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बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

4534..सारा जग जाग रहा ..

।।प्रातःवंदन।।

" ओ प्रभात! ओ प्रभात! आओ तुम धीरे-धीरे।

ओ पुलकित पवनों की चंचल स्वर्णपुरी के हीरे !

स्वर्ण अश्व को थाम द्वार पर, उतरो हे चिर सुन्दर!

निद्रित प्रेयसि के आगे तुम आओ मृदुल हँसी, अधरों पर..!!"

 चन्द्रकुंवर बर्त्वाल 

बुधवारिय प्रस्तुतिकरण के साथ आज शामिल रचनाए को देखिए..✍️

गिला

जीवन रहन गमों से अभिभारित,

कुदरत ने विघ्न भरी आवागम दी,

मन तुषार, आंखों में नमी ज्यादा,

किंतु बोझिल सांसों में हवा कम दी,

✨️



अपनी अपनी ज़रूरत के तहत साथ चलने

का इक़रार रहा, रात घिरते ही अपने

अलावा किसी का भी न इंतज़ार

रहा, न जाने कितने क़ाफ़िले

गुज़रे न जाने कितने

सितारे डूबे और

उभरे, ज़िन्दगी

का सफ़र

हमेशा

की तरह पुरअसरार रहा, अपनी अपनी..

✨️



सारा जग जाग रहा 

ताक रहा ठगा सा,

रजत रुप चंद्रमा का

शरद पूर्णिमा का !..

✨️

कोदंड

उत्कृष्ट पत्रिका अनुभूति के कोदंड विशेषांक में प्रकाशित

शक्ति का प्रतीक कोदंड 

मर्यादा संग शक्ति का प्रतीक बना कोदंड

देख अविनय के भाव को

होता रहा प्रचंड

रघुनन्दन के तरकश में अस्त्र यह कड़े बाँस का

प्रत्यंचा संग भृकुटि ताने थमता दृग हर साँस का

निष्फल होता है नहीं चुभ जाए शर-फाँस का..

✨️

रश्मि दी ... 💔

रश्मि दी से जान-पहचान ब्लॉगिंग के शुरुआती दिनों में हुई थी। करीब पंद्रह साल पहले। उस समय ब्लॉग सिर्फ़ लिखने की जगह नहीं था, बल्कि नए-नए रिश्ते बनाने का एक ज़रिया भी था। उन्हीं रिश्तों में एक रिश्ता रश्मि दी का भी था।

धीरे-धीरे बातों का दायरा बढ़ता..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️



1 टिप्पणी:

  1. सुप्रभात! प्रभात का आह्वान करती सुंदर भूमिका और पठनीय रचनाओं से सजी प्रस्तुति!

    जवाब देंहटाएं

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