सादर अभिवादन
आज का पन्ना समर्पित है
डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना के नाम
उनकी सारी रचनाएँ इतिहास हो गई
"समय" एक ऐसी "चीज़" है,
जो गिनते रहेंगें तो "कम" पडेगा,
"उपयोग" करेंगे तो "वृद्धि" होगी,
"संग्रह" करे तो हाथों से "निकल" जायेगा पर
"संभाल" लोगे तो ये आपका हो जायेंगा.
01 जुलाई 1942- 29 अप्रैल 2021
साहित्य का एक और सूरज कोरोना के चलते अस्त हो गया। गुरुवार को कुंवर बेचैन का निधन हो गया, वह लंबे समय से संक्रमण से लड़ रहे थे। हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के उमरी गांव में हुआ था। मुरादाबाद से उनका विशेष लगाव था। चंदौसी के मेला गणेश चौथ और मुरादाबाद के जिगर मंच और कलेक्ट्रेट मैदान के कवि सम्मेलनों और मुशायरों में वह हर वर्ष आते थे।
कुंवर बेचैन साहब ने कई विधाओं में साहित्य सृजन किया। कवितायें भी लिखीं, ग़ज़ल, गीत और उपन्यास भी लिखे।
बेचैन' उनका तख़ल्लुस है असल में उनका नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना है। बेचैन जी गाजियाबाद के एम.एम.एच. महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे। उनका नाम सबसे बड़े गीतकारों और शायरों में शुमार किया जाता था। उनके निधन को साहित्य जगत को एक बड़ी क्षति पहुंची है। व्यवहार से सहज, वाणी से मृदु इस रचानाकार को सुनना-पढ़ना अपने आप में अनोखा अनुभव है। उनकी रचनाएं सकारात्मकता से ओत-प्रोत हैं।
ये लफ़्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल,
अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल ।
कहे जो तुझसे उसे सुन, अमल भी कर उस पर,
ग़ज़ल की बात है उसको न ऐसे टाल के चल ।
तुम बिन थम जाएगा साथी ,
मधुर गीतों का ये सफर ;
रुंध कंठ में दम तोड़ देगें -
आत्मा के स्वर प्रखर ;
बसना मेरी मुस्कान में नित
ना संग आंसुओं के बहना तुम
तू, क्या जाने, कुछ खो देने का, गम!
यूँ, अपनों से बिछड़न,
जीवन भर, जीवन खोने का गम,
जा, ना यूँ मन को बहला,
जा, अप्रिल तू जा!
झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!
सन्नाटे में घर है
पूरा शहर है
यूँ कहें पूरा देश है
बदला हुआ परिवेश है
रात में सन्नाटा चीरतीं हैं कुछ आवाजें
एंबुलेंसें
आती जाती गाड़ी
सायरन बजाती घड़ी घड़ी
पाँच मिनट बाद
पीछे से औरत के रोने की आवाज
यह सत्य भी
जानती हूँ
जीवन के अनसुलझे,
रहस्यमयी प्रश्नों
विपश्यना,
"मैं से मोक्ष"
की यात्रा में
तुम ही
निमित्त
बन सकते हो
कदाचित्।
......
आज बस
किसी ने कहा है
कल्कि आ गया है
आ जाए तो जो
धरा भी हलकी हो
सादर
विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंसादर..
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी,प्रणाम !
कुंवर बेचैन साहब को विनम्र श्रद्धांजलि एवम शत शत नमन ।
आज के सुंदर एवम पठनीय अंक के लिए आपका हृदय से आभार,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपको मेरा नमन एवम वंदन..सादर जिज्ञासा सिंह ।
दिवंगत कवि कुंअर बेचैन की पुण्य स्मृति को समर्पित भावपूर्ण अंक आदरणीय दीदी!उनका जीवन शानदार उपलब्धियों से भरा रहा। अपनी रचनाओं के माध्यम से वे सदैव अमर हैं। पुण्यात्मा कवि को उनकी ही पंक्तियों के माध्यम से विनम्र सादर श्रद्धानजलि! ********
जवाब देंहटाएं****मौत तो आनी है तो फिर
मौत का क्यों डर रखूँ/
जिन्दगी आ, तेरे क़दमों पर
मैं अपना सर रखूँ//
कौन जाने कब बुलावा आए
और जाना पड़े
सोचता हूँ हर घड़ी
तैयार अब बिस्तर रखूँ//*****
दिवंगत कवि की कालजयी रचना के साथ, अन्य रचनाकारों के बीच में मेरी पुरानी रचना को शामिल करने के लिए सादर आभार। सभी को सस्नेह शुभकामनाएँ🙏🙏 💐💐
डॉक्टर कुँवर बेचैन जी को सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि ।
जवाब देंहटाएंआज इस पन्ने पर सारी रचनाएँ बेहतरीन सहेजी हैं ।
सादर श्रद्धा सुमन
जवाब देंहटाएं..
आदरणीय कवि कुँवर बेचैन जी को विनम्र श्रद्धांजलि व नमन । आज की प्रस्तुति के द्वारा उन्हें जानने का सौभाग्य मिला, अब उनकी और भी रचनाओं को पढ़ने का प्रयास करूँगी। उनकी रचना से ही आरंभ हुई प्रस्तुति बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचनाओं से सजी है। आदरणीया रेणु मैम की रचना को पढ़ कर मन आनंदित हो गया। उनकी सभी प्रेम कविताएं बहुत ही सुंदर व भावपूर्ण होतीं हैं और कहीं ना कहीं अलौकिक भाव रखतीं हैं। आदरणीय पुरुषोत्तम सर की रचना बहुत ही मार्मिक है और आज की स्थिति का सटीक व करुण वर्णन है । आदरणीया जिज्ञासा मैम की रचना बहुत भावुक कर देती है और साथ ही बहुत ही सटीक प्रेरक संदेश देती है । आदरणीया श्वेत मैम की रचना बहुत ही सुंदर लगी, कृष्ण-अर्जुन संवाद का स्मरण करा दिया । अत्यंत आभार आज की इस अति सुंदर प्रस्तुति के लिए व आप सबों को प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं से सजी लाजवाब प्रस्तुति...।
जवाब देंहटाएंडॉक्टर कुँवर बेचैन जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि.... । उनका जाना वाकई साहित्य जगत की अपूर्णीय क्षति है।