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रविवार, 12 जून 2016

331...बहकने लगे यूँ

     नमस्कार 
सुप्रभात
 सादर प्रणाम 
 whatsapp से  
     एक बार एक चीते और गधे में बहस हो गई। चीता बोला आसमान का रंग नीला और गधा बोला काला। 
दोनों शेर बादशाह के दरबार में पहुँचे। शेर ने बहस सुन कर चीते की जेल में डालने का हुक्म दिया। चीता गिड़गिड़ाया की मैं सही हूँ और मुझे ही सज़ा क्यों मिल रही है?
Now the verdict is classic and involves a lot of learning.
शेर बोला की मैं जानता हूँ की तुम सही हो पर तुम्हें सज़ा इसलिए मिल रही है की तुमने गधे से बहस ही क्यों की!!!!
   
प्रस्तुत है आज की हलचल
  
      बहकने लगे यूँ
उनके हर ख़त पे महकने लगे यूँ
वो आस-पास हो चहकने लगे यूँ
         
खुशबू फूलों की थी उस खत में या मुहब्बत की
शाखे  आर्जू  झुकने लगे यूँ
वो आस पास हो चहकने लगे यूँ
मुआमला दिल का था संजीदा
इधर भी उधर भी
तस्वीर दिल में थी उनकी इसकदर बसी हुई
उनके होंठों के जाम लब पे मेरे
छलकने लगे यूँ
वो आस-पास हो चहकने लगे यूँ

       मुफ्त बाँटने वाली चुस्त सरकार...
जिस प्रकार घर के प्रत्येक सदस्य का अपने घर-परिवार के प्रति कोई न कोई कर्तव्य होता है और हर सदस्य अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी जिम्मेदारी से करता है, उसी प्रकार समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति अपने समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी से पालन करे तो शायद हमें यह कहने की आवश्यकता ही न पड़े कि सरकार कुछ नहीं करती। हम ये नहीं कहते कि सरकारें हमेशा सही ही करती हैं यदि ऐसा होता तो कोई परेशानी ही क्यों होती परंतु क्या अपने कर्तव्यों का बोझ भी सरकार पर डाल कर सिर्फ कमियाँ गिनवाने के लिए खड़े हो जाना ही हमारा काम है? या यही समस्याओं का हल है.....मैं समझती हूँ कि नहीं।
     
      उछलकूदिया न बनें इधर रहें या उधर
हम सभी चाहते हैं कि हम जो कुछ पाना चाहते हैं वह प्राप्त करने में कोई अड़चन न आए और सहजता से प्राप्त हो जाए। इसके लिए यह जरूरी नहीं कि हम लाभ-हानि के अनुरूप अपनी भूमिकाएं रंगमंचीय पात्रों या बहुरूपियों की तरह बदलते रहें, चाहे जिसके पीछे-पीछे चलने लगें, अनुकरण करते रहें और उन सारे कामों में रस लेने लगे जिनसे हमारे स्वार्थ सधते हैं।
      


     गम के आँसू
ग़म के हों या ख़ुशी के हों आंसू
वैसे तो एक जैसे होते हैं,
पर न जाने मुझे
ऐसा क्यों महसूस होता है
कि जो आंसू ग़म में निकलते हैं,
उनमें नमक थोड़ा ज़्यादा होता है.

     वृद्धाश्रम मे छोड दिया
कैसी ये आपा धापी से मानव ने खुद को जोड़ लिया
इस कलयुग के बेटे ने जिंदगी का यो आगाज किया
बूढी आँखे बहते आँसू सब कुछ नजर अंदाज किया
इस कलयुग के बेटे ने
कैसे जियेंगे तुझ बिन हमको इतना तो समझा देते
अच्छा होता वृद्धाश्रम के बदले शमशान पहुंचा देते

दिजिए आज्ञा 
धन्यवाद 
विराम सिंह सुरावा

13 टिप्‍पणियां:

  1. चीते और गधे का किस्सा बेमिसाल लगा। यहाँ सांझा करने के लिए शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात..
    अच्छी प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. अक्सर यह लोग बहस करने को ललकारते दिखाई देते हैं कोई कमी नहीं विद्वानों की , सज़ा तो मिलनी ही चाहिए चीते को ...

    जवाब देंहटाएं
  4. हा हा अच्छा तभी आज सारे चीते अपने अपने नाखूँनों को घिस रहे हैं और दाँतों को निकलवा रहे हैं :)

    सुन्दर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. mujhe bhi blogging ke kuch tips den hamara blog hai www.bhannaat.com

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कमन भाई
      आप नित्य प्रति पठन किया कीजिए
      टिप आपको अपने आप मिल जाएगी
      सादर
      यशोदा

      हटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति,आजकल इसीलिए चीते गधे से कन्नी काटते नजर आते है।
    लिंक में हमारा लेख भी सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. बढ़िया लिंक्स. मेरी कविता शामिल की. आभार.

    जवाब देंहटाएं

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