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शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

812....काँटे भी कम नहीं थे गुलाबों की राह में

सादर अभिवादन
जैसे-जैसे दीपावली पास आ रही है
व्यस्तता बढ़ते जा रही है...साफ-सफाई से उत्पन्न
धूलि सिर पर चढ़कर बोल रही है...पर लिखने-पढ़ने वाले तो बस
चिन्तामुक्त होकर धूल पर ही कविता लिख डालते हैं...
आ गई मैं सुबह का दौरा निपटाकर....
आज लिंक कुछ ज़ियादा ही है
अझेल हो गई है......
उत्सव शरद पूर्णिमा कल हो गई...
उस पर लिखी गई रचना.....



बरसी चाँदनी........श्वेता सिन्हा
रिमझिम-रिमझिम बरसी चाँदनी,
तन-मन,रून-झुन, बजे रागिनी।
नील नभ पटल श्वेत नीलोफर,
किरण जड़ित है शारद हासिनी।


बड़े ही उलझे थे जीवन के अनगिन  धागे -
जिनको सुलझाने की सुनहरी आस में आई
यूँ लगता है माँ के उग आई पांखें-
लग अपनों के गले खिलखिलाने लगी है !
माँ की आँख डबडबाने लगी है !!!

खुशी से दर्द की आँखों में आ गए आंसू
मिला जो शख़्स वो ख़्वाबों का हमसफ़र निकला

रोज दाने बिखेरता है जो परिंदों को
उसके तहख़ाने से कटा हुआ शजर निकला

कोलाहल के है ये स्वर,
कण से कण अब रहे बिछर,
स्रष्टा ने तोड़ी खामोशी, टूट पड़े हैं मौन के ज्वर,
त्राहिमाम करते ये मानव,
तज अहंकार, ईश्वर का अब कर रहे पुकार!

यूँ मंजिलों की राह भी आसान नहीं थी,
बहके कदम तो फिर से सँभलना सिखा गई ।

काँटे भी कम नहीं थे गुलाबों की राह में,
खुशबू की तरह हमको बिखरना सिखा गई ।

इश्क़ दरिया है जो तैरे वो तिहेदस्त रहे
वो जो डूबे थे किसी और क़िनारे निकले

धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे
शाख़ फूटी थी कि हमसायों में आरे निकले

धीरे - धीरे अंधकार, अस्तित्व को अपने में - 
अन्तःसलिल करती हुई - - अब 
सिर्फ़ है कुछ अपने पास, तो 
वो है अवकाश ही 
अवकाश।

धड़कता हूँ किसी की धडकनों में 

किसी का ख़्वाब होता जा रहा हूँ 
फितरतन हूँ नहीं बेसब्र फिर भी 
इधर बेताब होता जा रहा हूँ 


अब बस...
बहुत हो चुका यशोदा ...
आपने कृष्णविवर का नाम तो सुना ही होगा

जी हाँ...ब्लेक होल...
जहाँ कोई जाकर बाहर नहीं निकल सकता
उसका अविष्कार अनजाने मे ही हो गया
देखिए मात्र तीन मिनट...



16 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात दी:)
    बहुत सुंदर लिंको का संयोजन, सारी रचनाएँ अत्यंत सराहनीय है।विविधतापूर्ण भाव से भरी पठनीय लिंक्स। मेरी रचना को शीर्षस्थान.देने के लिए अत्यंत आभार आपका दी।
    सभी साथी रचनाकारों को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. इस अनोखी सी प्रस्तुति में उच्च कोटि की रचनाओं के मध्य अपनी रचना को भी पाकर मन शरद पूर्णिमा की चाँद सा खिल उठा है। आभार। समस्त रचनाकारों को नमन व बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात दीदी
    उत्तम रचनाएँ
    आभार..
    बेहतरीन वीडिओ
    आदर सहित

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत आभार
    बहुत सुंदर संकलन
    सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर सूत्रों का चयन सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह! बेहतरीन प्रस्तुति। आदरणीया बहन जी को बहुत बहुत बधाई। उत्कृष्ट रचनाओं से सजा गुलदस्ता है आज का अंक। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीया दीदी प्रणाम आज का अंक विशेष लगा ख़ासकर मीना जी की कृति आभार "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  8. ब्लैकहोल पर आधारित चलचित्र अनोखा ही नहीं शिक्षाप्रद भी है। आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय दीदी ----- सादर , सस्नेह प्रणाम | आजके लिंक की सभी रचनाएँ पढ़ी | बहुत अच्छी लगी | चयनित सभी रचनाकारों को सस्नेह बधाई | आपने मेरी रचना को आज के लिंक में स्थान दिया , बहुत आभारी हूँ आपकी |

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीय यशोदा दीदी,
    सही कहा आपने, जैसे जैसे दीवाली पास आती जा रही है, व्यस्तता बढ़ती जा रही है । बच्चों की छहमाही परीक्षा के पेपर जाँचने हैं.... दीवाली की साफ सफाई....थोड़े बहुत बाजार के चक्कर....सर्वाइकल का बढ़ता दर्द....
    .....ज़िंदगी दर्द में भी हँसकर जीना सिखा गई...
    काँटे भी कम नहीं थे गुलाबों की राह में...
    ये स्नेह जो मिल रहा है यही गुलाबों की राह है । कैसे आभार करूँ आप सबका ? सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुन्दर,पठनीय लिंक संकलन....
    ब्लैक होल .. ...बहुत सुन्दर....
    लाजवाब प्रस्तुतिकरण...

    जवाब देंहटाएं

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