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शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

4543... मुक्ति की आकांक्षा...

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।

शाम ढलते ही
गली,मुहल्ला,चौबारा,झोपड़ी, फ्लैटों,घरों
 पर सजे रंग बिरंगे बिजली 
की झालरों की आभा किसी 
परीलोक का आभास देने 
लगे हैं। दिवाली की साफ-सफाई और 
सजावट से हर घर मुस्कुरा रहा है।

बदलते दौर में जब घर के स्त्री-पुरुष दोनों ही 
कामकाजी है तो समयाभाव होना स्वाभाविक है।
गृहणियाँ भी 
सरदर्द लेना नहीं चाहती हैं ज्यादा।अब 
कौन मिट्टी के दीये को भिगोकर , सुखाकर, 
बाती बनाकर तेल भर कर जलाये और एक-एक दीया की बाती बार-बार ऊसकाये, तेल चेक करते रहे..
इतना झंझट कौन करे? फिर अड़ोसी-पड़ोसी का घर 
चाइनीज़ बल्ब से झलमला रहा है,चकाचक है।
कोई किसी से कम थोड़ी हैं,
रेडीमेड का ज़माना है आराम से बिजली की सबसे 
खूबसूरत झालर खरीदकर लटका दो बालकनी में, 
छतों की मुंडेर से और लाईट ऑन कर 
दो बस हो गयी दिवाली।
पर ये सब तो बाहरी साज-सज्जा हुई न पूजाघर 
में तो आज भी मिट्टी के दीपक को जलाना 
पवित्र माना जाता है और पारंपरिक 
दीये ही जलाये जाते हैं।

इसी प्रकार हम तन के लिए कितने ही प्रकार के कृत्रिम 
साज-सज्जा का प्रयोग कर लें पर अपने अंतर्मन को 
शुद्ध और पवित्र प्रकाश से आलोकित करें जिसमें 
सारी कलुषिता और अंधकार लोप जाये।
यही दीपावली का पवित्र संदेश है।
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आज की रचनाऍं- 



जब रात भर 
जलने के बाद भी 
 नहीं हो पाता है दूर अँधेरा 
हार कर दीपक चुन लेता है 
उदासी ! 


कभी तू शिकवा बनकर छलकती है आँखों से,
कभी दुआ बनकर ठहर जाती है होंठों पे।
कभी खामोशियों में भी बोल उठती है,
कभी भीड़ में भी तन्हाई का एहसास दिलाती है


कौन पीड़ा के बीज बोता 

कौन अहंकार जगाता 

कौन करता मुक्ति की आकांक्षा

कौन ठगा से देखता रहा जाता!





पैबंद लगी तुरपाई हुई काश्तकारी रूह इसके सपनों की l
बिनआँसू सुई सी चुभती सीने दिल टूटे अरमानों की ll
समय अकेला समर गहरा संबंध विच्छेद नादान सा l
कटाक्ष बाण चक्रव्यूह रण निगल गये निदान काल सा ll




स्वप्न की रागिनी सो गयी
कीमती सबसे जो खो गयी
कुछ दिनों तक चला सिलसिला
वक्त की चाल सब धो गयी


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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अंक, आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार और धन्यवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. अंतर्मन को
    शुद्ध और पवित्र प्रकाश से आलोकित करें !! कितना सुंदर संदेश देती भूमिका और सराहनीय रचनाओं का संकलन, आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं

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