यूँ ही.....कुछ रद्दी पेपर का
व्यवस्थापन कर रही थी
एक कीमती अखबार का पन्ना
हांथ लग गया..
आप भी देखिए उस पन्ने की कतरन...
का रूठ जाना
बादल का फटना
एक गाँव का
बह जाना
आपदा के नाम
पर पैसा आना
अखबार के लिये
एक खबर बन जाना
श्यामनन्दन किशोर...
चमड़ी मिली खुदा के घर से
दमड़ी नहीं समाज दे सका
गजभर भी न वसन ढँकने को
निर्दय उभरी लाज दे सका
शान्तनु सान्याल...
न उसकी ख़ता, न कोई जुर्म था मेरा,
आग की फ़ितरत है लपकना, सो
जिस्म ओ जां सुलगा गया।
यूँ तो ज़िन्दगी थी
अपने आप में
ख़ुशहाल
मालती मिश्रा...
हम नभ के आज़ाद परिंदे
पिंजरे में न रह पाएँगे,
श्रम से दाना चुगने वालों को
कनक निवाले न लुभा पाएँगे।
सुषमा वर्मा...
जब तुम जा रहे थे,
मैं भी तुम्हारी आँखों में कुछ ढूंढ रही थी,
जो कभी मेरे लिये हुआ करता था....
जिसे महसूस करके,
मैंने जिंदगी के तमाम ख्वाब बने थे...
ऊपर पाँच रचनाओं के सूत्र तो जुड़ गए...
खुशकिस्मत रचनाओं के सूत्र भी है
जो एक बार चर्चा में आ चुकी है
और दुबारा आने को बेताब है...
नीचे दे रही हूँ..
रेवा टिबड़ेवाल..
हर सुबह करवाता
तू मुझसे कितनी मनुहार
कभी गुस्से मे
गुमा देता बाँसुरिया अपनी
कभी कानों के कुण्डल पर
खड़े हो जाते सवाल ,
सुमन....
एक हद तक
जीये जा सकते हैं सब सुख
एक हद तक ही
सहा जा सकता है कोई दुख
सरल सी चाही हुई जिंदगी में
मिलती हैं कई उलझने
बेहिचक बदल देते हैं हम रास्ता
मनचाहे को पाने के लिए
आज्ञा दें यशोदा को...
बुध को फिर मिलेंगे
बहुत सुन्दर सोमवारीय प्रस्तुति । आभार यशोदा जी 'उलूक' की छ: वर्ष पुरानी 'आपदा' पर नजर डालने के लिये और आज की हलचल में जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंभैय्या जी
हटाएंये आपदा तो हर वर्ष आती है
इन्तजार करते है करने वाले
इसी आपदा का
हवाई सैर के वास्ते
अभिवादन सहित
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
सुन्दर
मानसरोवर के मोती चुग लाए हो
चमड़ी मिली खुदा के घर से
दमड़ी नहीं समाज दे सका
गजभर भी न वसन ढँकने को
निर्दय उभरी लाज दे सका
बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति यशोदा जी सभी कृतियाँ बहुत ही उम्दा हैं, धन्यवाद आजाद परिंदे को शामिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति यशोदा जी सभी कृतियाँ बहुत ही उम्दा हैं, धन्यवाद आजाद परिंदे को शामिल करने के लिए।
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