प्रस्तुत है
आज-कल व
पीढ़ियों पहले
पढ़ी चुनी रचनाएँ.....
हिंद - हिन्दुस्तानी - हिंदी....विभा दीदी
बिहार में मगही ,मैथली,भोजपुरी के संग हिंदी भी बोली जाती है ..... या यूँ कहें तो ज्यादातर हिंदी ही बोली जाती है .... बदलते माहौल का असर रहा तो कुछ सालों के बाद ज्यादातर अंग्रेजी ही बोली सुनी जाएगी .... जगह जगह मशरूम कुकुरमुत्ते की तरह अंग्रेजी स्कूलों का खुलने का असर और बच्चों पर दबाव कि वे अंग्रेजी में गिटपिट करें
यूँही बारिश में कई नाम लिखे थे...अनुपम चौबे
यूँही बारिश में कई नाम लिखे थे ,
अपने हाथों से कई पैगाम लिखे थे
अब तक जमी हैं वो यादों की बुँदे ,
झूमती बदली............रजनी मोरवाल
खिड़की पर झूल रही जूही की बेल
प्रियतम की आँखों में प्रीति रही खेल,
साजन का सजनी पर फैल गया रंग।
ढाई आखर भी पढ़ सकता...अनीता
उसका होना ही काफी है
शेष सभी कुछ सहज घट रहा,
जितना जिसको भाए ले ले
दिवस रात्रि वह सहज बंट रहा !
१७ वां कारगिल विजय दिवस....शिवम् मिश्रा
खामोश है जो यह वो सदा है, वो जो नहीं है वो कह रहा है ,
साथी यु तुम को मिले जीत ही जीत सदा |
बस इतना याद रहे ........ एक साथी और भी था ||
मन के कपाट....रश्मि शर्मा
अब चलूं कुणाल के पसंदीदा पनीर की सब्जी और बूंदी रायता बना लूं। आज वो जल्दी लौटेंगे, मैं जानती हूं। शादी के गुजरते सालों में प्यार कम हो न हो, कहीं दबता चला जाता है। हम अपनी-अपनी उम्मीद पूरी नहीं होने का रोना तो रोते हैं मगर कोई पहल नहीं करते। आज मैं शुरूआत कर ही दूं। कुणाल जो अपने मन के कपाट बंद करने लगे हैं वो, अब मैं उसे खोलकर रहूंगी, झगड़े से नहीं, प्यार से।
एक हफ्ते पहले...सदा
अर्थ बोलते हैं जब !
शब्द प्रेरणा होते हैं
जब मन स्वीकारता है उन्हें
तो अर्थ बोलते हैं उनके
आरम्भ होती हैं पंक्तियाँ
जन्म लेती है कविता
एक साल पहले......कविता रावत
जब कोई मुझसे पूछता है.......
'कैसे हो?'
तो होंठों पर ' उधार की हंसी'
लानी ही पड़ती है
और मीठी जुबां से
'ठीक हूँ '
कहना ही पड़ता है
और अंत मे शीर्षक रचना..
पता नहीं कितने पहले....डॉ. सुशील जोशी
हर कोई तुझे छोड़ कर
शिव होता है
तीसरा नेत्र जिसका
हर समय ही
खुला होता है
तू पढ़ रहा होता है
लिखे हुऐ को
शिव उधर
पंक्तियों के बीच में
नहीं लिखे हुऐ को
गढ़ रहा होता है ।
आज्ञा दें दिग्वियज को
मैं आता रहूँगा
नए चर्चाकार मिलते तक
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंवाह..
गुरु गुड़ रह गया
सादर
गुरु की गरिमा तभी है न
हटाएंह न त
ढ़ेरों आशीष संग शुभ प्रभात
बहुत सुन्दर प्रस्तुति दिग्विजय जी । आभारी है 'उलूक' सूत्र 'शिव की तीसरी आँख......' को शीर्षक रचना का स्थान देने के लिये
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी एक साल पुरानी ब्लॉग पोस्ट शामिल को शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों के आनंद में शामिल करने के लिए आभार..रचनाएँ तो पांच से ज्यादा हैं..पठनीय और सराहनीय..
जवाब देंहटाएंहाँ दीदी...
हटाएंवे आक्रामक हो जाते हैं
अतिक्रमण कर बैठते हैं
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति दिग्विजय जी...मेरी कहानी को शामिल करने के लिए आभार। मेरे इनबाक्स में आपका कमेंट तो दिख रहा है मगर वो पब्लिश नहीं हुआ। शायद कोई तकनीकी खराबी होगी। पुन: धन्यवाद और आभार।
जवाब देंहटाएंदीदी
हटाएंशुभ प्रभात
हाँ दीदी अभी देखी वो छूट गया
29 का अंंक देखिए..
लगा रही हूँ उसमें..
सादर
Are waaah ..... Kamaal ki prastuti :) (y)
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