“मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है; अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाए हैं। पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से; कि हमने आँधियों में भी
चिराग अक्सर जलाये हैं।” काकोरी कांड में पकड़े जाने पर मुकदमे के दौरान एक दिन गलती से जज द्वारा ‘मुजरिम’ की जगह ‘मुलाजिम’ कहे जाने पर राम प्रसाद बिस्मिल
ने यह पंखतियां अदालत में कही थी
राम प्रसाद बिस्मिल एक देशभक्त क्रांतिकारी के साथ ही एक उच्च कोटि के कवि भी थे
जिन्होंने अपने गीतों द्वारा नौजवानों को मात्रिभूमि के लिये....
सर्वस्व निछावर करने की प्रेर्णा दी।
कल 11 जून है....
शहीद राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म दिवस...
पांच लिंकों का आनंद की ओर से...
इस महान देशभक्त को कोटी-कोटी नमन....
क्या खूब लिखा है...
हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !
अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !
अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !
नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !
एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !
सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !
नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?
अब पेश है...कुछ पढ़ी हुई रचनाएं...
नाक का लौंग hindi story naak ka loung

कहानी बहुत छोटी है लेकिन इइसमें बहुत सी सीख भरी हुई है | कहानी के प्रत्यक पात्र से हमे कुछ न कुछ सिखने को जरुर मिलता है |
सेठजी से – सेठजी ने अपना हेल्प करने का भाव विपत्ति के समय भी बनाए रखा | ऐसा आज बहुत कम देखने को मिलता है |
मुनीम से – हमे मुनीम से स्वामीभक्ति सिखने को मिलती है| क्योंकि सच्चा मित्र या सेवक वो है जो दुःख के दिनों में काम आए | क्योकि सुख के समय तो साथ देने
वाले बहुत होते है| मुनीम ने सेठ की निर्धनता और बेबसी के दिनों में सेवा कर के सच्चे सेवक होने का परिचय दिया |
पत्नी से – कहा जाता है की व्यक्ति की सफलता के पीछे औरत का हाथ होता है | यह बात इस कहानी में साफ उजागर होती है| सेठजी की पत्नी ने संकट के समय अपने पति की
इच्छा पूरी करने के लिए अपने नाक की लौंग तक दे दी |
वेश्यावृत्ति और मानव तस्करी
तस्करी की गुप्त प्रकृति जो अकसर पारिवारिक सहमति से किया जाता है पर कोई सरकारी या गैर सरकारी संगठन योजना या कार्यवाही कारगर नहीं होती | उत्तर प्रदेश के १३ जिलों में किये गए अध्ययन से पता चलता है की १३४१ यौनकर्मियों में वेश्यालय पर आधारित वेश्यावृत्ति ७९३ थी तथा परिवार आधारित वेश्यावृत्ति ५४८ थी | हालाँकि बहुत कम सफलता मिली है पर महिलाओं और लड़कियों के पुनर्वास के प्रयास में अब एक अधिकार आधारित दृष्टिकोण अपनाने से स्तिथि में कुछ बदलाव आया है जो HIV/AIDS सम्बंधित
कलंक का मुकाबला करने , पीडितो को सशक्त बनाने की रणनीति का विकास और शामिल महिलाओं और लड़कियों के पुनर्वास मोड्डों पर आधारित है , लेकिन इस क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है | श्यामसुंदर कहते हैं , " हम मानते हैं की सभी बच्चों को बचाया जाय | एक १० वर्षीय बच्चे के लिए १० - १२ ग्राहक प्रति दिन बलात्कार से भी बदतर है , आवश्यकता है एक बहु - आयामी सशक्त रणनीति की जो तस्करी को रोकने में मदद करे और बचाव और पुनर्वास की प्रक्रिया में भी शामिल हो | कार्य अभी कठिन है , राजनीतिक प्रथिमिकताओं में इसे इतना महत्व नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए
लेखन और नारी
एक प्रश्न पूछूँ नर -
कल्पना-कथायें गढ़ लेना है और बात,
सचमुच संवेदना के साथ निभा पाये क्या ?
घेर कर दिवारें कभी बना तुम पाये घर ?
शिशु के भिगोये में सोये हो रात भर ?
कन-कन बटोर कभी राँध कर खिलाया,
भूखे बालक को कभी नेह भऱ हँसाया ?
लगातार कमियों से जूझे चुपचाप कभी
या कि सब झमेला छोड़ कर गये पलायन
खोल लिये नये द्वार, नये वातायन?
*
रोशनी में लाये कौन,
देखे बिना माने कौन
सुविधा,और साधन सभी तो तुम्हारे
ये फैली हुई धरती और खुला हुआ आसमान.
किन्तु हर ओर घात ,देखो रे खोल आँख
सूचना उसी के लिये -
- 'सावधान , सावधान !'
सच-सच बताओ, अपने समान माना कभी?
व्यक्ति और व्यक्ति का संबंध - पहचाना कभी?
ज़िंदगी कुछ ख़फ़ा सी लगती है

राह जिस पर चले थे हम अब तक,
आज वह बेवफ़ा सी लगती है।
संदली उस बदन की खुशबू भी,
आज मुझको कज़ा सी लगती है।
दर्द जो भी मिला है दुनिया में,
यार तेरी रज़ा सी लगती है।
जेहन से एक उछला पत्थर

मैंने रास्ते से कटीली झाड़ियाँ बटोरीं
और उसके निकास पर बिछा दी
वो उनपर पैर रखकर चला गया
मैंने देखा कुछ दूर जाकर उसने पैर के काटें निकाले
और पीछे मुड़कर भी नहीं देखा
मैंने उसके घर को रूख किया
और उसके पड़ोसी के घर चला गया
उसकी पत्नी की अल्ल्हड्ता पर चर्चा की
पड़ोसी ने मेरे मन की थाह ली
और उसके अंतर वस्त्र के रंग खोल दिये
पति के जाने के बाद चित्रित
रंगीन और गुलाबी सोच के न जाने कौन कौन से आसमानी रंग
उसके ही नहीं मेरे भी अपभ्रंशित मन मे
जो भरे थे
आकार लेने लगे
अब बाल की खाल नहीं उतरती, उसकी कीमत वसूली जाती है

कोलकाता से करीब सवा सौ की.मी. दूर मिदनापुर का काननडीहि गांव। आबादी करीब दो-सवा दो सौ के लगभग। समय शाम के तीन बजे के आस-पास। एक सायकिल सवार डुग-डुगी बजाता गांव के बीचो-बीच पहुँच खड़ा हो जाता है। उसके साथ ही एक बड़े से सायकिल ठेले में घरों में काम आने वाला लोहे-अल्युमिनियम और प्लास्टिक का सामान भरा हुआ है। हर गांव में साप्ताहिक हाट की तरह इनके आने का दिन भी निश्चित होता है। तभी एक महिला अपने हाथों में लिए करीब आठ-दस इंच लम्बे बालों की लट सायकिल सवार को थमा देती है जो उसे तौल कर उसके बदले में महिला की पसंद की कोई वस्तु उसे थमा देता है। घंटे भर में कोई 12-13 महिलाएं-युवतियां अपने बालों के बदले अपने मन-मुताबिक़ जींस ले खुश-खुश घर की ओर लौट जाती हैं और क्रेता भी आधा किलो के करीब "सामान" बटोर अपनी राह लगता है।
आज की प्रस्तुति में इतना ही...
चलते-चलते पढ़ें...
अजगर करे न चाकरी.........सबके दाता राम

धन्यवाद...
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंसोचिए जरा
लोग तिरुपति-बालाजी मे नर-नारी
मुण्डन करववाती हैं...
नाई को पैसे भी देते हैे
और अपने केश भी..
वहाँ के नाई तो करोड़पति होंगें
सोचिए...
ब्लॉगिंग को जीवित रखने के प्रयासों के लिए आभार आपका ..
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर
मेरी लिंक शामिल करने के लिए धन्यवाद
बढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंपलट देते हैं हम मौजे हवादिस अपनी जुर्रत से .............. वाह! वाह!!
जवाब देंहटाएंशहीदे आजम को शत शत सलाम
और सलाम उससे ऊर्जस्वित'हलचल' को भी!!!
कुलदीप जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और रोचक हलचल...आभार
जवाब देंहटाएं