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शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2017

819....बस ज्ञानी हिंदू ही पढ़ें समझ में आ जाये तो लाईक भी करें फिर फार्वर्ड भी करें

सादर नमस्कार..
देवी जी ने अधिसूचना जारी 
कर कहा, शुक्रवार की प्रस्तुति आप बना दें ....
मेरा मन नही है...मैंने भी अपने मन से कहा
मन तो मेरा भी नहीं है.....
चलिए......
मम्मी जी के लिए दो पंक्तियां....
......
तुम तो हमें रुलाकर दूर चले गये..
 किससे मैं पूछूँ, हमारी ख़ता क्या है..
......
पढ़ी सुनी रचनाओं की ओर घूमिए....
रचनाएं और रचनाकार कभी भी पुराने नहीं होते हैं
इतिहास बन जाते हैं...फिर उसपर जमी धूल उड़ा कर
लोग अब भी पढ़ते हैं व अनुसरण करते हैं
बातें बहुुत हो गई......चलिए चलें......


धागा... रश्मि शर्मा
धागा,
जो प्रेम का होता है
धागा,
जो मोतियाँ पिरोता है
धागा,
जो फूलों की माला गूँथता है



रस्में जहाँ की कोई कैसे अब निभायेगा....नीतू राठौर
तू रोज-रोज ही कहती पियों न आँखों से
दरिया बनके तू दिल में समाई जाती है।

डूबें है रात से आँखों के तेरे अंजुमन में
ये बातें चाँद-सितारों से छुपाई जाती है।

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पल दो पल में.........श्वेता सिन्हा
उम्र वक़्त की किताब थामे प्रश्न पूछती है,
ज़ख्म चुनते ये उम्र कैसे निकल जाती है।

दबी कोई चिंगारी होगी राख़ हुई याद में,
तन्हाई के शरारे में बेचैनियाँ मचल जाती है।


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चाँद का दीदार...ऋतु आसूजा
आकाश में तो झिलमिलाते तारों की
बारात थी ,सितारों* का सुंदर संसार
असँख्य सितारे झिलमिला रहे थे।
मानों कोई जशन हो रहा हो....


आराम चाहिए....सुधा देवरानी
आज हर किसी को आराम चाहिए
न हो हाथ मैले,न हो पैर मैले....
ऐसा अब कोई काम चाहिए...
बिन हिले-डुले कुछ नया कर दिखायेंं!!
हाँ! सुर्खियों में अपना अब नाम चाहिए


मुझसे ऐसी उम्मीदे रखते है....जॉन एलिया
अपने किनारों से कह दीजो आंसू तुमको रोते है
अब मैं अपना सोग-नशीं हूँ गंगा जी और जमुना जी

मैं जो बगुला बन कर बिखरा वक्त की पागल आंधी में
ज्यादा मैं तुम्हारी लहर नहीं हूँ गंगा जी और जमुना जी


कूची है तारे....श्वेता सिन्हा
बिन तेरे है
ख़ामोश हर लम्हा
थमा हुआ सा


पुराने अखबार का पन्ना..सड़कों पर उड़ता हुआ मिला

इलाज किसका 
होना चाहिये 
आज के 
विश्व मानसिक 
स्वास्थ दिवस के दिन 
‘उलूक’ बस यही बात 
आज भी नहीं 
समझ पा रहा है 
....
ताजा अखबार भी आ गया
उसकी एक कतरन....


‘उलूक’ 
देखता है 
समझता है 
बस जानवर 
जानवर खेल 
नहीं पाता है 

आदमी हो लेने 
के प्रयास में 
मायूस हो जाता है 

साँप बना आदमी 
आदमी को साँपों 
की सोच से डराता है । 


आज बस
आदेश की अवहेलना नहीं हुई

पर मनमानी जरूर हुई है...
आज्ञा दें
दिग्विजय ..











14 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात आदरणीय सर,
    आपने सारगर्भित बात कही रचना और रचनाकार कभी पुराने नहीं होते।माँ के लिखी दो पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी।बहुत सुंदर लिंकों का संयोजन मेरी रचनाओं को मान देने के लिए अति आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत उम्दा रचनायें
    बेहतरीन संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर हलचल । आभार 'उलूक' के उड़ते पन्नों को सम्मान देने के लिये दिगविजय जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात जीजू
    अच्छी रचनाएँ,,,
    तुम तो हमें रुलाकर दूर चले गये..
    किससे मैं पूछूँ, हमारी ख़ता क्या है..
    आदराँजली....
    आदर सहित

    जवाब देंहटाएं
  5. सादर अभिवादन। आज के इस वैचारिक विविधतापूर्ण संकलन से सजे अंक की प्रस्तुति के लिए आदरणीय दिग्विजय भाई जी को बधाई। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति के साथ सुन्दर लिंक संकलन....
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
    सादर आभार...

    जवाब देंहटाएं
  7. Digvijay sir...maine aaj hi aapka comment dekha... Aapne meri rachna ko jagah di...uske liye thank you.. N sorry for late response

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर संकलन दिग्विजय अग्रवाल जी ,
    सभी रचनायें स्वयं में विशिष्ट है ,धन्यवाद मेरी रचना को भी आज के पाँच लिंको के आनंद में शामिल करने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय दिग्विजय साहब बहुत ही तार्किक संकलन ,सुन्दर सन्देश देती हुई। सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर रचनाएँ हैं । सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही बेहतरीन हलचल अंक। wahhhhh। सभी रचनाकार एक से बढ़कर एक।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर हलचल। मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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