सादर अभिवादन
कल एक समाचार पढ़ा -"फेसबुक पोस्ट के कारण 18 वर्षीय युवक को 42 दिन जेल में काटने पड़े।"
सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोग समझदारी से अपनी वैचारिक स्वतंत्रता को अभिव्यक्त करने के बजाय विभिन्न वादों की वकालत और नफ़रत फैलाने में भी कर रहे हैं। बुज़ुर्गों ने हमें कुछ कहावतें दी हैं बड़ी सीख के साथ जिनमें से एक है -"बन्दर के हाथ में उस्तरा" दूसरी है -"बन्दर के हाथ में मशाल "......
अंतरजाल पर एक शब्द टाइप करते ही आप ग्लोबल रायटर हो जाते हैं अतः इस आज़ादी से जुड़ी तमीज़, जवाबदेही, अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय क़ानून,स्थानीय हालात की बाध्यताएं और न्यूनतम सामाजिक तहज़ीब को समझते हुए आगे बढ़ना ज़रूरी है।
चलिए अब आपको ले चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -
पढ़िए लैंगिक समानता के विचार को आधार देता आदरणीय शास्त्री जी का एक सामयिक दोहा गीत -
पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष।
अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।।
कृष्णपक्ष की अष्टमी, और कार्तिक मास।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।
ऐसे रीति-रिवाज को, बार-बार धिक्कार।
बेटों जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।।
11 अक्टूबर 1942 को महाकवि हरिवंशराय बच्चन और श्रीमती तेजी बच्चन के घर जन्मे सदी के महानायक का ख़िताब पा चुके अमिताभ बच्चन जी कल 75 वर्ष के हो गए। इस उम्र में भी उनकी सक्रियता युवा पीढ़ी के लिए चुनौती बनी हुई है। आदरणीया अभिलाषा जी ने समर्पित की है एक भावप्रवण रचना-
अपने छुवन की एक नूरानी रात दे दो न हमें
घुट रही तुम बिन बेसबब ज़िन्दगी
सियाह रातें हैं दिन बस एक उलझन
तुम्हारे आने की खुशी में महका है ये मन
वो घूँट मुक़द्दस खुशियों के पी लेने दो न हमें।
पेश है आदरणीया मीना भारद्वाज जी की तारों भरी रात (विभावरी) सी चमकती हुई आकर्षक अर्थपूर्ण हाइकु-श्रृंखला-
सोया वो चन्दा
गुप चुप से तारे
सोती रजनी
भोर का तारा
दूर क्षितिज पर
ऊषा की लाली
जीवन की दिशा यदि सकारात्मता की ओर राह पकड़ ले तो जीवन का अर्थ और उद्देश्य ही बदल जाता है। पढ़िए शिक्षाविद आदरणीय राजीव कुमार झा साहब की प्रेरक वैचारिक प्रस्तुति -
जीवनदान मिलने के बाद स्ट्राउड ने आत्मचिंतन किया और पाया कि अपने क्रूर और शराबी पिता के कारण ही वह चिड़चिड़ा और आक्रामक बन गया था.उसकी मां के साथ विश्वासघात कर उसके पिता ने उन दोनों को छोड़ दिया था. स्ट्राउड ने अब भले व्यक्तियों की भांति जीवन बिताने का निश्चय किया .वह अपनी कोठरी में ग्रीटिंग कार्ड चित्रित करता और मां के माध्यम से बाजार में बिकने के लिए भेज देता.
जज़्बातों को बयां करने का जुदा अंदाज़ हासिल कर चुके ग़ज़लकार आदरणीय लोकेश नशीने जी की एक बेहतरीन ग़ज़ल पेश है आपकी सेवा में-
तल्ख़ एहसास से महफूज़ रखेगी तुझको
मेरी तस्वीर को सीने से लगाए रखना
ग़ज़ल नहीं, है ये आइना-ए-हयात मेरी
अक्स जब भी देखना एहसास जगाए रखना
आज बस इतना ही।
आपके सारगर्भित सुझावों ,मन को आल्हादित करती प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में।
फिर मिलेंगे।
भाई रवीन्द्र सिंह यादव जी....
जवाब देंहटाएंआप की भूमिका में आपने जो संदेश दिया है, वो आज के नवयुवकों के लिये बहुत ही उपयोगी है, अगर हम सोशल मिडिया को देखे तो ये हमारे लिये वर्दान भी है, अभिशाप भी। ये हम पर निर्भर है कि हम इस का उपयोग कैसे करते हैं।
उपयोगी लिंकों के साथ सुंदर चर्चा की है आपने.....
शुभ प्रभात रवीन्द्र जी..
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ पढ़वाइ आपने
सादर
बढ़िया लिंकों का चयन।
जवाब देंहटाएंआपका आभार जी।
उम्दा प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाओं का गुलदस्ता
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक संयोजन. मेरी रचना को संकलन में स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार रविन्द्रसिंह जी .
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात रवींद्र जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित संदेश दिया है।बहुत ही प्रभावशाली एवं सटीक भूमिका लिखी है आपने।आपकी बातों से हम भी सहमत है।
बहुत सुंदर लिंकों का का संयोजन है।
सभी रचनाकारों को मेरी बधाई एवं शुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति,रवींद्र जी.मुझे भी शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंRavindra ji, bahut-bahut dhanyawad apka mujhe sammaniya sthan dene ke liye. Collection har bar ki tarah aj bhi bahut achha hai.
जवाब देंहटाएंSadhuwad sabhi rachnakaron ko.
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया प्रस्तुति रवींद्र जी ।
जवाब देंहटाएंहलचल करती शानदार प्रस्तुति। सभी रचनाकारों को बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविंद्र जी आज का अंक कई मायनों में विशेष है। एक तरफ आपने संसाधनों की महत्ता पर बारीक़ी से प्रकाश डाला है और वहीं सुन्दर लिंको का चयन। प्रस्तुति काबिलेतारीफ़ ,
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर लिंक संकलन....बेहतरीन प्रस्तुतिकरण...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ पढ़ीं । सुंदर सूत्र संकलन । सादर धन्यवाद।
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