सादर नमस्कार
मधुर तृप्ति का भाव जगा जो
अतृप्ति का भी घाव लगा जो,
चैन और बेचैनी उर की
तेरे चरणों पर रखते हैं !
शांति औ' आनंद की मूरत
देवी ! तू अज्ञान को हरे,
तू ही भरे रंग माया के
हर वर माथे पर धरते हैं !
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सादर नमस्कार
आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
टिप्पणीकारों से निवेदन
1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।
खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारों
जवाब देंहटाएंहार जीत कोई भी आखिरी नहीं होती
आभार दिग्विजय जी |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओ से सुसज्जित अंक 🙏
जवाब देंहटाएंसुप्रभात!! पठनीय अंक, आभार!
जवाब देंहटाएंखेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारों
जवाब देंहटाएंहार जीत कोई भी आखिरी नहीं होती
बहुत ही प्रेरक संदेश , सुंदर अंक ।
🙏🙏
जवाब देंहटाएं