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सोमवार, 2 नवंबर 2020

1933....कोरोना वायरस बदलती युवाओं की जीवन शैली

 
जय मां हाटेशवरी......
कल उपस्थित नहीं हो सका था......
कल नहीं तो आज सही.....
देखिये मेरी पसंद के पांच लिंक.....

खतरा कट्टरता की लहर का

‘शार्ली एब्दो’ केवल इस्लाम पर ही व्यंग्य नहीं करती थी। उसके निशाने पर दूसरे धर्म भी रहते हैं। उसका अंदाज़ बेहद तीखा होता है, पर सवाल यह है कि धर्मों को व्यंग्य का विषय क्यों नहीं बनाया जा सकता? सवाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी है। जो केवल कलम का इस्तेमाल करता है या ब्रश से अपनी बात कहता है उसका जवाब क्या बंदूक से दिया जाना चाहिए? यह बात केवल इस्लामी कट्टरता से नहीं जुड़ी है। हर रंग की कट्टरता से जुड़ी है। 


उम्र भर की तलाश                            
पहली बार जब उसने
लाड़ से कहा-
यह तेरा अपना घर..
तेरी मेहनत का फल
 तब से किंकर्तव्यविमूढ़
 सी खड़ी है
अधिकार जताने की
किताब कभी पढ़ी नहीं
और न ही मिली कभी सीख
बस एक जिद्द थी
मेरा क्यों नहीं..


कोरोना वायरस बदलती युवाओं की जीवन शैली
 इस कोरोना काल में भारत भी आर्थिक समस्या से जूझ रहा है।  बेरोजगारी बढ़ रही है। प्राइवेट सेक्टर में कंपनियां छँटनी कर रही हैं. मध्यमवर्गीय  लोग  व सभी कर्मचारियों की हालत एक जैसी हो रही है.  सभी एक जैसी मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं भारत में 90 दशक के बाद के बच्चे पश्चिमी सभ्यता को कुछ ज्यादा ही आत्मसाध कर रहे थे,
जिसके कारण भव्य खर्चे में आत्म सुख तलाश रहे थे और अभिव्यक्ति का लाभ उठा रहे थे।
यह इस दौर की सबसे बड़ी उछाल थी.  सबसे बड़ा असर उन युवाओं को पड़ा  जो हाल ही में आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने वाले थे. एक झटके में उनके हाथ से नौकरी चली गई। मानसिक स्थिरता की जगह चिंता और असंतोष का भाव उनको व्यथित करने लगा। 



शेर किसी और का, अंदाज़ अपना
ये है जनतन्त्र पर दिल चाहता है
मिलाएं सब घड़ी मेरी घड़ी से
इबादत ही मेरी काफ़ी नहीं है
मुहब्बत भी करें मेरी छड़ी से


कदमों के निशान
बदलना होगा अब तुझको भी
ढलना होगा अब तुझको भी
चल बढ़ बढ़ता चला
न रुकना न थमना कभी



अतुकान्त "अतुकान्त गीत और कुगीत" ....डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूर, कबीर, तुलसी की
नही थी कोई पूँछ,
मगर
आज अधिकांश ने
लगा ली है
छोटी या बड़ी
पूँछ या मूँछ।
क्योंकि इसी से है
उनकी पूछ 


धन्यवाद।

 


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