सादर अभिवादन
भाई संजय आज नहीं हैं
नेट की शिकायत कर रहे थे
पर आनन्द को आना है
सो आएगा ही....
तब संत ने उसे समझाया, "यदि इसी तरह उसे पानी में निरंतर डालते रहोगे,
तो कुछ ही दिनों में ये बांस के तानेबाने फूलकर छिद्र बंद हो जाएंगे और तुम टोकरी में पानी भर पाओगे।
इसी प्रकार जो निरंतर सत्संग करते हैं, उनका मन एक दिन अवश्य निर्मल हो जाता है,
अवगुणों के छिद्र भरने लगते हैं और टोकरी में गुणों का जल भरने लगता है।"
आस उड़ेलती ,
रंग पलाश सी ,
आज …,
झर झर बरसती है कविता !!
यूँहीं कुछ बोलती है कविता !!
प्रेम हो ललकार हो या वेदना का संग
साधना की तूलिका ने भर दिये सब रंग।।
वो गुजरा जमाना जो हम तुम मिले थे है
बीता फ़साना जो हम तुम मिले थे|
बदलना अँगूठी को इक दूसरे से
वो दिन था सुहाना जो हम तुम मिले थे|
आज की शीर्षक रचना...
बड़े बड़ों के,सावन में अरमान मचलते देखे हैं
सावन भादों की रातों, ईमान बहकते देखे हैं !
गर्वीले, अय्याश, नशे में रहें , मगर ये याद रहे
संगमरमरी फर्शों पर ही,पाँव फिसलते देखे हैं !
भाग रही हूँ..
सुबह के पाँच बजे हैं अभी
आज्ञा दें
यशोदा
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंतूफांन और वर्षा का अंदाजा
पशु-पक्षियाों को पहले ही हो जाता है
ठीक उसी तरह भाई संजय जी आदतोंं को स्मरण रखते हुए
इस प्रस्तुती को कल ही बना ली थी
बस सूचना देने का काम इसके प्रकाशन पश्चात
आज अभी की हूँ....
भाई संजय जी की नासमझी के लिए मैं क्षमा चाहती हूँ
सादर
यशोदा
अच्छी रचनाएं पढ़वाने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात दीदी
हटाएंआभार..
सादर
हमेशा की तरह बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचनाओं से सुरभित सुसज्जित आज की प्रस्तुति ! मेरी पुस्तक, 'सम्वेदना की नम धरा पर' की समीक्षा को सम्मिलित करने के लिये आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंकल कंपनी के काम से दम्माम (सउदी अरब का एक शहर) जाने का मौका मिला
जवाब देंहटाएंवैसे तो कई बार जा चुका हूं लेकिन कल की कुछ खास बात याद रह गई ...
भूख तेज लगी थी सोचा कुछ खा लेते है भीड़भाड़ के इलाके में एक पाकिस्तानी चाचा के होटल पर रुके, ..
टूटी कुर्सियां और पुराने गिलास होटल की माली हालत बयां कर रहै थे, खैर भूख मिटानी थी सो बैठ कर अपने खाने के ऑर्डर का इंतजार करने लगे.
अचानक से नजर होटल के बोर्ड पर पड़ी उर्दू में कुछ लिखा था, जब गौर से पढा तो इसका मतलब समझ में आया होटल सस्ता और गरीब जरूर था मगर उस चाचा जैसी सोच 5 स्टार होटलों में भी नहीं मिलती
लिखा था !!.
खाना उतना ही ऑर्डर करो जितना खा सकते हो रोटियों पर अपनी अमीरी ना दिखाऔ
याद रखो जो तुम्है मिला है कितनों को तो वो भी मयस्सर नहीं, ...
अगर अमीरी ही दिखानी है तो किसी गरीब को खाना खिला देना ....दुआ मुफ्त में मिलेगी .....
सचमुच क्या खूब लिखा था उस होटल में
पता चला सचमुच ऐसे लोग होते हैं दुनियां में,
कल कंपनी के काम से दम्माम (सउदी अरब का एक शहर) जाने का मौका मिला
जवाब देंहटाएंवैसे तो कई बार जा चुका हूं लेकिन कल की कुछ खास बात याद रह गई ...
भूख तेज लगी थी सोचा कुछ खा लेते है भीड़भाड़ के इलाके में एक पाकिस्तानी चाचा के होटल पर रुके, ..
टूटी कुर्सियां और पुराने गिलास होटल की माली हालत बयां कर रहै थे, खैर भूख मिटानी थी सो बैठ कर अपने खाने के ऑर्डर का इंतजार करने लगे.
अचानक से नजर होटल के बोर्ड पर पड़ी उर्दू में कुछ लिखा था, जब गौर से पढा तो इसका मतलब समझ में आया होटल सस्ता और गरीब जरूर था मगर उस चाचा जैसी सोच 5 स्टार होटलों में भी नहीं मिलती
लिखा था !!.
खाना उतना ही ऑर्डर करो जितना खा सकते हो रोटियों पर अपनी अमीरी ना दिखाऔ
याद रखो जो तुम्है मिला है कितनों को तो वो भी मयस्सर नहीं, ...
अगर अमीरी ही दिखानी है तो किसी गरीब को खाना खिला देना ....दुआ मुफ्त में मिलेगी .....
सचमुच क्या खूब लिखा था उस होटल में
पता चला सचमुच ऐसे लोग होते हैं दुनियां में,
हार्दिक अभार यशोदा जी , रचना को सम्मान देने के लिए ....
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