आज रथ यात्रा भी है...बड़ा ही शुभ दिवसऔर सोने में सोहागा कि आज ईद-उल-फितर भी हैअद्भुत संगम है दोनों उत्सव कासर्व प्रथम बुद्धिदात्रि माँ सरस्वती को सादर नमन...
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार ।
मौन मुझसे बातें करता
मौन अपना साथ है,
मौन अपना प्यार है
मौन अपनी जीत है
मौन अपने गीत हैं.........
मौन ही चलते रहें हम
क्षितिज तक मिलने के भ्रम में
भ्रम ही बन जायें हम-तुम
और यूँ मिल जायें हम-तुम !
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।”
“लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।”
“गाते थे खग कल कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खर शर से, हुई पक्षी की हानी।”
“हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!”
जयशंकर प्रसाद
सर्वप्रथम छायावादी रचना 'खोलो द्वार' 1914 ई. में इंदु में प्रकाशित हुई।
हिंदी में 'करुणालय' द्वारा गीत नाट्य का भी आरंभ किया।
नाटक और रंगमंच प्रसाद ने एक बार कहा था—
“रंगमंच नाटक के अनुकूल होना चाहिये
न कि नाटक रंगमंच के अनुकूल।”
भारत महिमा
हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार ।
उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक-हार ।।
जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक ।
व्योम-तुम पुँज हुआ तब नाश, अखिल संसृति हो उठी अशोक ।।
विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत ।
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत ।।
हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि - हरिवंश राय बच्चन
उनकी कृति दो चट्टाने को 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। विरला फांडेशन ने उनकी आत्मकथा चार खंडों के लिये उन्हें पहला सरस्वती सम्मान (1991) दिया था। बच्चन
को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
भारतेंदु हरिश्चंद्र
“आवहु सब मिल रोवहु भारत भाई
हा! हा!! भारत दुर्दशा देखि ना जाई।”
ये पंक्तियां आधुनिक हिंदी के प्रवर्तक भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक ‘भारत दुर्दशा’ की हैं। भारतीय नवजागरण और खासकर हिंदी नवजागरण के अग्रदूत के रूप में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पहली बार अंग्रेजी राज पर कठोर प्रहार किया था। इसके साथ ही, उन्होंने अंग्रेजों के सबसे बड़े सहयोगी सामंतों पर भी चोट की थी। भारतेंदु का समय भारतीय इतिहास में बहुत ही बड़े उथल-पुथल से भरा था। उनके जन्म के ठीक सात साल बाद अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा जनविद्रोह हुआ था-1857 का ग़दर। इस ग़दर
ने अंग्रेजों को भीतर से हिला दिया था और इसी के बाद अंग्रेज़ शासकों ने कुख्यात ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अख़्तियार की थी,
जिसका विघटनकारी प्रभाव आज तक बना हुआ है।
मातृभाषा प्रेम पर दोहे
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
गोपाल दास सक्सेना "नीरज"
जन्म: 4 जनवरी 1925
(ग्राम: पुरावली, जिला इटावा, उत्तर प्रदेश, भारत),
हिन्दी साहित्य के लिये कॉलेज में अध्यापन से लेकर कवि सम्मेलन के मंचों पर एक अलग ही अन्दाज़ में काव्य वाचन और फ़िल्मों में गीत लेखन के लिये जाने जाते हैं।
पद्म श्री सम्मान (1991), पद्म भूषण सम्मान (2007)
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ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा उनकी गली में मेरा
जाने शरमाए वो क्यों गांव की दुल्हन की तरह
कोई कंघी न मिली जिससे सुलझ पाती वो
जिन्दगी उलझी रही ब्रह्म के दर्शन की तरह
दाग मुझमें है कि तुझमें यह पता तब होगा ,
मौत जब आएगी कपड़े लिए धोबन की तरह
अंत में आज गुरु पूर्णिमा पर विशेष प्रस्तुति
दादू सब ही गुरु किए, पसु पंखी बनराइ....कविता रावत
घर में माता-पिता के बाद
स्कूल में अध्यापक ही बच्चों का गुरु कहलाता है।
प्राचीनकाल में अध्यापक को गुरु कहा जाता था और तब विद्यालय के स्थान पर गुरुकुल हुआ करते थे, जहाँ छात्रों को शिक्षा दी जाती थी।
चाहे धनुर्विद्या में निपुण पांडव हो या सहज और सरल जीवन जीने वाले राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न या फिर कृष्ण, नानक हो
या बुद्ध जैसे अन्य महान आत्माएं, इन सभी ने अपने गुरुओं से शिक्षाएं प्राप्त कर एक आदर्श स्थापित किया।
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंयह ब्लॉग हम सबका है
विशेषांकों को मिलजुल कर
विशेषांक बनाना ही अहम है
खेद है कि बहुत से मूर्धन्य साहित्यकारो
से परिचित नहीं करवा पाए हम
मसलनः- पं.हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामधारी सिंह दिनकर, मुंशी प्रेमचंद,पदुमलाल पन्नालाल बख्सी
पं.सूर्यकान्त त्रिपाठी..नाम लिखूँगी तो पृष्ठ मे जगह कम पड़ेगी
इन सबको पढ़कर ही लोगों ने लिखना सीखा है ऐसा मैं मानती हूँ
सादर
शुभप्रभात...
हटाएंअगर पाठक चाहेंगे तो हम समय-समय पर
इन हिंदी रूपी अंबर के सितारों से मिलाते रहेंगे...
आज कल हर जगह नैट बाधित भी है...
इस लिये प्रस्तुति बनाने में हम सब को काफी समय देना पड़ा...
आज गुरु पूर्णिमा भी है...
एक और शुभ दिन पर ब्लौग का जन्म दिन...
आनंद ही आनंद है....
बधाई ..... इक इंट जुड़ी बुनियाद में .... एक साल पूरे हुए ..... शुभकामनायें कई साल गुजरते जायें .....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर नव वर्षाँक।
जवाब देंहटाएंगुरुपूर्णिमा के सुवसर दूसरे वर्ष के प्रथम हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसभी को गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं!
पांच लिंको का आनन्द के 1 वर्ष पुरा होने पर सभी चर्चाकारो और पाठको को बधाई । यह यशोदा दीदी के मेहनत का नतीजा है
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