"पति-पत्नी और वो" में संजीव कुमार द्वारा अभिनीत पात्र को सामने कर "बाथरूम सिंगिंग" यानि हमाम गायिकी के विषय को छुआ गया था, पर उनका बाल्टी-लोटे से नहाना उस गाने को वह ऊंचाइयां नहीं छूने देता जिसकी वहां आवश्यकता थी। हर साधना के कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करना ही पड़ता है। बाल्टी-मग्गे से नहाते समय ध्यान बाल्टी के कम होते पानी और लोटे को साधने में ही अटका रहता है और सुर भटकने का खतरा बन जाता है। दूसरी तरफ पानी जरूर कुछ ज्यादा लगता है पर बात शॉवर से छलकती अनवरत जल-राशि से ही बनती है !
कब तक अपनी
आँख से खुद
ही देखता रहेगा
‘उलूक’
गोद में चले जा
किसी गाँधारी के
सीख कर आ
किसी धृतराष्ट्र के
लिये आँख बंद कर
उसकी आँखों से
देखने की कला
तभी होगा तेरा और
तेरी सात पुश्तों का
तेरी घर गली शहर
प्रदेश देश तक के
देश प्रेमी संतों का भला ।
आज बस इतना ही...
इज़ाजत दें ..
और ये गीत देखें व सुनें
सुन्दर बुधवारीय अंक दिग्विजय जी। आभार 'उलूक' का सूत्र 'देखना/ दिखना/ दिखाना/ कुछ नहीं में से सब कुछ निकाल कर ले आना'को शीर्षक रचना का स्थान देने के लिये ।
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सुन्दर बुधवारीय अंक दिग्विजय जी। आभार 'उलूक' का सूत्र 'देखना/ दिखना/ दिखाना/ कुछ नहीं में से सब कुछ निकाल कर ले आना'को शीर्षक रचना का स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों से सजी शानदार हलचल ........आभार
जवाब देंहटाएंदिग्विजय जी,
जवाब देंहटाएंपोस्ट सम्मलित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
बढ़िया प्रस्तुति ।
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