धड़कते दिलों को तोड़ रहे हैं
सुन पा रहे नहीं
अपनों की चित्कार
ऐसे अपनों को अपना समझने की
वंदना सिंह
बहुत कुछ था मेरे पास
जो मैं कह देना चाहती थी
मगर मौन यूं गहरा गया जिंदगी में
कि बहुत सोचती हूँ कुछ बोलने से पहले
अब सोचती हूँ तो लगता है
संध्या शर्मा
अक्षर अक्षर
शब्द मेरे
जानती नहीं कब हो गए
भाव तुम्हारे इस सफ़र का
पता ही न चला
संजय भास्कर
हादसों के शहर में ,
सबकी खबर रखिए !
कोई रखे न रखे ,
आप जरूर रखिए !
इस दौर में
वफा कि बातें ,
यक़ीनन सिरफिरा है कोई ,
गुज़र जाती है पूरी उम्र ज़ालिम को भुलाने में
कभी बच्चों के सपने के लिए बरबाद मत करना
कमाई खत्म हो जाती है अपना घर बनाने में
अच्छी रचनाएँ
जवाब देंहटाएंसाधुवाद,,,
ईद की बधाई के संग शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबढियां प्रस्तुतिकरण
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति..
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