आज विश्व रक्तदान दिवस है।...
इस अवसर पर क्यों न प्रण लें कि अब हम भी रक्तदान करेंगे।....
हम सब की सक्रिय भागीदारी से ही लाखों लोगो की जान बच सकती है।...
कहते हैं...
रक्तदान महादान , मानव का मानवता के लिए उत्कृष्ट योगदान.....
दुनिया में रक्त का दूसरा विकल्प नहीं है...
रक्त की पूर्ति केवल रक्त से ही हो सकती है।...
रक्तदान महादान है, जीवनदान है।...
इससे बढ़कर कोई पुण्य नहीं है....
फिर भी लोग अज्ञानतावश इस पुण्य कार्य के भागीदार नहीं बन रहे।...
अब पेश है मेरे द्वारा पढ़ी गयी कुछ रचनाएं.
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पुष्प, दीप्ति – एक नया संसार
मन में आया साथ मिला दे
पूजा का इक थाल बना दे
सृष्टि का विश्वास बनाकर
उस ईश्वर को करें नमन
सोचा था क्या बनेंगे हम
मेरी डायरी से.....प्रभात
अभी तक सपनों में डूबा खुद को अंदाज रहा था
कभी उड़कर हंस रहा था तो कभी गिरे रो रहा था
पता चला मुझे हकीकत का, उस वक्त नही मगर
जब आँख खुली भी तो फिर सपनों में लौट रहा था
रक्त दान महादान
पर कुछ रिश्ते होते अनाम
जो रक्त दान से बनते
जिसको रक्त मिल पाता
अपने जीवन रक्षक को
दिल से दुआएं देता
जीवन भर अहसान मानता
रक्त दान से मिले रिश्ते को
गाँव में शादी-ब्याह की रंगत
गर्मियों के दिनों में गांव में शादी-ब्याह की खूब चहल-पहल रहती है। कई लोग तो बकायदा शहर से गाँव शादी करने जाते हैं। वे बखूबी जानते हैं कि गाँव में शादी
कराने के फायदे ही फायदे हैं। एक तो शादी-ब्याह का खर्चा भी कम होता है ऊपर से नाते-रिश्तेदारों से मिलने-जुलने के साथ ही शहर की गर्मी से कुछ दिन दूर पहाड़
की ठंडी-ठंडी हवा-पानी और अपनी जड़ों से मिलने का सुनहरा अवसर भी हाथ लग जाता है। इसके अलावा शादी में दिखावा से दूर अपनों का छोटी-छोटी खुशियों में घुल-मिल
जाने का हुनर मन को बड़ा सुकून पहुंचाता है। यही बात है कि मुझे आज भी शहर की चकाचौंध भरी शादी-समारोह के बजाय गांव की सादगी भरी शादियाँ बहुत भली लगती हैं।
कविता का कालबन्ध
समय न मिल पाना, किसी एक विषय में चित्त को ध्यानस्थ न कर पाना और आलस्य की इसी स्थिति ने कविता को प्रधानता दे दी। पहले अध्ययन किये हुये विषयों पर लिखना अच्छा
लगता था, मन को संतुष्टि मिलती थी। धीरे धीरे गद्य के स्थान पर कविता आती गयी, नयी कविताओं के सृजन के स्थान पर संचित कवितायें जाने लगीं, सप्ताह में दो ब्लाग
के स्थान पर एक ही पर संतोष करना पड़ा और धीरे धीरे नियत समय में कुछ न लिख पाने के कारण उस पर भी २-३ दिन का विलम्ब होने लगा।
यदि सृजनशीलता शान्ति से लिखना जानती है तो वह अन्तःकरण को इस आलस्य के लिये झकझोरना भी जानती है। झकझोरना और भी तीव्रता से होता है जब समयाभाव का कारण भी समाप्त
हो गया हो। अब तो मन अस्थिरता और आलस्य ही कारण बचे, समुचित न लिख पाने के। लिखने के लिये पढ़ना पड़ता था, तथ्यों और विचारों को समझना पड़ता है। न लिखने से
आत्मोन्नति का प्रवाह रुद्ध सा हो गया, इस कालखण्ड में।
मन से जूझने का कौन सा उपाय है जो मानव न अपनाता हो। कार्य को न कर सकने के ढेरों कारण लाकर रख देगा आपका मन आपके सामने। आपका मन आपको ही भ्रम में डालने के
लिये तत्पर है।
गाय
दुःख इस बात का है कि
नहीं पिला पाती अभागी
सिर्फ अपने बच्चों को ही
जी भर के दूध
पी जाते हैं सब के सब आदमजात.
क्या करते हैं हम
‘गोमाता’ के लिए
ले-देकर
जी बहलाने के लिए
यही एक संतोष
कि हम अच्छे हैं उनसे
जो करते हैं
गो हत्या!
क्षमा करना ‘माँ’
जो मुझसे कोई तकलीफ पहुँची हो
शर्मिन्दा हूँ
कि नहीं चुका पाया आज तक
तुम्हारे दूध का मूल्य
नहीं कर पाया
तुम्हारी रक्षा.
प्रस्तुति पूरी हुई...
धन्यवाद...
वाहह...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार लिंक संयोजन |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंरक्त का रंग एक रक्त का उद्देश्य एक फिर भी रक्त बहता है निरंकुश
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