"हाँ , वो शशांक की माँ से जब से मिलकर आया हूँ मन बहुत खराब है ."
"क्यों, क्या हुआ उन्हें?"
"क्या कहें अब ऐसी औलाद को जिसे आज माँ ही बुरी लगने लगी . कल तक तो आगे पीछे डोलते थे लेकिन जिस दिन से बेचारी ने बेटों को मुख्तियार बना दिया मानो अपने हाथ ही काट लिए
ऋता शेखर मधु....लघुकथा
''उत्कर्ष, उठो बेटा| एयरपोर्ट पर कम से कम एक घंटा पहले पहुँचना होता है| यहाँ से वहाँ जाने में ही एक घंटा लगता है| हमें तीन घंटा पहले निकलना चाहिेए| रास्ते में कोई भी अड़चन आ सकती है|''
महेश कुशवंश.....
उम्र के दिलकश नज़ारे साथ थे
जीने के अद्भुत सहारे साथ थे
बोलता था हृदय अबोला जो रहा
एहसास के स्नेहिल किनारे साथ थे
आज की शीर्षक कड़ी..
डॉ. प्रतिभा स्वाति.....
मेरे दिल का टुकड़ा ही , मुझको छलता है !
जैसे कोई मौसम है , जो रोज़ बदलता है !
आज्ञा दें हंसते-हंसते
यशोदा,,
लोगों का सारा दिन मनहूसियत में बीतता है
रो तो लेते हैं मनहूसियत के चलते
ऐसा करते हैं अभी और आज
खुल कर हंस लेते हैं
देखिए क्लोज सर्किट कैमरे की पकड़
और हंसिए पेट पकड़
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फिर से वेहतरीन संकलन। कई प्रकार की ह्रदयस्पर्शी रचनाऐं मन को उद्वेलित कर गई। मेरी रचना को स्थान देने के लिए यशोदा जी का सादर आभार।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरे दिल का टुकड़ा ही , मुझको छलता है !
जैसे कोई मौसम है , जो रोज़ बदलता है !
सुन्दर प्रस्तुति
thnx
हटाएंशुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह खूबसूरत रचना संकलन...
आभार आदरणीय दीदी आप का।
मनोबल बढ़ाने के लिए , तहेदिल से शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
Arrrrre waaaah ...... :)
जवाब देंहटाएंachchha lg raha hai
सदा की तरह
जवाब देंहटाएंसदा के आगमन की प्रतीक्षा
लगातार...
दीदी को नमन
सादर