लिए आभार
    सभी को सादर नमन शुभ रात्रि 🙇

    जवाब देंहटाएं
  13. यशोदा दीदी बहुत बहुत बहुत ही सुंदर लाजवाब प्रस्तुति दिन खूबसूरत हो गया सभी रचनाओं को पढ़कर
    सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं

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