सादर अभिवादन
लगता है आज बारिश नहीं होगी
हमारे आज के सरदार
विरम सिंह इन पंक्तियां के लिखे जाने तक
नहीं दिख रहे...
आज की कुछ पढ़ी व अन पढ़ी रचनाओं के साथ..
उपस्थित हूँ...
क्या कर दिया....प्रीति जैन
मजाक ही मजाक मे तुमने क्या कर दिया।
जो जख़्म भरा था फिर हरा कर ...दिया।।
जरा कुछ देर ठहर सोचा तो ...होता।
हृदय के तराजू मे खुद तोला तो होता।।
चाहने वालो ने खुद को फ़ना कर दिया।
मोम के पुतले सा फिर खड़ा कर दिया।।
तेरे पहलू में सर छुपा ले तो क्या हो
इस जहाँ को शमशान बना दे तो क्या हो
जी नहीं सकते इक पल भी तुम बिन
तुझे इस जहाँ से चुरा ले तो क्या हो
नभ में उड़ने की है मन में,
उड़कर पहुँचूँ नील गगन में।
काश, हमारे दो पर होते,
हम बादल से ऊपर होते।
ऐ चांद !
मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना...
अब नहीं उठते हाथ
दुआ के लिए
तुम्हें पाने की ख़ातिर...
जब भी होता है, दर्द दवा लेता हूँ
हर बार सच को छुपा लेता हूँ।
खड़ा रहता हूँ, तमाशाई बनकर
चुप रहता हूँ, जुर्म को हवा देता हूँ।
“ बिटीया!!! ज़रा अब्बू का पाजामा एक बालिश्त छोटाकर देना
सुबह को ईद है”
ईद की सुबह. अब्बू फज्र की नमाज़ से फारिग हो
अपना लिबास बदलने की तैय्यारी करते करते चिल्ला रहे थे “ अरे लड्कियों! मशीन पर रखी ग्रे चड्डी के नीचे उसी रंग का पाजामा रखा था !!! क्य तुम में से किसी ने उसे देखा है??? “
समंदर ने तुम से क्या कहा
इस्तिग़ासा के वकील ने तुम से पूछा
और तुम रोने लगीं
और अंत में एक कल के ताजे अखबार की कतरन
समझने के लिये जरूरी नहीं होती है सारी उल्टियाँ
जरूरी नहीं
होता है होना
हर किसी के
पास रीड़ का
अच्छा होता है
सरकना साँप
की तरह
फूँकते हुए हवा
में अपनी
अच्छाइयाँ ।
अभी रात के दो बजे हैं..
सुबह पाँच बजे ये प्रस्तुति आप पढ़ेंगे
आज्ञा दें कल फिर मिलते हैं
दिग्विजय..
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
असुविधा के लिए खेद है
कल प्रस्तुति लेने बैठा तो अचानक नेट चलना बंद हो गया । किसी ब्लॉग पर सुचना नही दे पाते रहा था।
माफी चाहता हू
सुन्दर रविवारीय अंक दिग्विजय जी । आभारी है 'उलूक' सूत्र 'समझने के लिये जरूरी नहीं होती है सारी उल्टियाँ' को शीर्षक देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतुआभार!
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स एक से एक अच्छे। सन्दर लिंक्स के चयन के लिए
जवाब देंहटाएंचर्चाकार मित्रों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
आनन्द विश्वास