गली,मुहल्ला,चौबारा,झोपड़ी, फ्लैटों,घरों
पर सजे रंग बिरंगे बिजली
की झालरों की आभा किसी
परीलोक का आभास देने
लगे हैं। दिवाली की साफ-सफाई और
सजावट से हर घर मुस्कुरा रहा है।
कामकाजी है तो समयाभाव होना स्वाभाविक है।
सरदर्द लेना नहीं चाहती हैं ज्यादा।अब
कौन मिट्टी के दीये को भिगोकर , सुखाकर,
बाती बनाकर तेल भर कर जलाये और एक-एक दीया की बाती बार-बार ऊसकाये, तेल चेक करते रहे..
इतना झंझट कौन करे? फिर अड़ोसी-पड़ोसी का घर
चाइनीज़ बल्ब से झलमला रहा है,चकाचक है।
खूबसूरत झालर खरीदकर लटका दो बालकनी में,
छतों की मुंडेर से और लाईट ऑन कर
दो बस हो गयी दिवाली।
में तो आज भी मिट्टी के दीपक को जलाना
पवित्र माना जाता है और पारंपरिक
दीये ही जलाये जाते हैं।
साज-सज्जा का प्रयोग कर लें पर अपने अंतर्मन को
शुद्ध और पवित्र प्रकाश से आलोकित करें जिसमें
सारी कलुषिता और अंधकार लोप जाये।
कभी दुआ बनकर ठहर जाती है होंठों पे।
कभी खामोशियों में भी बोल उठती है,
कभी भीड़ में भी तन्हाई का एहसास दिलाती है
कौन पीड़ा के बीज बोता
कौन अहंकार जगाता
कौन करता मुक्ति की आकांक्षा
कौन ठगा से देखता रहा जाता!
बिनआँसू सुई सी चुभती सीने दिल टूटे अरमानों की ll
समय अकेला समर गहरा संबंध विच्छेद नादान सा l
कटाक्ष बाण चक्रव्यूह रण निगल गये निदान काल सा ll






शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
बहुत सुंदर अंक, आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार और धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंअंतर्मन को
जवाब देंहटाएंशुद्ध और पवित्र प्रकाश से आलोकित करें !! कितना सुंदर संदेश देती भूमिका और सराहनीय रचनाओं का संकलन, आभार श्वेता जी!