जय मां हाटेशवरी....
एक-एक सांस उसके लिए कत्लगाह थी!
उसका गुनाह ये था कि वो बेगुनाह थी!
वो एक मिटी हुई सी इबारत बनी रही ,
चेहरा खुली किताब था, किस्मत सियाह थी!
शेहनाइयां-उसे भी बुलाती रही मगर,
हर मोड़ पर दहेज़ की कुर्बान्गाह थी!
वो चाहती थी कि रूह उसे सौंप दे मगर,
उस आदमी की सिर्फ बदन पर निगाह थी!
अब चलते हैं आज के आनंदमय सफर पर....
सबसे पहले....
सीता और लक्ष्मण सहित हरिराम का रात्रि में तमसा तट पर निवास,
उत्सुक नहीं नगर हित होना, देखो इस सूने वन को
पशु-पक्षी निज स्थान पर, बोल रहे अपनी बोली को
गूँज रहा है वन यह सारा, मानो देख हमें ये रोते
शोक मनाएगी अयोध्या, संशय नहीं मुझे है इसमें
मुझमें, तुममें, महाराज में, भरत और शत्रुघ्न में भी
अनुरक्त सद्गुणों के कारण, कितने ही अयोध्या वासी
पिता और माता के हेतु, शोक अति होता है मुझको
अश्रु निरंतर बहा रहे हैं, दृष्टि न खो बैठें वे दोनों
तो क्या हो
कहने को कहते हैं “खुदी को कर बुलंद इतना ……”
खुद ख़ुदा को जमीं पे ला दे तो क्या हो
मोहब्बत और जंग में सब जायज़ हे शायद
जंग को मोहब्बत बना दे तो क्या हो
लड़ने को तो ज़िन्दगी हे सारी
अब के ये दो पल मोहब्बत से बिता दे तो क्या हो
ओ टेम्स की लहरों, तुम मत बदलना
दुनिया को अलग-अलग टुकड़ों में देखना आसान है. लेकिन समूची दुनिया को एक सूत्र में पिरोकर रखना, उनकी स्वतन्त्रताओं, उनकी अस्मिताओं को सम्मान देते हुए, बिना
किसी पर अपना प्रभुत्व थोपे साथ मिलकर चलना ही तो मुश्किल है. साथ की यही ताक़त महसूस की होगी स्कॉटलैंड और आयरलैंड ने कि उन्होंने अपने सम्पूर्ण स्वतंत्र अस्तित्व
को बरकरार रखते हुए ब्रिटेन का साथ चुना. फिर आखिर वजह क्या थी इस अलगाव की? कौन थे वो अड़तालीस प्रतिशत लोग जिन्होंने अलग होना चुना और कौन हैं वो बावन प्रतिशत
लोग जो इस अलग होने को जीत के तौर पर देख रहे हैं.
रूप गर्विता
माना है तू बहुत सुन्दर
पर ना जन्नत की हूर
है तू आम आदमी ही
फिर क्यूं इतनी मगरूर
सब से दूर होने लगी है
आया क्यूं इतना गरूर
अनुभव
एक राह छलावा का
दूसरा जीवन का
कौन सही
इसका पता दोनों राहों पर चलकर ही होता है
बेटियों का अपराध
लड़कियाँ अपनी रोज़मर्रा के कार्यों में इस बात से कदाचित् अनभिज्ञ रहती हैं कि कौन सा कार्य उनके अपने लिये ही घातक साबित हो जाय और उनका ज़ख़्म ही इस समाज
की नज़र में जुर्म बन जाए और तब, वहाँ की सामाजिक व्यवस्था उन्हें दोषी क़रार देने में कुछ ज़्यादा ही सक्रिय हो जाती है।
आज की प्रस्तुति यहीं तक....
मेहरबान होकर बुला लो मुझे जिस वक़्त,
मैं गया वक़्त नहीं की फिर आ भी ना सकूँ.....
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतर से भी बेहतर रचनाएँ
विविधा लाएं है आप
सादर
बढ़िया सूत्र संयोजन कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर समायोजन बधाई .
जवाब देंहटाएंBadhiya link..@anubhav👌
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल कुलदीप जी ।
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